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- रक्तरंजित घाटी
Written by जनसत्ता: अब कश्मीर घाटी में लक्षित हत्या आए दिन की बात हो चली है। पिछले दिनों हुई हत्याओं को लेकर अभी लोगों का रोष थमा भी न था कि एक और बैंककर्मी की उसके दफ्तर में घुस कर हत्या कर दी गई। वह राजस्थान का निवासी था। हाल में हुई हत्याओं से क्षुब्ध कश्मीरी पंडितों और मैदानी भागों से वहां जाकर नौकरी कर रहे लोगों ने विरोध प्रदर्शन करते हुए कहा कि अगर सरकार उनकी सुरक्षा के इंतजाम नहीं कर सकती, तो उन्हें एक बार फिर घाटी छोड़ने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचेगा।
इस पर सरकार ने उन्हें भरोसा दिलाया है कि घाटी में काम कर रहे हिंदुओं की तैनाती सुरक्षित स्थानों पर की जाएगी। मगर इसे लक्षित हत्याओं को रोकने का कोई समाधान नहीं माना जा रहा। पिछले एक साल में सोलह कश्मीरी पंडितों को निशाना बना कर मारा जा चुका है। यानी आतंकियों का मकसद साफ है कि वे फिर से उनमें दहशत भर कर घाटी छोड़ने को विवश करना चाहते हैं। वर्षों से विस्थापित कश्मीरियों को घाटी में लौटाने के प्रयास हो रहे हैं। इसी के तहत बहुत सारे लोगों की वहां की सरकारी नौकरियों में भर्ती की गई। अब आतंकी उन्हें निशाना बना कर मार रहे हैं, तो स्वाभाविक ही उनके परिजनों में भय पैदा हो गया है।
घाटी में सक्रिय आतंकवादियों को सीमा पार से समर्थन मिलता रहा है, यह उजागर तथ्य है। मगर पिछले कुछ सालों में, जबसे उधर से होने वाली घुसपैठ पर कड़ी नजर रखी जाने लगी है, उन्हें वित्तीय मदद पहुंचाने वालों में से ज्यादातर को सीखचों के पीछे डाल दिया गया है, उनकी संस्थाओं के बैंक खाते बंद कर दिए गए हैं और सुरक्षाबलों का निरंतर तलाशी अभियान चल रहा है, तबसे घाटी में उनकी तादाद काफी कम हो गई है। ऐसे में दहशतगर्द बार-बार अपना तरीका बदलते दिख रहे हैं।
पहले स्थानीय लोगों में भय पैदा करके कश्मीरी युवाओं को सेना और पुलिस में भर्ती होने से रोकने का प्रयास किया। जिन लोगों ने उनके फरमान को अनसुना किया, उन्हें लक्ष्य बना कर मार डाला गया। मगर उसका भी वहां के लोगों पर बहुत असर नहीं दिखा। अब उन्होंने लक्ष्य बना कर ऐसे लोगों की हत्या करनी शुरू की है, जिससे सरकार पर आसानी से दबाव बनाया जा सके। हालांकि आए दिन मुठभेड़ में आतंकी मार गिराए जाते हैं, फिर भी वे कहीं न कहीं किसी वारदात को अंजाम देने में कामयाब हो जाते हैं। अब इसके पीछे की उनकी रणनीति भी उजागर है।
माना जा रहा है कि आतंकियों के पास पहले की तरह अत्याधुनिक हथियार और विस्फोटक उपलब्ध नहीं हो पाते। उन्हें अपने छिपने की जगहें तलाश करना भी आसान नहीं रह गया है। ऐसे में वे बेरोजगार युवाओं को गुमराह कर और कुछ पैसे का लालच देकर लक्षित हत्या के लिए तैयार कर लेते हैं। उन्हें पिस्तौल देकर लक्ष्य का पीछा करने को छोड़ दिया जाता है। ऐसे लोगों पर सुरक्षाबलों की नजर फिलहाल नहीं जा पा रही है, इसलिए वे आसानी से अपनी योजना में कामयाब हो पा रहे हैं। मगर हैरानी की बात है कि जब घाटी के चप्पे-चप्पे पर सुरक्षाबलों की तैनाती होती है, तब सरकारी दफ्तरों के भीतर घुस कर आतंकी कैसे हत्या करने में कामयाब हो जा रहे हैं। यह सुरक्षा इंतजामों में भारी खामी को रेखांकित करता है। इस मामले में सरकार से नई रणनीति बनाने की अपेक्षा स्वाभाविक है।