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संयुक्त राष्ट्र में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल पर 11 दिसंबर 2014 को संयुक्त राष्ट्र के 177 सदस्यों द्वारा 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाने के प्रस्ताव को मंजूरी मिली
By लोकमत समाचार सम्पादकीय
संयुक्त राष्ट्र में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल पर 11 दिसंबर 2014 को संयुक्त राष्ट्र के 177 सदस्यों द्वारा 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाने के प्रस्ताव को मंजूरी मिली. 21 जून 2015 से हर साल अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाया जाता है. इस दौरान योग ने शारीरिक व्यायाम के रूप में अपना एक अलग स्थान बनाया है. आज यह दुनिया भर में लोकप्रिय हो चुका है जो बेहतर स्वास्थ्य के साथ-साथ आयु को भी बढ़ाता है.
भारत में योग साधना की परंपरा सनातन काल से ही चली आ रही है. हमारे ऋषियों-मुनियों का पूरा जीवन ही योगमय रहा है. वैदिक काल से ही उन्हें योग का ज्ञान था.
अनादिकाल से हमारे वैदिक ऋषियों ने योग साधना को ब्रह्म तक पहुंचने का मार्ग बताया है. आत्मा से परमात्मा का मिलन योग साधना की पूर्णता कहा गया है. भगवान शिव को आदियोगी कहा गया है. त्रेता युग में महर्षि वाल्मीकि, विश्वामित्र जैसे अनेक ऋषियों-महर्षियों ने योग साधना के बल पर ही परमात्मा को जाना था.
गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा कि 'इमं विवस्वते योगम्', इस अविनाशी योग को मैंने आरंभ में सूर्य से कहा. सूर्य ने इसे स्वयंभू आदि मनु से कहा. गीता में राजयोग और अक्षर ब्रह्मयोग का विस्तृत वर्णन भी किया गया है. भगवान द्वारा उपदिष्ट वह आदिज्ञान वैदिक ऋषियों से लेकर आज तक अक्षुण्ण प्रवाहित है. ब्रह्मवेत्ताओं ने योग को आत्मा से परमात्मा के मिलन का मार्ग बताया है.
महर्षि पतंजलि ने अष्टांग योग का निरूपण किया है. इसमें योग के आठ अंग बताए गए हैं. अष्टांग योग अथर्ववेद के छठवें कांड में आया है. अष्टांग योग और षडांग दोनों योगों का नाम वहां आया है पर अष्टांग योग की व्याख्या महर्षि पतंजलि ने अपने योग शास्त्र में की है. ऋग्वेद में ज्ञान को प्रकट करने वाले युग-युग में अध्यात्म तत्व का संदेश देने गुरुओं का वर्णन किया गया है.
इससे स्पष्ट है कि महर्षि पतंजलि से पूर्व भी वैदिक काल में ब्रह्म विद्या योग के कई आचार्य हो चुके हैं. नारायण, कुत्स, बेन, अछली, उन्मोचन, भृगु आदि ऋषियों ने अध्यात्म के गंभीर और गुप्त तत्वों का निरूपण किया है.
योग की पांच भूमियों का वर्णन और योग के साधनों का क्रम भेद से वर्णन इन ऋषियों के द्वारा बनाए गए मंत्रों में है. इस प्रकार अध्यात्म विद्या के विस्तार की प्रणाली वैदिक युग से ही चली आ रही है और वैदिक संस्कृति के जीवन को सरस करती हुई दैदीप्यमान हो रही है.
Rani Sahu
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