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By लोकमत समाचार सम्पादकीय
By फहीम ख़ान
महाराष्ट्र सरकार ने हाल में अपने आईपीएस अधिकारियों के तबादले किए है। वैसे तो ये तबादले सामान्य रूप से हुए है लेकिन अचानक गढचिरोली के तीनों आईपीएस अधिकारियों के तबादले कर दिए जाने से लंबे समय से एक अवसर की तलाश में बैठे नक्सलियों को आसान मौका तो हाथ नहीं लग जाएगा, यह सवाल उठने लगा है।
गढचिरोली के पुलिस अधीक्षक अंकित गोयल को पुणे ग्रामीण का पुलिस अधीक्षक बनाया गया है। गढचिरोली के अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक शेख समीर असलम को सातारा का पुलिस अधीक्षक बनाया गया है, वही गढचिरोली जिले के अहेरी में अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक के तौर पर कार्यरत सोमय विनायक मुंडे को लातूर का पुलिस अधीक्षक बनाया गया है।
इन तीनों आईपीएस अधिकारियों ने मिलकर गढचिरोली जिले में नक्सलियों के खिलाफ के कई अभियान में कामयाबी हासिल की है। यह बात भी सही है कि गढचिरोली परिक्षेत्र की जिम्मेदारी संभाल रहे डीआईजी संदीप पाटिल का अनुभव और योगदान भी नक्सल विरोधी ऑपरेशन की कामयाबी में कारगर साबित हुआ है।
हालांकि अभी डीआईजी संदीप पाटिल इस पद पर बने हुए हैं लेकिन गढचिरोली की कमान संभाल रहे 3 अन्य अनुभवी आईपीएस अधिकारियों के एक साथ तबादले कर दिए जाने से गढचिरोली में नक्सल विरोधी अभियान का अब आगे क्या होगा? यह सवाल उठने लगा है।
इससे पहले भी गढचिरोली के आईपीएस अधिकारियों के तबादले होते रहे है लेकिन पहले सरकार यह कोशिश करती थी कि इन तीन महत्वपूर्ण पदों के आईपीएस अधिकारियों को एक साथ तबादले पर न भेजा जाए। कई बार तो सरकार ने यह भी किया है कि गढचिरोली के अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक को ही गढचिरोली का एसपी बना दिया गया। इसका फायदा यह हुआ कि ढाई से 3 साल गढचिरोली में अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक के तौर पर काम करते समय नक्सल विरोधी अभियानों के संबंध में वह आईपीएस अधिकारी काफी कुछ जान लेता था।
इस तरह के अभियान में शामिल होने और कई जटिल ऑपरेशन को लीड करने की वजह से यह आईपीएस अधिकारी भविष्य में जब एसपी के तौर पर गढचिरोली की कमान संभालता था तो नक्सल विरोधी अभियान का सक्सेस रेट ज्यादा हो जाता था।
यह भी कोशिश बीच के कुछ दिनों में हुई है की यहां के 3 आईपीएस अधिकारियों में से एसपी का तबादला होने के बाद वहां के अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक, नए एसपी की टीम में बने रहते थे। जिससे गढचिरोली की कमान संभालने वाले नए आईपीएस अधिकारी को इन दो पुराने आईपीएस अधिकारियों से मदद मिल जाती थी।
नए एसपी के लिए नए जिले में काम करते समय कठिनाई कम हो जाती थी लेकिन अबकी बार गढचिरोली के तीनों महत्वपूर्ण आईपीएस अधिकारियों को एक साथ तबादला दिए जाने की वजह से इसका सीधा असर नक्सल विरोधी अभियानों पर पड़ने की आशंका प्रबल हो गई है। यह डर सताने लगा है कि कहीं पिछले कुछ वर्षों में दबे बैठे नक्सली आने वाले समय में सक्रिय होकर अपनी खो रही जमीन वापस लेने की कोशिश ना करते दिखाई दे।
सरकार ने आईपीएस अधिकारियों के तबादले करते समय एक बात अच्छी की है कि गढचिरोली परिक्षेत्र के डीआईजी संदीप पाटिल को फिलहाल यहीं पर रखा है। सभी जानते हैं कि संदीप पाटिल ने उनके एसपी पद के कार्यकाल के दौरान ऐसे कई अभियान चलाएं जिसका नतीजा यह हुआ कि आज नक्सली संगठन गढचिरोली में लगभग खत्म होने के कगार पर पहुंच गए हैं।
संदीप पाटिल जैसे अनुभवी आईपीएस अधिकारी यहां मौजूद होने से नक्सलियों के लिए अपनी जमीन वापस लेना इतना आसान भी नहीं होगा फिर भी यह बात सच है कि इन तीन आईपीएस अधिकारियों के पद एक साथ रिक्त किए जाने की वजह से नक्सल विरोधी अभियान पर असर जरूर होगा।
तबादलों की प्रक्रिया पर पुराने वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी यह कह रहे हैं कि सरकार ने एक साथ तीनों अधिकारियों के तबादले करते समय यहां नए अधिकारी को भेजने की व्यवस्था पहले करनी चाहिए साथ ही जो नए आईपीएस इन पदों पर भेजे जाए उनके लिए ऐसे अधिकारी को तरजीह दी जानी चाहिए, जो पहले गढचिरोली पुलिस का हिस्सा रह चुके हैं।
मतलब गढचिरोली में नक्सल विरोधी अभियान का जिन आईपीएस अधिकारियों को अनुभव है और जो अधिकारी गढचिरोली में पुलिस के काम से परिचित है ऐसे ही अधिकारियों को यहां भेजा जाना चाहिए क्योंकि लंबे समय तक जिले की कमान संभाल रहे आईपीएस अधिकारियों ने अपनी टीम के साथ मिलकर नक्सलियों पर नकेल कसने में कामयाबी हासिल की है और यह सभी भली-भांति जानते हैं की नक्सली संगठन हमेशा अवसर तलाशते रहते हैं।
आज जो नक्सली गतिविधियां यहां लगभग खत्म सी नजर आ रही है वह असल में अच्छे मौके के इंतजार में है। जो शायद एक साथ हुए तबादलों के रूप में उन्हें मिल सकता है। बेहतर होगा कि गढचिरोली जिले को लेकर सरकार अपने पुराने अनुभव देखते हुए ही आईपीएस अधिकारियों के तबादले किया करे।
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