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By लोकमत समाचार सम्पादकीय |
पिछले ढाई-तीन साल से भारत और चीन के संबंधों में जो तनाव पैदा हो गया था, वह अब कुछ घटता नजर आ रहा है. पूर्वी लद्दाख के गोगरा हॉट स्प्रिंग्स क्षेत्र से दोनों देशों की सेनाएं पीछे हटने लगी हैं. दोनों देशों के फौजियों के बीच दर्जनों बार घंटों चली बातचीत का यह असर तो है ही लेकिन ऐसा लगता है कि इसमें सबसे महत्वपूर्ण भूमिका हमारे विदेश मंत्री एस. जयशंकर की रही है.
जयशंकर चीनी विदेश मंत्री से कई बार बात कर चुके हैं. वे चीन में हमारे राजदूत रह चुके हैं. इसके अलावा अब समरकंद में होनेवाली शंघाई सहयोग संगठन की बैठक में हमारे प्रधानमंत्री और चीनी नेता शी जिनपिंग भी शीघ्र ही भाग लेनेवाले हैं. हो सकता है कि वहां दोनों की आपसी मुलाकात और बातचीत हो. वहां कोई अप्रिय स्थिति पैदा नहीं हो, इस दृष्टि से भी दोनों फौजों की यह वापसी प्रासंगिक है.
मोदी और शी के व्यक्तिगत संबंध जितने अनौपचारिक और घनिष्ठ रहे हैं, उतने बहुत कम विदेशी नेताओं के होते हैं. इसके बावजूद दोनों में इस सीमांत मुठभेड़ के बाद अनबोला शुरू हो गया था. अब वह टूटेगा, ऐसा लगता है. यहां यह भी ध्यातव्य है कि गलवान घाटी मुठभेड़ के बाद चीनी माल के बहिष्कार के आह्वान के बावजूद भारत-चीन व्यापार में इधर अप्रत्याशित वृद्धि हुई है.
चीन के सिर पर यह तलवार लटकी रहती है कि भारत-जैसा बड़ा बाजार उसके हाथ से खिसक सकता है. चीनी नीति-निर्माताओं पर एक बड़ा दबाव यह भी है कि आजकल भारत पूर्व एशिया में अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान से जुड़कर चीन की नींद हराम क्यों कर रहा है? चीनी नेता इस तथ्य से भी चिंतित हो सकते हैं कि आजकल अमेरिकी सरकार पाकिस्तान की तरफ मदद का हाथ बढ़ा रही है. ऐसे में स्वाभाविक है कि चीन भारत के साथ संबंध सुधारने की कोशिश करे.

Rani Sahu
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