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अमेरिकी कांग्रेस की अध्यक्ष नैन्सी पेलोसी की ताइवान-यात्रा पर सारी दुनिया का ध्यान केंद्रित हो गया था.
By लोकमत समाचार सम्पादकीय
अमेरिकी कांग्रेस की अध्यक्ष नैन्सी पेलोसी की ताइवान-यात्रा पर सारी दुनिया का ध्यान केंद्रित हो गया था. न तो ताइवान कोई महाशक्ति है और न ही पेलोसी अमेरिका की राष्ट्रपति है. फिर भी उनकी यात्रा को लेकर इतना शोर-शराबा क्यों मच गया? इसीलिए कि दुनिया को यह डर लग रहा था कि ताइवान कहीं दूसरा यूक्रेन न बन जाए.
यहां तो एक तरफ चीन है और दूसरी तरफ अमेरिका! यदि ताइवान को लेकर ये दोनों महाशक्तियां भिड़ जातीं तो तीसरे विश्व-युद्ध का खतरा पैदा हो सकता था लेकिन संतोष का विषय है कि पेलोसी ने शांतिपूर्वक अपनी ताइवान-यात्रा संपन्न कर ली है.
चीन मानता है कि ताइवान कोई अलग राष्ट्र नहीं है बल्कि वह चीन का अभिन्न अंग है. यदि अमेरिका चीन की अनुमति के बिना ताइवान में अपने किसी बड़े नेता को भेजता है तो यह चीनी संप्रभुता का उल्लंघन है. पेलोसी के वहां जाने का अर्थ कुछ दूसरा ही है. चीन ने ताइवान के चारों तरफ कई लड़ाकू जहाज और जलपोत डटा दिए हैं.
अमेरिका ने भी अपने हमलावर जहाज, प्रक्षेपास्त्र और जलपोत आदि भी तैनात कर दिए हैं. डर यह लग रहा था कि यदि गलती से एक भी हथियार का इस्तेमाल किसी तरफ से हो गया तो भयंकर विनाश-लीला छिड़ सकती है. चीन इस यात्रा के कारण इतना क्रोधित हो गया हैं कि उसने ताइवान जानेवाली हर चीज पर प्रतिबंध लगा दिया हैं
ताइवान भी इतना डर गया था कि उसने अपने सवा दो करोड़ लोगों को बमबारी से बचाने के लिए सुरक्षा का इंतजाम कर लिया था. वे ताइवानी नेताओं से खुलकर मिली हैं और अमेरिका चीन के खिलाफ बराबर खम ठोक रहा है. जो बाइडेन की सरकार के लिए पेलोसी की ताइवान-यात्रा और अल-कायदा के सरगना अल-जवाहिरी का उन्मूलन विशेष उपलब्धि बन गई है.
चीन ने जवाहिरी की हत्या पर भी अमेरिका की आलोचना की है. चीन और अमेरिका के बीच बढ़ते हुए तनाव के कारण चीन ने हिंद-प्रशांत क्षेत्र में बने चार देशों के चौगुटे की भी खुलकर निंदा की थी. पेलोसी की इस ताइवान-यात्रा ने सिद्ध कर दिया है कि चीन कोरी गीदड़ भभकियां देने का उस्ताद है. पेलोसी की इस यात्रा ने अमेरिका की छवि चमका दी है और चीन की छवि को धूमिल कर दिया है.

Rani Sahu
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