सम्पादकीय

ब्लॉग: चेतावनी! एशिया को खतरे में डालने की कोशिश न करे अमेरिका

Rani Sahu
16 Sep 2022 5:20 PM GMT
ब्लॉग: चेतावनी! एशिया को खतरे में डालने की कोशिश न करे अमेरिका
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By लोकमत समाचार सम्पादकीय
अमेरिकाभारत को अपना सच्चा मित्र बताता है लेकिन वास्तव में वह भारत का दोस्त नहीं है। डेमोक्रेट राष्ट्रपति जो बाइडेन ने एक बार फिर भारत को धोखा दिया है। अमेरिका ने पाकिस्तान को दिए एफ-16 फाइटर जेट को अपग्रेड करने का फैसला किया है। इस फैसले के साथ ही अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने अपने पूर्वाधिकारी डोनाल्ड ट्रम्प के एक फैसले को पलट दिया है। जबकि अमेरिका अच्छी तरह से जानता है कि पाकिस्तान चीन के साथ है।
डेमोक्रेट जो बाइडेन ने साल 2021 में जब अमेरिकी राष्ट्रपति पद की शपथ ली थी तो भारत ने उनसे काफी उम्मीदें लगाई थीं। हालांकि सुरक्षा विशेषज्ञ बाइडेन के राष्ट्रपति बनने पर काफी आशंकित थे। दरअसल बाइडेन जिस समय सीनेटर थे, वह एक ऐसा फैसला करा चुके थे जिसकी भारत ने बहुत बड़ी कीमत चुकाई थी। राष्ट्रपति बनने के बाद बाइडेन ने एक बार फिर अपना वही पुराना रंग भारत को दिखा दिया है। यह बात है साल 1992 की जब बाइडेन डेलावेयर से डेमोक्रेटिक पार्टी के सीनेटर थे।
अमेरिका में बतौर राष्ट्रपति रिपब्लिकन पार्टी के जॉर्ज बुश सीनियर तमाम अहम फैसले ले रहे थे। सोवियत संघ का पतन हो चुका था और एक अलग देश के तौर पर रूस अपनी नई शुरुआत कर रहा था। जनवरी 1991 में भारत ने सोवियत संघ की अंतरिक्ष संस्था ग्लावकॉसमॉस के साथ 235 करोड़ रुपए की एक डील साइन की थी। इस डील के तहत भारत को सात क्रायोजेनिक इंजन मिलने थे। इसके अलावा ट्रांसफर ऑफ टेक्नोलॉजी पर भी बात बन गई थी।
इस डील पर अमेरिका में खूब राजनीति हुई और इसकी अगुवाई कोई और नहीं, बाइडेन कर रहे थे। अमेरिका ने क्रायोजेनिक इंजन टेक्नोलॉजी की बिक्री का विरोध किया। मई 1992 में सीनेट की विदेशी संबंधों पर बनी कमेटी ने इस डील के लिए एक शर्त रख दी। शर्त का प्रस्ताव बुश की तरफ से दिया गया था। अमेरिकी सरकार ने रूस के सामने शर्त रखी कि रूस को 24 अरब डॉलर की वित्तीय मदद दी जाएगी। लेकिन अगर वह क्रायोजेनिक इंजन कॉन्ट्रैक्ट पर हुई डील पर भारत के साथ आगे बढ़ता है तो इस मदद को ब्लॉक कर दिया जाएगा।
जो बाइडेन इस कमेटी के सदस्य थे। उन्होंने ही रूस पर मिसाइल, परमाणु तकनीक या फिर परमाणु हथियारों को ट्रांसफर करने पर अमेरिकी मदद को ब्लॉक करने से जुड़ा एक संशोधन पेश किया था। 1993 में येल्तसिन, अमेरिका के नए राष्ट्रपति बिल क्लिंटन से मिले और यहां वह अमेरिकी दबाव के आगे झुक गए। रूस ने भारत को सात इंजन देने का फैसला तो किया, लेकिन टेक्नोलॉजी ट्रांसफर से मना कर दिया। बाइडेन के एक फैसले की वजह से भारत को इस इंजन को विकसित करने में 15 साल का समय लगा था।
Rani Sahu

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