सम्पादकीय

ब्लॉग: चीन और अमेरिका- दो महाशक्तियों के बीच संघर्ष का मैदान बना ताइवान

Rani Sahu
5 Aug 2022 4:17 PM GMT
ब्लॉग: चीन और अमेरिका- दो महाशक्तियों के बीच संघर्ष का मैदान बना ताइवान
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चीन और अमेरिका- दो महाशक्तियों के बीच संघर्ष का मैदान बना ताइवान

By लोकमत समाचार सम्पादकीय

अमेरिकी प्रतिनिधि सभा की स्पीकार नैन्सी पेलोसी ताइवान के अपने दौरे को लेकर उठे तमाम सवालों और चीन को खुली चुनौती देते हुए अपने निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार दो दिन पूर्व ताइवान के दौरे पर पहुंचीं और चीन की आंख की किरकरी बने ताइवान को अमेरिकी समर्थन का भरोसा देने और उस भरोसे को निभाने की वचनबद्धता देकर वापस लौट गईं. पेलोसी की यह दो-टूक टिप्पणी निश्चय ही चीन को आगबबूला करने के लिए काफी थी.
व्यापार, युद्ध, यूक्रेन पर दोनों के धुर विरोधी रुख और कोरोना महामारी को लेकर चीन की शुरुआती पर्दादारी पर पहले से ही तल्ख संबंधों के दौर से गुजर रहे अमेरिका और चीन के बीच पेलोसी के ताइवान दौरे से यह कड़वाहट कमोबेश सैन्य टकराव की स्थिति तक पहुंच गई और ताइवान दो महाशक्तियों के बीच टकराव या फिलहाल शक्ति प्रदर्शन की होड़ में संघर्ष का मैदान बन गया है. फिलहाल तो यही लग रहा है कि दोनों ही पक्ष ताइवान को लेकर पूरी दुनिया के सम्मुख बलशाली होने, विशेष तौर पर अपनी-अपनी जनता के सामने शक्ति प्रदर्शन कर रहे हैं लेकिन गनीमत है कि सैन्य टकराव से बच रहे हैं
निश्चय ही अगर सैन्य टकराहट होती है तो इसके नतीजे यूक्रेन से भी ज्यादा भयावह होने का अंदेशा है. एशिया की बात करें तो इसके दुष्परिणाम पूर्वी एशिया और दक्षिण पूर्वी एशिया को भी भुगतने होंगे. दक्षिण चीन सागर और आसपास के क्षेत्र में चीन द्वारा स्वतंत्र नौवहन पर की जा रही दादागीरी से प्रभावित होने वाले देशों की तरह आंच भारत पर भी पड़ सकती है.
राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के बाद पेलोसी अमेरिका की तीसरी सबसे ताकतवर शख्सियत हैं. 25 साल बाद ये पहली बार था, जब अमेरिकी स्पीकर ने ताइवान का दौरा किया. सरकार के साथ वहां की जनता ने उनका स्वागत भी किया. इससे पहले 1997 में उस समय के स्पीकर न्यूट गिंगरिक यहां पहुंचे थे. ताइवानी विदेश मंत्रालय ने कहा कि 25 साल में यूएस हाउस स्पीकर की पहली यात्रा से ताइवान-अमेरिका संबंधों के लिए उच्च-स्तरीय समर्थन और इसके व्यापक दायरे का पता चलता है, इससे दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय सहयोग और मजबूत होगा और यह यात्रा दोनों देशों के बीच व्यापक क्षेत्रों में वैश्विक सहयोग को और गहरा करेगी.
जैसा कि स्वाभाविक था, पेलोसी के दौरे से बौखलाए चीन ने पेलोसी के रवाना होने के थोड़ी ही देर बाद 27 चीनी लड़ाकू विमान ताइवान के हवाई क्षेत्र में पहुंचा दिए. यात्रा समाप्त होते ही क्षुब्ध चीन ने ताइवान पर कई प्रतिबंध लगा दिए, जिसमें खाद्यान्न संबंधी प्रतिबंध भी शामिल हैं. चीनी सेना ने 21 सैन्य विमानों से ताइवान के दक्षिण-पश्चिमी हिस्से में उड़ान भरकर अपनी ताकत दिखाई और ताइवान पर अपना दबाव बढ़ाते हुए सैन्य अभ्यास करके ताइवान की चारों तरफ से सैन्य घेराबंदी कर दी.
इस सैन्य अभ्यास को चीन का अब तक का सबसे बड़ा सैन्य अभ्यास माना जा रहा है, जिसके चलते यह पूरा क्षेत्र वायु मार्ग और जल मार्ग से आवाजाही के लिए चार दिन के लिए बंद हो जाएगा. इससे सैन्य तनाव बढ़ने के साथ ही ताइवान के पास से गुजरने वाले व्यावसायिक जलपोतों और कंटेनरों की आवाजाही चार दिन के लिए बंद रहेगी जिससे कोरिया, जापान सहित अनेक देशों का भारी नुकसान होगा. चीन सैन्य ड्रिल और प्रक्षेपास्त्र परीक्षण भी कर रहा है.
ताइवान का कहना है कि इसमें से कुछ ड्रिल उसके जल मार्ग में होगी. नैन्सी पेलोसी की ताइवान यात्रा पर कड़ा विरोध दर्ज कराने के लिए चीन ने अमेरिकी राजदूत को तलब किया और चेतावनी देते हुए अमेरिका से ताइवान में दखलंदाजी बंद करने को कहा. चीन ने कहा कि अमेरिका ने 'वन चाइना पॉलिसी' का उल्लंघन कर उसकी संप्रभुता पर हमला किया है.
ताइवान दक्षिण पूर्वी चीन के तट से करीब 100 मील दूर स्थित एक द्वीप है. देश छोटा है लेकिन समृद्ध अर्थव्यवस्था वाला देश है. डिजिटल विश्व की इस दुनिया में मुख्य यंत्र माने जाने वाले सेमी कंडक़्टरों का लगभग पचास फीसदी ताइवान में ही बनता है. फोन, लैपटॉप, घड़ी से लेकर कार तक में लगने वाले ज्यादातर चिप ताइवान में बनते हैं. ताइवान की वन मेजर कंपनी दुनिया के आधे से अधिक चिप का उत्पादन करती है.
इसी वजह से ताइवान की अर्थव्यस्था दुनिया के लिए काफी मायने रखती है. सामरिक स्थिति के साथ आर्थिक शक्ति के रूप में भी चीन की ताइवान पर नजर है. अगर ताइवान पर चीन का कब्जा होता है तो दुनिया के लिए बेहद अहम इस उद्योग पर चीन का नियंत्रण हो जाएगा, जिसके बाद उसकी मनमानी और बढ़ सकती है.
ताइवान खुद को संप्रभु राष्ट्र मानता है उसका अपना संविधान है, निर्वाचित सरकार है. वहीं चीन की कम्युनिस्ट सरकार ताइवान को अपने देश का हिस्सा बताती है. चीन इस द्वीप को फिर से अपने नियंत्रण में लेना चाहता है. तमाम निराशाओं के बीच भी उम्मीद की जानी चाहिए कि अमेरिका और चीन के बीच तीखी तनातनी सैन्य टकराहट का रूप नहीं लेगी और ताइवान की संप्रभु पहचान का सम्मान होगा.
Rani Sahu

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