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By विवेकानंद शांडिल
साल 2024 लोकसभा चुनाव में अब सवा साल बचे हैं लिहाजा सभी पार्टियां तैयारी में जुट गई है। विपक्षी दलों के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सबसे बड़े प्रतिद्वंदी बनने को लेकर नूरा कुश्ती चल रही है। बीते दिनों ही इसका एक दृश्य बिहार की राजधानी पटना में देश ने देखा। तेलंगाना के मुख्यमंत्री केसीआर राव और बिहार के मुख्यमंत्री नीतrश कुमार के साझा प्रेस कांफ्रेंस में जो नीतीश और केसीआर के बीच जो जुगलबंदी दिखी उससे कुछ हद तक जरूर स्पष्ट होता है कि मोदी के खिलाफ विपक्ष की एकजुटता कितना मुश्किल है!
दोनों में मोदी के प्रतिद्वंदी बनने की चाह
इन सबके बीच बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल लगातार 2024 के लिए मोदी के खिलाफ विपक्ष के चेहरे के रूप में या यूं कहें प्रधानमंत्री उम्मीदवार के रूप में अपने - अपने दावे ठोक रहे हैं। दोनों सीधे मुंह से अपनी दावेदारी तो नहीं ठोकते हैं लेकिन बीते दिन बिहार में जदयू ने एक पोस्टर के जरिए 2024 में मोदी के सामने नीतीश की दावेदारी ठोकी। वहीं आये दिन आम आदमी पार्टी के नेताओं के बयान और ट्वीट पोस्ट के जरिए केजरीवाल को मोदी का सबसे बड़ा प्रतिद्वंदी बताने का दावा किया जा रहा है।
पीएम बनने की एक जैसी आकांक्षा
अटल बिहारी वायपेयी नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार में केंद्रीय मंत्री और बिहार के 8 बार मुख्यमंत्री नीतीश और देश की राजधानी दिल्ली के तीन बार मुख्यमंत्री बने केजरीवाल दोनों की नजर केंद्रीय सत्ता पर है। दोनों की आकांक्षा प्रधानमंत्री बनने की है।
एक जैसे पलटीमार
पीएम बनने के लिए साल 2013 में नीतीश ने एनडीए से नाता तोड़ा था। और फिर साल 2015 में राजद - कांग्रेस के साथ गठबंधन कर बिहार में सरकार बनाई। 2024 लोकसभा चुनाव से पहले एक बार फिर नीतीश एनडीए से अलग होकर महागठबंधन नीत सरकार का नेतृत्व कर रहे हैं।
उसी प्रकार दिल्ली में केजरीवाल ने जिस कांग्रेस के भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ उठाकर राजनीतिक करियर का आगाज किया। साल 2013 में जब सरकार बनाने की बात आई तो कांग्रेस से समर्थन लेकर 49 दिन की सरकार चलाई। इसी दौरान केजरीवाल ने केंद्र की सत्ता में जगह पाने के मकसद से मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दिया और बनारस में मोदी के खिलाफ चुनाव लड़े।
साल 2015 के दिल्ली विधान सभा चुनाव के पहले केजरीवाल दिल्ली घूम - घूम बोले थे कि भविष्य में वो अब कभी भी कांग्रेस के साथ गठबंधन नहीं करेंगे लेकिन 2019 में केजरीवाल के सुर फिर से बदल गए और दिल्ली में गठबंधन के लिए कांग्रेस के सामने गिड़गिड़ाते दिखे।
एक बार 2024 लोकसभा चुनाव से पहले केजरीवाल मोदी को चुनौती देने की कोशिश कर रहे हैं , बस जगह इस बार बनारस नहीं मोदी का गृह राज्य गुजरात है।
दोनों स्वयंभू ईमानदार
नीतीश-केजरीवाल में ये भी एक गजब की समानताएं हैं कि दोनों Self Claimed ईमानदार हैं। दोनों ही बड़े ही चलाकी से विरोधियों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगा देते हैं लेकिन जब भ्रष्टाचार के आरोप इन पर या इनके नेताओं पर लगते हैं तो दोनों इसे राजनीतिक से प्रेरित आरोप बताकर पीछा छुड़ा लेने की कोशिश करते हैं।
केजरीवाल तो हर बार आपा खो बैठते है। याद कीजिए! जब केजरीवाल के प्रधान सचिव राजेंद्र कुमार के दफ्तर पर सीबीआई की रेड पड़ी थी तो किस तरह केजरीवाल राजेंद्र कुमार के बचाव में उतरे थे। राजेंद्र कुमार का बचाव करते करते केजरीवाल पीएम मोदी को कोवार्ड और साइकोपैथ तक कह दिए थे। केजरीवाल आज भी उसी अप्रोच के साथ भ्रष्टाचार में फंसे अपने मंत्रियों का बचाव करते हैं। वह चाहे दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सतेंद्र जैन का मामला हो या वर्तमान में चल रहे शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया के खिलाफ भ्रष्टाचार का मामला।
एक जैसी सेक्युलर सोच
साल 2019 में जब राम मंदिर पर फैसला आया तो केजरीवाल सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया। और जब साल 2020 में अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण का भव्य रूप से शिलान्यास हुआ तो इस कार्यक्रम में शरीक होने के लिए केजरीवाल बेताब दिखे। गौरतलब है कि राम मंदिर के शिलान्यास कार्यक्रम में केजरीवाल को निमंत्रण नहीं मिला था।
वहीं कुछ साल पहले ही केजरीवाल राम मंदिर की जगह अस्पताल और आईआईटी जैसे संस्थान बनाने की वकालत करते थे। खैर अब तो केजरीवाल हनुमान भक्त भी बन गए!
नीतीश की सेक्युलरवादिता का पैमाना इसी से आंका जा सकता है कि जो नीतीश कुछ दिन पहले तक जिस बीजेपी के साथ थे, आज उससे अलग होने के बाद सेक्युलर दलों को मोदी और बीजेपी के खिलाफ एकजुट होने का आह्वान कर रहे हैं।
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