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By लोकमत समाचार सम्पादकीय
उच्चतम न्यायालय के आदेश के 362 दिन बाद 28 अगस्त 2022 को नोएडा का विवादित 'ट्विन टावर' ध्वस्त किया जा चुका है, लेकिन उसे वहां खड़ा करने के लिए जिम्मेदार अभी-भी किसी कार्रवाई से दूर हैं. हालांकि इस मामले में हुए भ्रष्टाचार की जांच के बाद करीब 26 अधिकारी दोषी पाए गए थे, जिनमें से 18 सेवानिवृत्त हो चुके हैं और दो की मृत्यु हो चुकी है. छह सेवा में हैं, जो अभी निलंबित हैं.
स्पष्ट है कि करोड़ों रुपए की लागत से तैयार इमारत पल में ढहा दी गई, मगर उसे तैयार करवाने वाले जहां के तहां हैं. स्पष्ट है कि इस तरह के मामलों में पहला निशाना भवन निर्माताओं पर लगता है. 'ट्विन टावर' मामले में भी सुपरटेक कंपनी को कठघरे में खड़ा कर कार्रवाई की गई, जिसमें उसका आर्थिक रूप से नुकसान भी हुआ.
उच्चस्तरीय जांच में कंपनी के भी चार निदेशक और दो आर्किटेक्ट भ्रष्टाचार में लिप्त पाए गए. लेकिन नोएडा प्राधिकरण के अधिकारियों के साथ सांठगांठ कर बनाए गए 'ट्विन टावर' की पहली सजा उसकी निर्माता कंपनी सुपरटेक को इमारत गिराकर मिली. भ्रष्ट अधिकारी अपनी जगह बने रहे. साफ है कि उनके खिलाफ कार्रवाई में जल्दबाजी नहीं दिखाई देना भ्रष्टाचार को प्रश्रय देना ही है.
सारे शोरगुल के बीच उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपने कार्यालय से सूची जारी कर सभी के खिलाफ कार्रवाई के आदेश दे दिए हैं, किंतु एक सप्ताह बाद भी उसका असर नहीं दिख रहा है. दरअसल यही चीज भ्रष्टाचार की जड़ें मजबूत करती है. हमेशा ही जब कोई इमारत गिराई जाती है तो उसके निर्माता की खूब चर्चा होती है, लेकिन उसे अवसर देने वालों की कोई चर्चा नहीं होती है.
किसी भवन का निर्माण सरकारी अनुमति के बगैर असंभव है. यदि अनेक स्तर पर छानबीन होने के बाद अनुमति मिलती है तो गड़बड़ी कैसे होती है? नोएडा का मामला चूंकि उच्चतम न्यायालय तक पहुंचा, इसलिए ठोस और बड़ी कार्रवाई हुई. अन्यथा इतनी बड़ी इमारत बनने के बाद बीच का कोई रास्ता निकलना और भ्रष्टाचार को छिपाना परंपरा बन चुकी है. महानगर में कानून और कायदों को जानने तथा सोसाइटी जैसी संकल्पना वास्तविकता में होने से बात अदालत तक पहुंच जाती है.
बाकी स्थानों में ताकतवर की जीत और कमजोरों के समक्ष समझौता करने से अधिक कोई विकल्प सामने नहीं रहता है, जिसका एक दशक से अधिक समय से चला नोएडा 'ट्विन टावर' का विवाद प्रमाण है. ऐसे कितने और होंगे, उनकी गणना मुश्किल है. मगर नए बनने से कैसे रोके जाएं, इस पर विचार जरूरी है.
सरकार को भवन निर्माण की अनुमति और कार्य आरंभ होने के पहले सबकी सहमति को पारदर्शक रूप में अमल में लाने की व्यवस्था तैयार करनी चाहिए. तभी किसी के नुकसान में किसी के फायदे को रोका जा सकेगा. अन्यथा इमारतें तो लगातार बनती रहेंगी. संभव है कि कभी कोई गिराई भी जाती रहेंगी.
Rani Sahu
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