सम्पादकीय

चीन को दो टूक

Subhi
22 Feb 2021 1:22 AM GMT
चीन को दो टूक
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भारत के लिए यह राहत भरा संकेत इसलिए माना जाना चाहिए क्योंकि दोनों देशों के बीच ताजा विवाद यहीं से शुरू हुआ था।

भारत के लिए यह राहत भरा संकेत इसलिए माना जाना चाहिए क्योंकि दोनों देशों के बीच ताजा विवाद यहीं से शुरू हुआ था। चीनी सैनिक अचानक आ धमके थे और पैंगोंग झील के उत्तरी इलाके में कब्जा जमा लिया था। इसके साथ ही देपसांग, हॉट स्प्रिंग और गोगरा में भी चीनी सैनिकों का जमावड़ा हो गया था। पैंगोंग में तो टकराव फिलहाल खत्म हो गया है, लेकिन दूसरे मोर्चों पर चुनौती अब भी बनी हुई है। शनिवार को मोल्डो में भारत और चीन के सैन्य कमांडरों की दसवें दौर की बातचीत में भारत ने साफ कर दिया गया कि हालात सामान्य बनाने के लिए अब चीन को देपसांग, हॉट स्प्रिंग और गोगरा इलाकों से अपने सैनिक हटाने होंगे।

पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर देपसांग, हॉट स्प्रिंग, गोगरा जैसे अग्रिम मोर्चों पर अभी जिस तरह से चीनी फौज जमी हुई है, वह भारत के लिए बड़ा खतरा है। हालांकि इन मोर्चों पर भारत ने भी अपनी पकड़ काफी मजबूत कर ली है और चीन भी हकीकत को समझ रहा है। देपसांग और दौलत बेग ओल्डी में पहले एक माउंटेन और एक आर्र्म्ड ब्रिगेड की तैनात रहती थी।
लेकिन इन इलाकों में चीनी सैनिकों के अचानक आ धमकने के बाद भारत को यहां पंद्रह हजार से ज्यादा सैनिक और बड़ी संख्या में टैंक तैनात करने पड़े। पर इस बात का खतरा तो है कि चीन कहीं उकसावे वाली हरकतें कर नया विवाद न खड़ा कर दे। भारत ने अपनी ओर से अब तक शांति और संयम का रुख दिखाया है और जरूरत पड़ने पर ही जवाबी कार्रवाई की है।
पैंगोंग में भारतीय सैनिकों पर हमले की घटना से दोनों देशों के बीच कड़वाहट बढ़ी है और इससे दशकों पुराने सीमा विवाद को हल करने के प्रयासों को धक्का लगा है। पैंगोंग झील इलाके में तो टकराव अब खत्म हो गया है और दूसरे इलाकों से चीनी सैनिकों की वापसी की प्रक्रिया को लेकर भारत ने दबाव बनाना शुरू कर दिया है।
दरअसल दोनों देशों के बीच सीमा विवाद का कारण स्पष्ट सीमांकन का नहीं होना तो है ही, साथ ही चीन की नीयत में खोट और धोखेबाजी की प्रवृत्ति भी विवादों और संघर्षों को जन्म देती रही है। हकीकत में देखें तो करीब चार हजार किलोमीटर लंबी भारत-चीन सीमा का ज्यादातर हिस्सा दुर्गम इलाकों वाला है जहां किसी तरह से साफ तौर पर कोई सीमा रेखा तय कर पाना असंभव है।
ऐसे में आपसी विवेक और समझबूझ से ही काम लेना श्रेयस्कर होता है। लेकिन चीन जिस तरह की विस्तारवादी नीति पर अपने कदम बढ़ा रहा है, उससे उसमें विवेक की उम्मीद करना व्यर्थ ही है, और ऐसा वह सिर्फ भारत के साथ ही नहीं, बल्कि अपने सभी पड़ोसियों के साथ कर रहा है। इसलिए चीन के साथ उसी की भाषा में बात करने की जरूरत है।
पैंगोंग झील में चीनी सैनिकों की घुसपैठ के बाद भारत ने भी जो सख्त जवाबी रुख अपनाया, उसी का परिणाम है कि देरसवेर चीन को पीछे हटना ही पड़ा। इसमें कोई संदेह नहीं कि वह भविष्य में फिर इन इलाकों में भारतीय क्षेत्र में घुसने का दुस्साहस दिखाए। इस संपूर्ण इलाके में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर भारत को अपनी सैन्य स्थिति अब मजबूत रखने की जरूरत है।



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