सम्पादकीय

ब्लॉग: बलात्कार और हत्या के दोषियों को छोड़ना ठीक नहीं

Rani Sahu
18 Aug 2022 3:21 PM GMT
ब्लॉग: बलात्कार और हत्या के दोषियों को छोड़ना ठीक नहीं
x
By लोकमत समाचार सम्पादकीय
2002 के दंगों में सैकड़ों निरपराध लोग मारे गए लेकिन जो एक मुस्लिम महिला बिलकिस बानो के साथ जो हुआ, उसके कारण सारा देश शर्मिंदा हुआ था. न सिर्फ बिलकिस बानो के साथ लगभग दर्जन भर लोगों ने बलात्कार किया, बल्कि उसकी तीन साल की बेटी की हत्या कर दी गई. उसके साथ-साथ उसी गांव के अन्य 13 मुसलमानों की भी हत्या कर दी गई.
इस जघन्य अपराध के लिए 11 लोगों को सीबीआई अदालत ने 2008 में आजीवन कारावास की सजा सुनवाई थी. इस मुकदमे में सैकड़ों लोग गवाह थे. जजों ने पूरी सावधानी बरती और फैसला सुनाया था लेकिन इन हत्यारों की ओर से बराबर दया की याचिकाएं लगाई जा रही थीं. किसी एक याचिका पर अपना फैसला सुनाते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि इस याचिका पर विचार करने का अधिकार गुजरात सरकार को है. बस, गुजरात सरकार ने सारे हत्यारों को रिहा कर दिया.
इन हत्यारों को आजन्म कारावास भी मेरी राय में बहुत कम था. ऐसे बलात्कारी हत्यारे किसी भी संप्रदाय, जाति या कुल के हों, उन्हें मृत्युदंड दिया जाना चाहिए. गुजरात सरकार ने न्याय करने की बजाय एक घिसे-पिटे और रद्द हुए कानूनी नियम का सहारा लेकर सारे हत्यारों को मुक्त करवा दिया. हत्यारे और उनके समर्थक उन्हें निर्दोष घोषित कर रहे हैं और उनका सार्वजनिक अभिनंदन भी कर रहे हैं.
गुजरात सरकार ने 1992 के एक नियम के आधार पर उन्हें रिहा कर दिया लेकिन उसने ही 2014 में जो नियम जारी किया था, उसका यह सरासर उल्लंघन है. इस ताजा नियम के मुताबिक ऐसे कैदियों की दया-याचिका पर सरकार विचार नहीं करेगी, 'जो हत्या और सामूहिक बलात्कार के अपराधी हों.'
सर्वोच्च न्यायालय ने 2019 में बिलकिस बानो को 50 लाख रु. हर्जाने के तौर पर दिलवाए थे. अब गुजरात सरकार ने इस मामले में केंद्र सरकार की राय भी नहीं ली. क्या यह काम आसन्न चुनाव को दृष्टि में रखकर किया गया है? यदि ऐसा है तो यह गर्हित कार्य है.
Rani Sahu

Rani Sahu

    Next Story