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- अंधों का हाथी
देश में शोध की कमी है। सत्य की राहों के अन्वेषी कहां हैं? गाल बजाने वालों के इस समूह में कुछ पता नहीं चलता। हर शोध करने वाला अंधों का हाथी लिए घूम रहा है। सबके पास अपना-अपना सच है और उससे पैदा होता हुआ एक नारा है। नारा लगाने के बाद एक उत्तेजक भाषण होता है। उसके बाद उनकी रैली बिखर जाती है। रैली में जमा लोग एक विजय पताका लेकर चलने लगते हैं। उनके पास अपने-अपने किले हैं और उसे जीत लेने का गर्व भी। आपने सात अंधों से घिरे हुए एक हाथी को देखा होगा। उनसे पूछा गया था कि बताइए हाथी कैसा होता है? बिल्कुल ऐसे उसी तरह जैसे आज अंधे निशानचियों के निशाने पर देश की अर्थ-व्यवस्था आ गई है। अंधों ने हाथी को टटोल कर अपना-अपना बताया, जिसके हाथ में उसकी सूंड आई, उसने हाथी को लंबी सूंड बताया, जिसका स्पर्श हाथी की स्तम्भ जैसी टांगों पर हुआ, उसने उसे खम्भा बताया। जिसके हाथ में पूंछ आई, वह हाथी को पूंछ बता रहा था और जो हाथी के दोनों दांत पकड़ कर लटका था, उसे हाथी दो बड़े दांत लगता रहा।