सम्पादकीय

ब्लॉगः नदी जोड़ो परियोजना... विवाद हैं कि सुलझते नहीं...

Rani Sahu
2 Sep 2022 1:27 PM GMT
ब्लॉगः नदी जोड़ो परियोजना... विवाद हैं कि सुलझते नहीं...
x
By प्रमोद भार्गव
देश में उत्तरप्रदेश और मध्यप्रदेश के बीच केन और बेतवा नदियों को जोड़ने की स्वीकृति एक अच्छी शुरुआत मानी जा रही है, लेकिन अन्य नदियों को परस्पर जोड़ने वाली परियोजनाओं पर राज्यों में सहमति बनना मुश्किल हो रहा है। जल शक्ति मंत्रालय ने कहा है कि गोदावरी-कृष्णा, कृष्णा-पेन्नार-कावेरी नदी जोड़ो परियोजनाओं के जल के उपयोग को लेकर व्यावहारिक सहमति राज्यों के बीच नहीं बन पा रही है। राज्य अधिशेष पानी के हस्तांतरण और आवंटन से जुड़े जटिल मुद्दों पर सहमत नहीं हैं। इसी तरह पार-ताप्ती-नर्मदा परियोजना पर महाराष्ट्र और गुजरात ने आगे काम करने से इंकार कर दिया है। राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में इस योजना के तहत 'राष्ट्रीय जल विकास एजेंसी' ने व्यवहार्यता रिपोर्ट तैयार करने के लिए 30 अंतरराज्यीय नदियों की पहचान की है। इनमें प्रायद्वीपीय घटक के रूप में 16 और हिमालयी घटक के रूप में 14 नदी जोड़ो प्रस्ताव शामिल हैं। इनमें से आठ परियोजनाओं की विस्तृत परियोजना रिपोर्ट तैयार हो चुकी है, जबकि अन्य पर काम चल रहा है।
भारत में नदियों के जल का बंटवारा, बांधों का निर्माण और राज्यों के बीच उसकी हिस्सेदारी एक गंभीर व अनसुलझी समस्या बनी हुई है। इसका मुख्य कारण नदी जैसे प्राकृतिक संसाधन के समुचित व तर्कसंगत उपयोग की जगह राजनीतिक सोच से प्रेरित होकर नदियों के जल का दोहन करना है। कर्नाटक और तमिलनाडु की जीवनरेखा मानी जाने वाली नदी कावेरी के जल को लेकर देश के दो बड़े राज्यों में हिंसा और आगजनी के दृश्य देश ने देखे हैं। कावेरी दोनों राज्यों के करोड़ों लोगों के लिए वरदान है, लेकिन निहित राजनीतिक स्वार्थों के चलते कर्नाटक और तमिलनाडु की जनता के बीच केवल आगजनी और हिंसा के ही नहीं, सांस्कृतिक टकराव के हालात भी उत्पन्न होते रहे हैं।
इसी तरह तमिलनाडु व केरल के बीच मुल्लापेरियार बांध की ऊंचाई को लेकर भी विवाद गहराया हुआ है। तमिलनाडु इस बांध की ऊंचाई 132 फुट से बढ़ाकर 142 फुट करना चाहता है, वहीं केरल इसकी ऊंचाई कम रखना चाहता है। इस परिप्रेक्ष्य में केरल का दावा है कि यह बांध खतरनाक है, इसीलिए इसकी जगह नया बांध बनना चाहिए। जबकि तमिलनाडु ऐसे किसी खतरे की आशंका को सिरे से खारिज करता है। गौरतलब है कि पेरियार नदी पर बंधा यह बांध 1895 में अंग्रेजों ने मद्रास प्रेसिडेंसी को 999 साल के पट्टे पर दिया था। जाहिर है, अंग्रेजों ने अपने शासन काल में अपनी सुविधा और जरूरत के मुताबिक बांधों का निर्माण व अन्य विकास कार्य किए। लेकिन स्वतंत्र भारत में उन कार्यों, फैसलों और समझौतों की राज्यों की नई भौगोलिक सीमा के गठन व उस राज्य में रहने वाली जनता की सुविधा व जरूरत के हिसाब से पुनर्व्याख्या करने की जरूरत है क्योंकि अब राज्यों के तर्क वर्तमान जरूरतों के हिसाब से सामने आ रहे है। इस लिहाज से केरल का तर्क है कि इस पुराने बांध की उम्र पूरी हो चुकी है, लिहाजा यह कभी भी टूटकर धराशायी हो सकता है। लेकिन तमिलनाडु की शंका है कि केरल जिस नए बांध के निर्माण का प्रस्ताव रख रहा है, जरूरी नहीं कि वह तमिनाडु को पूर्व की तरह पानी देता रहेगा। इसलिए प्रस्ताव में दोनों राज्यों के हितों से जुड़ी शर्तों का पहले अनुबंध हो, तब बांध को तोड़ा जाए।
इसी तरह पांच नदियों वाले प्रदेश पंजाब में रावी व ब्यास नदी के जल बंटवारे पर पंजाब और हरियाणा पिछले कई दशकों से अदालती लड़ाई लड़ रहे हैं। इनके बीच दूसरा जल विवाद सतलुज और यमुना लिंक का भी है। प्रस्तावित योजना के तहत सतलुज और यमुना नदियों को जोड़कर नहर बनाने से पूर्वी व पश्चिमी भारत के बीच अस्तित्व में आने वाले जलमार्ग से परिवहन की उम्मीद बढ़ जाएगी। इस मार्ग से जहाजों के द्वारा सामान का आवागमन शुरू हो जाएगा। हरियाणा ने तो अपने हिस्से का निर्माण कार्य पूरा कर लिया है, लेकिन पंजाब को इसमें कुछ नुकसान नजर आया तो उसने विधानसभा में प्रस्ताव लाकर इस समझौते को ही रद्द कर दिया। अब यह मामला अदालत में है। इसी तरह कर्नाटक, महाराष्ट्र और गोवा राज्यों के बीच महादयी नदी के जल बंटवारे को लेकर दशकों से विवाद है।
गौरतलब है कि न्यायाधीश जेएम पंचाल व महादयी नदी जल ट्रिब्यूनल ने तीनों राज्यों को सलाह दी थी कि जल बंटवारे का हल परस्पर बातचीत व किसी तीसरे पक्ष के बिना हस्तक्षेप के सुलझा लिया जाए, लेकिन विवाद हैं कि सुलझते नहीं। बहरहाल, अंतरराज्यीय जल विवादों का राजनीतिकरण इसी तरह होता रहा तो देश की जीवनदायी नदियों को जोड़ने की परियोजनाएं अधर में लटकी रहेंगी।
Rani Sahu

Rani Sahu

    Next Story