सम्पादकीय

ब्लड कैंसर अब खतरनाक नहीं,ऑन्कोलॉजिस्ट ने कहा- ब्लड स्टेम सेल ट्रांसप्लांट की सफलता दर 90% तक

Rani Sahu
20 May 2022 5:28 PM GMT
ब्लड कैंसर अब खतरनाक नहीं,ऑन्कोलॉजिस्ट ने कहा- ब्लड स्टेम सेल ट्रांसप्लांट की सफलता दर 90% तक
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ब्लड सेल ट्रांसप्लांट एक ऐसा तरीका है जहां डॉक्टर बोन मैरो (Bone marrow) को बाहर निकालते हैं

शालिनी सक्सेना |

ब्लड सेल ट्रांसप्लांट एक ऐसा तरीका है जहां डॉक्टर बोन मैरो (Bone marrow) को बाहर निकालते हैं और इसे एक डोनर से मिले थेरेपी मैरो (therapy marrow) से बदल देते हैं. इस तरह की प्रक्रिया उन मामलों में बेहद कारगर साबित होती है जहां मरीज को ल्यूकेमिया यानी, ब्लड कैंसर (Blood Cancer) होता है जैसे लिम्फोमा या मायलोमा (कैंसर जो सफेद ब्लड सेल में बनता है जिसे प्लाज्मा सेल कहा जाता है). ऐसे केस में बीमारी बोन मैरो में होती है. मुंबई के कोकिलाबेन धीरूभाई अंबानी अस्पताल के बाल रोग, बाल रोग हेमटोलॉजी, ऑन्कोलॉजी और स्टेम सेल ट्रांसप्लांटेशन के कंसल्टेंट डॉ. शांतनु सेन ने इस बारे में जानकारी साझा की.

डॉ. शांतनु ने कहा "हम कीमोथेरेपी की मेजर डोज देते हैं, डिफेक्टेड मैरो को बाहर निकालते हैं और इसे डोनर से मिले थेरेपी मैरो से बदल देते हैं. यह प्रक्रिया सिकल सेल डिजीज (sickle cell disease) या थैलेसीमिया (thalassemia) के पेशेंट के लिए भी फायदेमंद है. ऐसे मामलों में बोन मैरो कोशिकाओं की कमी के कारण ब्लड नहीं बना पाता है. फिर हम कीमोथेरेपी के जरिए डिफेक्टिव मैरो को हटाते हैं और इसे मैचिंग वाले एक हेल्दी डोनर के थैरपी मैरो से बदल देते हैं."
उन्होंने कहा कि पहले अगर किसी व्यक्ति को ब्लड कैंसर होता था तो इसका मतलब होता था मौत. डॉ सेन ने कहा, "इस प्रोसीजर के आने से पहले तक इसका कोई इलाज नहीं था. लेकिन आज भी थैलेसीमिया के मामलों में अगर हम ट्रांसप्लांट नहीं कर सकते हैं तो पेशेंट को ब्लड ट्रांसफ्यूजन (blood transfusion) कराना ही जारी रखना होगा."
बौन मैरो ट्रांसप्लांट की सफलता दर 90 प्रतिशत
डॉ. के मुताबिक, इस प्रक्रिया की सफलता दर उत्साहजनक है. यदि डोनर मैरो पूरी तरह से मैच करने वाले भाई-बहन का है – तो ट्रांसप्लांट की सफलता दर 90 प्रतिशत है. डॉ सेन ने कहा, "यदि मैच डोनर परिवार का सदस्य नहीं है – एक वॉलंटरी डोनर है तो सफलता दर लगभग 85 प्रतिशत है. एक प्रत्यारोपण की सफलता दर इस बात पर निर्भर करती है कि कोशिकाएं कितनी तेजी से संलग्न होती हैं. आमतौर पर इसमें 14-21 दिन का समय लगता है. अगर हम थैलेसीमिया के पेशेंट में ट्रांसप्लांट (प्रत्यारोपण) कर सकते हैं तो मरीज को फिर से सामान्य जीवन जीने में एक साल का समय लग सकता है उसके बाद वह जीवनभर के लिए ठीक हो जाता है."
किडनी और ब्लड सेल ट्रांसप्लांट में अंतर होता है
जब किडनी और ब्लड सेल ट्रांसप्लांट के प्रोसीजर की बात आती है तो इनमें एक बड़ा अंतर होता है. डॉ सेन ने कहा, "किडनी ट्रांसप्लांट कराने वाले मरीजों को जीवन भर दवा पर निर्भर रहना पड़ता है. लेकिन बोन मैरो ट्रांसप्लांट में मरीज एक साल के अंदर दवाइयां बंद कर सकते हैं और फिर से सामान्य जीवन जी सकते हैं. वे आमतौर पर हमारे पास वापस नहीं आते हैं. लेकिन ब्लड कैंसर में सफलता दर ज्यादा होने पर भी कुछ मामले ऐसे भी होते हैं जहां मरीज को यह फिर से हो सकता है. यह ट्रांसप्लांट के तीन से चार साल के अंदर होता है. यदि मरीज ठीक है तो कोई दूसरी चिंता नहीं है."
हालांकि मरीजों को दो साल तक नियमित जांच कराने की सलाह दी जाती है. उसके बाद मरीज को आमतौर पर अगले दो-तीन सालों के लिए साल में एक बार अपने फिजिशियन से मिलने के लिए कहा जाता है. उसके बाद मरीज को डॉक्टर को दिखाने की जरूरत नहीं होती है.
उम्र कोई बाधा नहीं है
बोन मैरो ट्रांसप्लांट में उम्र बाधा नहीं बनती. चार महीने के बच्चे का भी बोन मैरो ट्रांसप्लांट किया जाता है. डॉ सेन ने कहा, "इस प्रोसीजर में उम्र रुकावट नहीं बनती है. पहले हम ऐसे मरीजों का ट्रांसप्लांट करते थे जो 60 साल से अधिक नहीं होते थे. लेकिन तकनीक ने आज हमारे लिए 70-80 साल की उम्र के मरीजों का भी ट्रांसप्लांट करना संभव बना दिया है, बशर्ते वे स्वस्थ हों. बेशक इसमें रिस्क भी शामिल है. ट्रांसप्लांट के प्रोसीजर के दौरान मरीज को सीरियस इंफेक्शन (गंभीर संक्रमण) हो सकता है. इसलिए ट्रांस प्लांट बहुत ही साफ-सुथरे वातावरण में किया जाता है."
डीकेएमएस बीएमएसटी फाउंडेशन इंडिया के सीईओ पैट्रिक पॉल ने कहा कि देश में हर पांच मिनट में किसी न किसी में ब्लड कैंसर या थैलेसीमिया या अप्लास्टिक एनीमिया जैसे ब्लड डिसऑर्डर को डायग्नोज किया जाता है. पॉल ने कहा, "जबकि ब्लड कैंसर जीवन के लिए एक बड़ा खतरा है लेकिन एक मैचिंग डोनर से मिला हेल्दी ब्लड स्टेम सेल्स का एक सेट जीवन रक्षक साबित हो सकता है. इस बीमारी से जूझ रहे बहुत से लोगों के बावजूद कुल जनसंख्या का केवल 0.04 प्रतिशत ही संभावित ब्लड स्टेम सेल डोनर के रूप में रजिस्टर्ड हैं. लाइफ सेविंग ट्रीटमेंट के रूप में स्टेम सेल ट्रांसप्लांट की जरूरत वाले 30 प्रतिशत मरीजों को ही मैच के रूप में भाई-बहन मिल पाते हैं. बाकी 70 प्रतिशत एक ऐसे मैचिंग वाले डोनर को खोजने पर निर्भर रहते हैं जिससे उनका ब्लड रिलेशन नहीं है " के लिए कोई रिस्क नहीं
डोनर को लेकर हैं भ्रांतियां
स्टेम सेल डोनर को लेकर समाज में कई भ्रांतियां फैली हैं. लेकिन यह सबसे अच्छी मदद में से एक है जो एक व्यक्ति दूसरे के लिए कर सकता है. जब डोनर की बात आती है तो यह ब्लड देने की तरह होता है. डॉ सेन ने अंत में कहा "डोनर को उसी दिन छुट्टी दे दी जाती है. प्रोसीजर की वजह से उन्हें कोई समस्या नहीं आती है. उन्हें केवल दवा लेने की जरूरत हो सकती है. आजकल जब तक डोनर परिवार का सदस्य न हो हम उस डोनर से मैरो नहीं लेते हैं. यह सेल नसों में से लिए जाते है. हम हड्डी के पास नहीं जाते हैं. यह एक दर्द रहित प्रक्रिया (पेनलेस प्रोसीजर) है."
Rani Sahu

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