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सरकार की अग्निपथ योजना पर पक्ष-विपक्ष के नेता कोई गंभीर बहस चलाते, उसमें सुधार के सुझाव देते और उसकी कमजोरियों को दूर करने के उपाय बताते तो माना जाता कि वे अपने नेता होने की जिम्मेदारी निभा रहे हैं
By लोकमत समाचार सम्पादकीय
सरकार की अग्निपथ योजना पर पक्ष-विपक्ष के नेता कोई गंभीर बहस चलाते, उसमें सुधार के सुझाव देते और उसकी कमजोरियों को दूर करने के उपाय बताते तो माना जाता कि वे अपने नेता होने की जिम्मेदारी निभा रहे हैं लेकिन सत्तारूढ़ भाजपा के नेता आंख मींचकर अग्निपथ का समर्थन कर रहे हैं और सारे विपक्षी नेता उस पर कीचड़ उछाल रहे हैं.
सरकार और फौज अपनी मूल योजना पर रोज ही कुछ न कुछ रियायतों की घोषणा कर रही है ताकि हमारे भावी फौजियों की निराशा दूर हो और उनमें थोड़े उत्साह का संचार हो लेकिन लगभग सभी विपक्षी दलों को ऐसा मुद्दा मिल गया है, जिसे भुनाने में वे कसर नहीं छोड़ रहे हैं.
यह तथ्य है कि अग्निपथ योजना के खिलाफ जो जबर्दस्त तोड़-फोड़ देश में हुई है, उसकी पहल स्वतः स्फूर्त थी. उसके पीछे किसी विपक्षी नेता या दल का हाथ नहीं था लेकिन अब विभिन्न पार्टियों के कार्यकर्ता और नेता हाथ में अपने झंडे लिए हुए नारे लगाते घूम रहे हैं. ये वे लोग हैं, जिन्हें न तो खुद फौज में भर्ती होना है और न ही इनके बच्चों को फौजी नौकरी पाना है. जिन नौजवानों को फौजी नौकरी पाना है, उनका गुस्सा स्वाभाविक था.
हर आदमी अपने जीवन में स्थायी सुरक्षा और सुविधा की कामना करता है. कोई भी नौजवान चार साल फौज में बिताने के बाद क्या करेगा, यह प्रश्न उसे विचलित किए बिना नहीं रहेगा. फौज में जाने को ग्रामीण, गरीब और अल्पशिक्षित नौजवान इसलिए भी प्राथमिकता देते हैं कि उन्हें सेवा-निवृत्त होने पर 30-40 साल तक पेंशन और मुफ्त इलाज आदि की सुविधाएं भी मिलती रहती हैं और वे चाहें तो दूसरी नौकरी भी कर सकते हैं.
यह परंपरागत व्यवस्था लेकिन दुनिया के सभी प्रमुख देशों में बदल रही है, क्योंकि फौज में कम उम्र के नौजवानों की ज्यादा जरूरत है. सारी फौज के शस्त्रास्त्रों की खरीद पर जितना पैसा खर्च होता है, उससे ज्यादा पेंशन पर हो जाता है. फौज का आधुनिकीकरण बेहद जरूरी है. सरकार के ये तर्क तो समझ में आते हैं लेकिन कितना अच्छा होता कि अग्निपथ की ज्वाला अचानक भड़काने की बजाय वह इस मुद्दे पर संसद और खबरपालिका में पहले सर्वांगीण बहस करवा देती.
Rani Sahu
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