सम्पादकीय

ब्लॉग: रहस्यमय सर्कुलर...नाराजगी और पीएमओ तक हलचल! मुकुल रोहतगी ने क्यों ठुकराया फिर अटॉर्नी जनरल बनने का प्रस्ताव

Rani Sahu
30 Sep 2022 6:16 PM GMT
ब्लॉग: रहस्यमय सर्कुलर...नाराजगी और पीएमओ तक हलचल! मुकुल रोहतगी ने क्यों ठुकराया फिर अटॉर्नी जनरल बनने का प्रस्ताव
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By लोकमत समाचार सम्पादकीय
13 सितंबर को घोषणा की गई थी कि मुकुल रोहतगी फिर से अटॉर्नी जनरल होंगे. वे तीन साल तक 2017 तक इस पद पर रहे थे. पिछले हफ्ते इस कॉलम में बताया गया था कि कैसे रोहतगी को दूसरी बार प्रधानमंत्री ने चुना था. लेकिन इससे पहले कि वे पदभार ग्रहण कर पाते, कानून मंत्रालय ने उसी शाम एक सर्कुलर जारी कर एजी (रोहतगी) और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता के बीच कार्य विभाजन को सूचीबद्ध किया. यहां उल्लेखनीय है कि तुषार मेहता केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के भरोसेमंद व्यक्ति हैं और पांच साल से एसजी पद पर हैं.
सर्कुलर में कहा गया कि सुप्रीम कोर्ट में मामलों की सूची पहले दैनिक आधार पर एजी के समक्ष रखी जाएगी. एजी उन मामलों का चयन करेंगे, जिन्हें वह अपनी उपस्थिति के लिए आवश्यक समझते हैं. इसके बाद सूची को सॉलिसिटर जनरल के समक्ष रखा जाएगा. सरसरी तौर पर, यह एक नियमित मामला जैसा लग रहा था. लेकिन हंगामा इसलिए मचा क्योंकि एजी को एसजी और अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल को काम आवंटित करने का अधिकार नहीं दिया गया था. यह एजी के रूप में उनके पहले कार्यकाल के दौरान मौजूद व्यवस्था के विपरीत था.
जाहिर तौर पर रोहतगी नाराज थे क्योंकि वे एक व्यावहारिक व्यक्ति हैं जो संवेदनशीलता को ध्यान में रखते हुए न्यायिक मुद्दों को संभालना जानते हैं. वे प्रधानमंत्री के कहने पर एजी के रूप में सेवा देने के लिए अपनी सुस्थापित प्रैक्टिस छोड़ रहे थे. पता चला है कि रोहतगी ने अपने विचार प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) को बता दिए थे और चाहते थे कि परिपत्र को वापस लिया जाए या आवश्यक संशोधन किया जाए.
समझा जाता है कि कानून मंत्री किरेन रिजिजु ने समझाया कि सर्कुलर का उद्देश्य सरकार के शीर्ष कानून अधिकारियों को मामलों के वितरण और अदालती पेशियों को सुव्यवस्थित करना था. कहा जाता है कि पीएमओ ने सर्कुलर वापस लेने का वादा किया था लेकिन वापस लिया नहीं गया और रोहतगी ने एजी बनने के प्रस्ताव को ठुकरा दिया. इस मामले का पटाक्षेप अभी हुआ नहीं है और पीएमओ में पर्दे के पीछे जो कुछ हुआ वह बाद में सामने आ सकता है.
निरर्थक गई छापेमारी
कुछ महीने पहले कानपुर स्थित पान मसाला समूह पर बड़े पैमाने पर आयकर छापे मारे गए थे, जिसमें कर अधिकारियों ने दावा किया था कि 400 करोड़ रुपए के बेहिसाबी लेनदेन का पता चला है. तलाशी के दौरान 7 किलो सोने के साथ 52 लाख रुपए नगद बरामद किया गया था. कानपुर, नोएडा, गाजियाबाद, दिल्ली और कोलकाता में फैले कुल 31 परिसरों की तलाशी ली गई. वित्त मंत्रालय ने आगे कहा कि डिजिटल और दस्तावेजी साक्ष्यों ने समूह द्वारा बनाई गई कागजी कंपनियों के एक राष्ट्रव्यापी नेटवर्क का खुलासा किया. ऐसी 115 फर्जी कंपनियों का नेटवर्क मिला.
मुख्य 'निदेशकों' ने यह भी स्वीकार किया कि वे केवल 'डमी निदेशक' थे और कमीशन के बदले में आवश्यकता पड़ने पर कागजों के खाली स्थान पर हस्ताक्षर किए. मुखौटा कंपनियों के अब तक 34 फर्जी बैंक खाते मिले हैं. बताया गया कि समूह के मालिक का संबंध सपा नेता अखिलेश यादव से था. लेकिन महीनों बीत गए और यादव के दरवाजे पर किसी ने दस्तक नहीं दी.
कंपनी के खिलाफ आगे कोई कार्रवाई नहीं की गई. पता चला है कि व्यवसायी ने 2017 में ही भाजपा के प्रति अपनी वफादारी बदल ली थी और सत्ताधारी पार्टी के लिए काम कर रहा था. छापेमारी के बाद दिल्ली और लखनऊ में हंगामा मच गया. जल्द ही यह सामने आया कि न तो आयकर और न ही प्रवर्तन निदेशालय या डीआरआई तलाशी अभियान में शामिल थे.
इसके बजाय, ये छापे जीएसटी अधिकारियों द्वारा मारे गए थे. उच्च पदस्थ सूत्रों का कहना है कि छापा मारने वाले विभाग को स्पष्ट रूप से पीछे हटने के लिए कहा गया था. काफी हद तक यही कारण है कि न तो ईडी और न ही आईटी विभाग ने दखल दिया और ईडी द्वारा अब तक पीएमएलए के तहत कोई मामला दर्ज नहीं किया गया है. जाहिर है, यह छापा निरर्थक गया है.
राज्यपाल मलिक की नाराजगी
मेघालय के राज्यपाल सत्यपाल मलिक मोदी सरकार की नीतियों के खिलाफ अपनी नाराजगी जताते हुए निडर हो गए हैं. उन्होंने अपने हमलों को तेज किया है और कुछ मौकों पर उन्होंने व्यक्तिगत रूप से प्रधानमंत्री पर भी शाब्दिक हमला किया है. एक बार उन्होंने कहा कि 'मोदी अहंकार से भरे हैं, प्रधानमंत्री किसी भी तरह की आलोचना को बर्दाश्त नहीं करते हैं और नितिन गडकरी जैसे आलोचकों को दरकिनार कर दिया जाता है, जिनके प्रति देश भर में भारी सद्भावना है और जब गडकरी बोलते हैं तो लोग सुनते हैं.'
मलिक को पीएम और अमित शाह ने राज्यपाल पद के लिए चुना और उन्हें संवेदनशील राज्य जम्मू-कश्मीर भेजा था. हालांकि, उन्हें गोवा में स्थानांतरित कर दिया गया और फिर मेघालय ले जाया गया जो उनकी पसंद नहीं था. उन्होंने सार्वजनिक रूप से किसान आंदोलन का समर्थन किया और तीन कृषि बिलों को वापस लेने की मांग की.
हाल ही में पीएम की तीखी आलोचना करते हुए उन्होंने कहा, 'मोदी ने कभी किसी की सराहना नहीं की. यह उनके स्वभाव में नहीं है.' मलिक निडर हो गए हैं, फिर भी मोदी ने उन्हें हटाया नहीं है. मलिक अक्टूबर की शुरुआत में अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा कर रहे हैं और राजनीतिक गुमनामी के लिए तैयार हो रहे हैं.
Rani Sahu

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