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लुधियाना कोर्ट में गुरुवार को हुए धमाके ने पंजाब के चुनावी माहौल को थोड़ा और गरमा दिया है। इससे पहले वहां अमृतसर और फिर कपूरथला में कथित बेअदबी के बाद लिंचिंग की घटनाओं को लेकर भी काफी बयानबाजी हुई।
लुधियाना कोर्ट में गुरुवार को हुए धमाके ने पंजाब के चुनावी माहौल को थोड़ा और गरमा दिया है। इससे पहले वहां अमृतसर और फिर कपूरथला में कथित बेअदबी के बाद लिंचिंग की घटनाओं को लेकर भी काफी बयानबाजी हुई। हालांकि ये घटनाएं काफी गंभीर हैं और इन्हें चुनावी जंग का हथियार बनाना दुर्भाग्यपूर्ण है। लेकिन चुनावों के दौरान हर चीज के चुनावी इस्तेमाल की अपने यहां परंपरा सी बन गई है। इन घटनाओं के इर्दगिर्द भी यही परंपरा मजबूत होती हुई दिखी।
लुधियाना ब्लास्ट के बाद पंजाब के मुख्यमंत्री चरनजीत सिंह चन्नी घटनास्थल पर पहुंचे और उन्होंने कहा कि संभव है इस ब्लास्ट का उस ड्रग्स केस से कोई कनेक्शन हो, जिसमें पंजाब के पूर्व मंत्री और अकाली नेता बिक्रमजीत सिंह मजीठिया की गिरफ्तारी हुई। मुख्यमंत्री ने यह भी कहा कि कुछ ताकतें चुनावों से ठीक पहले प्रदेश का माहौल खराब करने के लिए जानबूझकर ऐसी घटनाओं को अंजाम दे रही हैं। हालांकि ब्लास्ट की जांच अभी शुरू ही हुई है और ऐसे में मुख्यमंत्री को इस तरह के बयान देने चाहिए या नहीं, यह एक अलग सवाल है। फिर भी थोड़ी देर को अगर मुख्यमंत्री चन्नी की आशंकाओं को पूरी तरह सच मान लिया जाए तो भी यह जिम्मेदारी उन्हीं की बनती है कि वे ऐसी घटनाएं रोकने के पुख्ता इंतजाम करें और जो घटना हो चुकी है उसके दोषियों का पता लगाकर उन्हें सजा दिलाएं।
इसमें कोई शक नहीं कि पंजाब लंबे समय तक आतंकवाद और धार्मिक कट्टरपंथ की आग में जलकर निकला है। आज भी सीमावर्ती राज्य होने की वजह से उसकी स्थिति काफी संवेदनशील मानी जाती है। ड्रग्स कारोबार की जकड़न भी वहां काफी मजबूत है। इन सबके अलावा चुनावों से पहले ऐसी माहौल बिगाड़ने वाली घटनाओं की भी वहां पृष्ठभूमि रही है। 2017 के विधानसभा चुनाव के वक्त भी वहां माहौल बिगाड़ने की कोशिश हुई थी। ऐसे में जहां कानून-व्यवस्था की मशीनरी को और ज्यादा सतर्क होना चाहिए वहीं राजनीतिक बिरादरी को भी अपनी प्रतिक्रियाओं में थोड़ा ज्यादा संयत और परिपक्व दिखना चाहिए। अफसोस की बात है कि पंजाब में इन दोनों चीजों की कमी दिख रही है।
कानून-व्यवस्था की मशीनरी का प्रमुख होने के नाते मुख्यमंत्री का पूरा फोकस जांच का सही ढंग से आगे बढ़ना सुनिश्चित करने पर होना चाहिए, लेकिन वह जांच होने से पहले ही अपने ऐसे निष्कर्ष सुना रहे हैं, जिनसे जांच के प्रभावित होने की आशंका बन जाती है। दूसरी ओर, राजनीतिक बिरादरी की प्रतिक्रियाएं भी लिंचिंग रोकने की जरूरत से कम और बेअदबी से आहत भावनाओं का चुनावी इस्तेमाल करने की मंशा से ज्यादा प्रेरित नजर आईं। बहरहाल, प्रदेश और देश के हक में जरूरी है कि चुनावी प्राथमिकताओं का इन आपराधिक घटनाओं की जांच-पड़ताल के साथ कोई घालमेल न होने दिया जाए। इस बिंदु पर जरा सी भी असावधानी पंजाब के उन तीन करोड़ लोगों के लिए भारी पड़ सकती है, जो बड़ी मुश्किल से एक बेहद कठिन दौर से उबरे हैं।
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