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- धधकते वन, सिसकता...
योगेश कुमार गोयल: गर्मी के मौसम की शुरुआत होते ही भारत के विभिन्न राज्यों में जंगलों में आग की घटनाएं भी लगातार बढ़ रही हैं। भारतीय वन सर्वेक्षण के आंकड़ों के मुताबिक 26 मार्च से एक अप्रैल, 2022 यानी एक ही हफ्ते के भीतर उनतीस राज्यों के जंगलों में आग के साठ हजार से भी ज्यादा छोटे-बड़े मामले सामने आ गए। यह बेहद चिंताजनक है।
सात दिन में जंगलों में आग लगने के मध्यप्रदेश में 17709, छत्तीसगढ़ में 12805, महाराष्ट्र में 8920, ओड़िशा में 7130 और झारखंड में 4684 मामले दर्ज हुए। आगजनी से हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, राजस्थान, मिजोरम और बिहार के बड़े जंगल ज्यादा प्रभावित हुए हैं। बड़े जंगलों में मात्र आठ दिनों में आग की 1230 घटनाएं सामने आईं। फारेस्ट सर्वे आफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार बढ़ते पारे के साथ जंगलों में आग के हर घंटे औसतन 234 मामले दर्ज हो रहे हैं।
गौरतलब है कि हाल में राजस्थान के सरिस्का टाइगर रिजर्व में लगी भयानक आग पर कई दिनों की कड़ी मशक्कत के बाद काबू पाया जा सका। जम्मू-कश्मीर के रियासी जिले के अलावा हिमाचल में भी आग से कई एकड़ जंगल तबाह हो गए। मध्यप्रदेश के उमरिया टाइगर रिजर्व में महज दस दिनों में ही वनों में 121 स्थानों पर आग लगी। उत्तराखंड में तो वनों के सुलगने का सिलसिला जारी है, जहां 15 फरवरी से अब तक आग की सैकड़ों घटनाओं में 250 हेक्टेयर वन क्षेत्र को नुकसान पहुंचा है।
भारतीय मौसम विभाग के अनुसार गर्मियों में जंगलों में आग तेजी से फैलती है। इस वक्त जिस तरह का मौसम है, उसमें यह खतरा और बढ़ जाता है। इस वर्ष मार्च में वर्षा में 71 फीसदी की कमी दर्ज की गई। यही कारण है कि तेजी से बढ़ते पारे के कारण बारिश की कमी से वनों में छोटे जलाशयों का अभाव हो गया और आग की घटनाएं बढ़ रही हैं।
दरअसल, जंगलों का पूरी तरह सूखा होना आग लगने के खतरे को बढ़ा देता है। कई बार जंगलों की आग जब आसपास के गांवों तक पहुंच जाती है, तो स्थिति काफी भयवाह हो जाती है। पिछले साल उत्तराखंड के जंगलों में लगी ऐसी ही भयानक आग में अल्मोड़ा के चौखुटिया में छह गौशालाएं, लकड़ियों के टाल सहित कई घर जल कर राख हो गए थे और वहां हेलीकाप्टरों की मदद से आग बुझाई जा सकी थी।
जंगलों में आग के कारण वनों के पारिस्थितिकी तंत्र और जैव विविधता को भारी नुकसान होता है। प्राणी सर्वेक्षण विभाग का मानना है कि उत्तराखंड के जंगलों में तो आग के कारण जीव-जंतुओं की साढ़े चार हजार से ज्यादा प्रजातियों का अस्तित्व खतरे में पड़ गया है। वनों में आग से पर्यावरण के साथ-साथ वन संपदा का जो भारी नुकसान होता है, उसका खमियाजा लंबे समय तक भुगतना पड़ता है और ऐसा नुकसान साल-दर-साल बढ़ता ही जाता है।
पिछले चार दशकों में भारत में पेड़-पौधों की अनेक प्रजातियों के खत्म हो जाने के अलावा पशु-पक्षियों की संख्या भी घट कर एक तिहाई रह गई है और इसके विभिन्न कारणों में से एक कारण जंगलों की आग रही है। जंगलों में आग के कारण वातावरण में जितनी भारी मात्रा में कार्बन पहुंचता है, वह कहीं ज्यादा बड़ा और गंभीर खतरा है।