सम्पादकीय

ब्लॉगः बढ़ते शहरीकरण के साथ अधिक जोखिम में हमारे शहर!, हर जगह बढ़ रही हैं चरम मौसम की घटनाएं

Rani Sahu
15 Sep 2022 4:54 PM GMT
ब्लॉगः बढ़ते शहरीकरण के साथ अधिक जोखिम में हमारे शहर!, हर जगह बढ़ रही हैं चरम मौसम की घटनाएं
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By लोकमत समाचार सम्पादकीय
बेंगलुरु में हाल ही में भीषण वर्षा के बाद तमाम लोगों को अपना घर छोड़ कर सुरक्षित स्थानों पर जाना पड़ा और भारत के इस आईटी हब ने 225 करोड़ रुपए से अधिक का नुकसान दर्ज किया इस बाढ़ की वजह से।
दुनिया भर में हर साल जलवायु परिवर्तन के प्रभाव, उसकी तीव्रता और आवृत्ति बेहद तेजी से बढ़ रहे हैं। चाहे बांग्लादेश में अभूतपूर्व बाढ़ हो, फिर पाकिस्तान में आई भयानक बाढ़, उसके बाद भारत में असम में, फिर मध्य प्रदेश से सटे राजस्थान के कुछ हिस्सों में अत्यधिक बारिश, और हाल ही में बेंगलुरु में बारिश के बाद बाढ़ जैसी स्थिति। सभी घटनाओं ने दिखाया है कि कैसे दक्षिण एशिया में चरम घटनाओं की मात्रा में तेजी से वृद्धि हुई है।
यूएन के इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) ने पिछले साल पहले ही चेतावनी दी थी कि अगर उत्सर्जन अनियंत्रित रहा तो आने वाले वर्षों में पूरे दक्षिण एशिया में चरम मौसम की घटनाओं में वृद्धि होगी। एशियाई शहरी क्षेत्रों को अनुमानित जलवायु परिवर्तन, चरम घटनाओं, अनियोजित शहरीकरण और तेजी से भूमि-उपयोग परिवर्तन से उच्च जोखिम वाले स्थान माना जाता है। बढ़ते शहरीकरण के साथ, हमारे शहर अधिक जोखिम में हैं क्योंकि मानव जीवन के नुकसान, संपत्ति की क्षति और आर्थिक नुकसान की मात्रा ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में अधिक है। मुंबई, कोलकाता, बेंगलुरु, दिल्ली और चेन्नई जैसे शहर लाखों लोगों के घर हैं और जलवायु जोखिम बहुत अधिक है।
एशिया विश्व की 54% शहरी आबादी का घर है, और 2050 तक एशिया के 3.3 अरब लोगों में से 64% लोग शहरों में रह रहे होंगे। एशिया दुनिया के सबसे बड़े शहरी समूहों का भी घर है: टोक्यो (37 मिलियन निवासी), नई दिल्ली (29 मिलियन) और शंघाई (26 मिलियन) शीर्ष तीन स्थान पर हैं, जबकि काहिरा, मुंबई, बीजिंग और ढाका में लगभग 20-20 मिलियन लोगों के घर हैं। 2028 तक नई दिल्ली के दुनिया में सबसे अधिक आबादी वाला शहर बनने का अनुमान है।
गर्म वातावरण में शहरी बाढ़ हमारे शहरों और कस्बों के लिए एक बड़ा खतरा है। जलवायु परिवर्तनशीलता के साथ क्षेत्रीय पारिस्थितिक चुनौतियों ने बाढ़ के जोखिम को बढ़ा दिया है। शहरी बाढ़ जो मुख्य रूप से नगरपालिका और पर्यावरण शासन की चिंता थी, अब 'आपदा' की शक्ल ले चुकी है।
Rani Sahu

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