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प्लास्टिक पर 1 जुलाई से सरकार ने प्रतिबंध तो लागू कर दिया है लेकिन उसका असर नाममात्र का ही है
By लोकमत समाचार सम्पादकीय
प्लास्टिक पर 1 जुलाई से सरकार ने प्रतिबंध तो लागू कर दिया है लेकिन उसका असर नाममात्र का ही है. वह भी इसके बावजूद कि 19 तरह की प्लास्टिक की चीजों में से यदि किसी के पास एक भी पकड़ी गई तो उस पर एक लाख रुपये का जुर्माना और पांच साल की सजा हो सकती है.
इतनी सख्त धमकी का कोई ठोस असर दिल्ली के बाजारों में कहीं दिखाई नहीं पड़ा है. अब भी छोटे-मोटे दुकानदार प्लास्टिक की थैलियां, गिलास, चम्मच, काड़ियां, तश्तरियां आदि हमेशा की तरह बेच रहे हैं.
ये सब चीजें खुलेआम खरीदी जा रही हैं. इसका कारण क्या है? यही है कि लोगों को अभी तक पता ही नहीं है कि प्रतिबंध की घोषणा हो चुकी है. नेता लोग अपने राजनीतिक विज्ञापनों पर करोड़ों रुपया रोज खर्च करते हैं लेकिन प्लास्टिक जैसी जानलेवा चीज पर प्रतिबंध का प्रचार उन्हें महत्वपूर्ण ही नहीं लगता.
नेताओं ने कानून बनाया, यह तो बहुत अच्छा किया लेकिन ऐसे कानूनों की उपयोगिता का भली-भांति प्रचार करने की जिम्मेदारी जितनी सरकार की है, उससे ज्यादा हमारे राजनीतिक दलों और समाजसेवी संगठनों की है. प्लास्टिक का इस्तेमाल एक ऐसा अपराध है, जिसे हम 'सामूहिक हत्या' की संज्ञा दे सकते हैं. इसे रोकना आज कठिन जरूर है लेकिन असंभव नहीं है.
सरकार को चाहिए था कि इस प्रतिबंध का प्रचार वह जमकर करती और प्रतिबंध-दिवस के दो-तीन माह पहले से ही 19 प्रकार के प्रतिबंधित प्लास्टिक बनाने वाले कारखानों को बंद करवा देती. उन्हें कुछ विकल्प भी सुझाती ताकि बेकारी नहीं फैलती. ऐसा नहीं है कि लोग प्लास्टिक के बिना नहीं रह पाएंगे.
अब से 70-75 साल पहले तक प्लास्टिक की जगह कागज, पत्ते, कपड़े, लकड़ी और मिट्टी के बने सामान सभी इस्तेमाल करते थे. भारत चाहे तो अपने बृहद अभियान के जरिये सारे विश्व को रास्ता दिखा सकता है.

Rani Sahu
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