सम्पादकीय

ब्लॉग: पुतिन तानाशाह, किसी शेर से भी ज्यादा खतरनाक

Rani Sahu
1 March 2022 4:23 PM GMT
ब्लॉग: पुतिन तानाशाह, किसी शेर से भी ज्यादा खतरनाक
x
चीन के महान दार्शनिक कन्फ्युशियस एक बार जंगल से गुजर रहे थे

राठौर विचित्रमणि सिंह

चीन के महान दार्शनिक कन्फ्युशियस एक बार जंगल से गुजर रहे थे. वहां उन्हें एक महिला के रोने की आवाज सुनाई दी. अपने शिष्यों के साथ कन्फ्युशियस उस महिला के पास पहुंचे और रोने का कारण पूछा. उस महिला ने कहा कि उसके बच्चे को शेर खा गया. कन्फ्युशियस ने पूछा कि तुम इस जंगल में क्यों रहती हो तो उस महिला ने जवाब दिया कि यहां कोई तानाशाह नहीं रहता. कन्फ्युशियस अपने शिष्यों की तरफ मुड़े और कहा कि याद रखना, तानाशाह किसी शेर से भी ज्यादा खतरनाक होता है
बात सही भी है क्योंकि शेर किसी दूसरे प्राणी पर घात लगाता है लेकिन तानाशाह किसी राष्ट्र, समाज और संपूर्ण नागरिकों पर घात लगाता है. आज दुनिया के सामने एक नया तानाशाह बनकर रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन आए हैं. पुतिन ने जिस तरह यूक्रेन की सार्वभौमिकता को रौंदने की कोशिश की, जिस तरह से एक स्वतंत्र देश को अपने अहंकार, जिद और स्वार्थ के पैरों तले कुचलने का प्रयास किया, उसके बाद ये बात महत्वपूर्ण नहीं रह जाता कि भारत के साथ रूस के कितने अच्छे रिश्ते रहे हैं बल्कि महत्वपूर्ण ये है कि भारत समेत पूरी दुनिया के लिए पुतिन कितना बड़ा खतरा बन चुके हैं. निपट भावुकता कई बार खतरे में डाल देती है. इसीलिए ये कहकर हम अपने राष्ट्रीय और मानवीय कर्तव्यों से बच नहीं सकते कि रूस हमारा पुराना सहयोगी और मित्र राष्ट्र है.
पुतिन ने रूस को अपनी निजी जागीर बना ली!
दुनिया को बेहतर बनाने का सबसे शानदार माध्यम लोकतंत्र है. अमेरिका के महान राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन ने कहा था कि लोकतंत्र जनता का, जनता के लिए, जनता के द्वारा चुनी हुई शासन व्यवस्था है. लेकिन पुतिन ऐसे राष्ट्रपति हैं जिन्होंने रूस को अपनी निजी जागीर बना ली. आज वो रूस के लोगों को सोवियत संघ के गौरवशाली अतीत का सपना दिखाते हैं लेकिन उस सपने की खाल में उनकी महत्वाकांक्षाएं अपने नख दंत छुपाकर बैठी हैं. पुतिन 22 साल पहले राष्ट्रपति बने थे. रूस के संविधान के मुताबिक कोई भी शख्स दो बार से ज्यादा राष्ट्रपति नहीं रह सकता था, तो पुतिन ने संविधान तक बदल दिया. यहां तक कि 2021 में ऐसी व्यवस्था कर दी कि वो 2036 तक राष्ट्रपति बने रहेंगे. अगर 2036 तक पुतिन के हाथों में रूस की बागडोर रह गई तो वो स्टालिन के कार्यकाल को भी पीछे छोड़ देंगे.
पुतिन की एक तस्वीर देखी जिसमें वो लेनिन और स्टालिन की तस्वीर को बड़े गौर से देख रहे थे. क्या पता, वो लेनिन का नायकत्व और स्टालिन की तानाशाही को मिलाकर अपने लिए नई शख्सियत तलाश रहे हों! जर्मनी के कार्ल मार्क्स ने दुनिया की उपेक्षित वंचित तबकों के लिए समता, समानता और बेहतर भविष्य का एक सिद्धांत दिया जिसे समाजवाद कहते हैं. मार्क्स ने सर्वहारा की सर्वसत्ता का सपना देखा था और सोचा था कि ये सपना किसी दिन इंग्लैंड, फ्रांस या जर्मनी में पूरा होगा जब पूंजीवाद के खिलाफ वहां के मजदूर उठ खड़े होंगे. लेकिन मार्क्स के सिद्धांत को व्यावहारिक धरातल पर रूस के व्लादिमीर लेनिन ने उतारा. रूस तब तक मूलरूप से कृषि प्रधान लेकिन जार की तानाशाही के बीच एक सामंती समाज था. लेकिन लेनिन ने वहां के मेहनतकश लोगों की जिंदगी में वोल्शेविक क्रांति की वो रोशनी फूंक दी, जिसकी ताप से सिकुड़ी हुई मानवता गरमाहट महसूस करती है. लेकिन पहले रूस और फिर सोवियत संघ की सत्ता संभालने के सात साल के अंदर ही लेनिन की मृत्यु हो गई. लेनिन के पास शीर्ष पद के लिए दो दावेदार थे- ट्राट्स्की और स्टालिन. दोनों में तीन साल के सत्ता संघर्ष के बाद स्टालिन को सोवियत संघ की बागडोर मिल गई. स्टालिन ने सोवियत संघ के विकास की योजना तो बनाई लेकिन 26 साल तक सोवियत संघ स्टालिन के खौफ और तानाशाही का गुलाम बना रहा. स्टालिन में आत्ममुग्धता इतनी ज्यादा थी कि अपने पोलित ब्यूरो में वो अपने से लंबे कद के आदमी को नहीं रखते थे.
पुतिन की तानाशाह
आज वही आत्ममुग्धता, वही अहंकार, वही महत्वाकांक्षा पुतिन में दिखती है. यूक्रेन के युद्ध के जरिए वो रूस में राष्ट्रवाद का उन्माद पैदा करना चाहते हैं ताकि अपने खिलाफ लोगों के असंतोष और विद्रोह की आवाज को कुचल सकें. पिछले साल के जनवरी में मॉस्को से लेकर दूसरे तमाम शहरों में लाखों लोगों ने पुतिन के खिलाफ मार्च किया तो उनमें बहुत सारे लोगों को जेलों में ठूंस दिया गया. पुलिस की लाठियां बरसीं, वो अलग से. लोग किस कदर नाराज हैं, उसे इस बात से समझिए कि याकुत्स्क में भी हजारों लोग माइनस पचास डिग्री की ठंड में सड़कों पर आए. ऐसा इसलिए हुआ कि वहां के एक नागरिक एलेक्सी नवेलनी ने पुतिन के भ्रष्टाचारों को उजागर किया. लोकतंत्र की मांग की तो नवेलनी को जेल में डाल दिया गया
नवेलनी का गुनाह ये है कि उन्होंने पुतिन के काले धंधे, काले साम्राज्य और अतृप्त रह जाने वाली काली महत्वाकांक्षा का कच्चा चिट्ठा खोल दिया. नवेलनी का गुनाह ये है कि वो अपने देश से प्यार करते हैं और इसीलिए अपने देश को चलाने के लिए किसी तानाशाह को नहीं बल्कि जनता के चुने हुए नेता की दरकार रखते हैं और इसी गुनाह के कारण उनको जेल में जहर तक दिया गया ताकि धीरे धीरे उनकी सोचने समझने की शक्ति कुंद होती जाए.
अब आप ही सोचिए कि हमें दोस्त के रूप में कैसा रूस चाहिए. वो रूस जिसका राष्ट्रपति अपनी सुविधाओं का राजमहल खड़ा करता है और अपने अपराधों को छुपाने के लिए देश को युद्ध की भटठी में झोंक देता है? वो रूस जिसका राष्ट्रपति किसी कमजोर देश पर हमला करता है और जब उसकी दाल नहीं गलती तो एटम बम चलाने की बचकानी और कायराना धमकी देता है? या फिर ऐसा रूस दोस्त के रूप में चाहिए जो लोकतंत्र के मर्म को समझे और हथियारों का कारोबारी बनने की जगह बेहतर दुनिया बनाने में मददगार बने?
बेशक रूस एक महान देश है जिसकी गौरवशाली परंपरा है और ऐतिहासिक विरासत भी. जिसका भारत से पुराना और प्रगाढ़ संबंध है. लेकिन उस रूस को चलाने के लिए कोई सनकी शासक नहीं होना चाहिए. और हां, जब मैं रूस की बात कर रहा हूं तो इसका ये मतलब बिल्कुल मत निकालिए कि मैं अमेरिका का पक्षधर हो रहा हूं. एक पत्रकार के रूप में मेरी ये दृढ़ मान्यता है कि इस दुनिया को बेहतर बनाने के लिए जरूरी है कि सुपर पावर की ग्रंथि किसी देश में घर न करे और किसी देश में कोई तानाशाह अचानक अपने स्वार्थों के लिए दुनिया को मौत के मुहाने पर ना ले जाए. इसीलिए अमेरिका, रूस और चीन तीनों ही इस दुनिया के लिए आज बहुत खतरनाक हैं. आखिर शेर से भी खतरनाक कोई तानाशाह जो होता है.
Rani Sahu

Rani Sahu

    Next Story