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दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को विदेश जाने से केंद्र सरकार ने रोक रखा है
By लोकमत समाचार सम्पादकीय
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को विदेश जाने से केंद्र सरकार ने रोक रखा है. पिछले सवा महीने से उनकी अर्जी उपराज्यपाल के दफ्तर में अटकी पड़ी है. पहले उन्हें उपराज्यपाल की अनुमति लेनी पड़ेगी और फिर विदेश मंत्रालय की. किसी भी मुख्यमंत्री को यह अर्जी क्यों लगानी पड़ती है?
क्या वह कोई अपराध करके देश से पलायन की फिराक में है? क्या वह विदेश में जाकर भारत की कोई बदनामी करनेवाला है? क्या वह देश के दुश्मनों के साथ विदेश में कोई साजिश रचने वाला है? क्या वह अपने कालेधन को छिपाने की वहां कोई कोशिश करेगा?
आज तक किसी मुख्यमंत्री पर इस तरह का कोई आरोप नहीं लगा. स्वयं नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए कई देशों में जाते रहे. कांग्रेस की केंद्रीय सरकार ने उनकी विदेश-यात्राओं में कभी कोई टांग नहीं अड़ाई. तो अब उनकी सरकार ने केजरीवाल की सिंगापुर-यात्रा पर चुप्पी क्यों साध रखी है?
उन्हें अगस्त के पहले हफ्ते में सिंगापुर जाना है. क्यों जाना है? वे जा रहे हैं, दुनिया में दिल्ली का नाम चमकाने के लिए. वे 'विश्व शहर सम्मेलन' में भारत की राजधानी दिल्ली का प्रतिनिधित्व करेंगे. दिल्ली का नाम होगा तो क्या भारत का यश नहीं बढ़ेगा? 2019 में भी हमारे विदेश मंत्रालय ने केजरीवाल को कोपेनहेगन के विश्व महापौर सम्मेलन में नहीं जाने दिया था. जबकि इसी सम्मेलन में पहले शीला दीक्षित ने शानदार ढंग से भाग लिया था.
शीलाजी ने दुनिया भर के प्रमुख महापौरों को बताया था कि उन्होंने दिल्ली को कैसे नए रूप में संवार दिया है. उसी काम को अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया ने चार चांद लगा दिए हैं. अमेरिकी राष्ट्रपति की पत्नी और संयुक्त राष्ट्र के महासचिव इन कामों को देख प्रमुदित हो गए थे. दिल्ली के अस्पतालों, स्कूलों, सड़कों, मोहल्ला क्लीनिकों, सस्ती बिजली-पानी वगैरह ने केजरीवाल की आप सरकार को इतनी प्रतिष्ठा दला दी है कि पिछले चुनावों में कांग्रेस और भाजपा का सूपड़ा साफ हो गया है.
केंद्र सरकार इस तथ्य को क्यों नहीं समझ पा रही कि वह उपराज्यपाल के जरिये दिल्ली सरकार को जितना तंग करेगी, वह दिल्ली की जनता के बीच उतनी ही अलोकप्रिय होती चली जाएगी.

Rani Sahu
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