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हिंदुस्तान एक लोकतांत्रिक देश है, यहां हर व्यक्ति को बोलने की आजादी है
हिंदुस्तान एक लोकतांत्रिक देश है, यहां हर व्यक्ति को बोलने की आजादी है. अपना धर्म चुनने की आजादी है. अपने हिसाब से जीने की आजादी है. किसी भी मुद्दे पर विचार विमर्श करने की आ जाती है. लेकिन शायद कुछ लोगों को यह आजादी पसंद नहीं है, इसीलिए तो उत्तर प्रदेश के कानपुर में कुछ दिनों पहले मुस्लिमों की मजहबी संस्था ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने भारत में ईशनिंदा कानून लाए जाने की मांग उठाई है. यानी कि अगर आप भगवान, अल्लाह, गॉड की शान में कोई गुस्ताखी करते हैं या उनको लेकर कुछ बोलते हैं तो फिर आप को सजा दी जाएगी.
मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की तरफ से इस कानून की मांग को लेकर तर्क आया कि इस्लाम के आखरी पैगंबर की शान में गुस्ताखी हो रही हैं और सरकार की तरफ से इस पर कोई कार्यवाही नहीं की जा रही है. इसलिए हमारी मांग है कि भारत में भी ईशनिंदा कानून लाया जाए. जैसे कि इस वक्त सऊदी अरब, पाकिस्तान, इंडोनेशिया, मलेशिया और ईरान जैसे देशों में है यहां अगर आप ईशनिंदा करते हैं तो आपको सजा हो सकती है. कुछ देशों में तो इसके लिए मौत की सजा है. लेकिन सवाल उठता है कि क्या विविधताओं वाले इस देश में इस तरह का कोई कानून लाया जाना भी चाहिए? क्योंकि भारत में कहा जाता है कि 'कोस कोस में पानी बदले, तीन कोस में वाणी' सोचिए कि जिस देश में इतनी विविधता हो जहां हर धर्म समभाव की भावना हो, उस देश में इस तरह का कानून लाना हिंदुस्तान के आत्मा पर चोट पहुंचाने जैसा होगा.
कितना घातक है यह कानून
अमेरिकी संस्था प्यू रिसर्च सेंटर ने साल 2015 में एक रिपोर्ट जारी की थी, जिसमें बताया गया था कि दुनिया के 26 फीसदी देशों में ईशनिंदा के खिलाफ अलग-अलग तरह के कानून हैं. हालांकि मानवाधिकारों की कसौटी पर इस ईशनिंदा के कानून को कभी भी सही नहीं ठहराया गया. क्योंकि इस कानून का सबसे ज्यादा फर्जी इस्तेमाल करके लोगों को परेशान किया जाता है. आपको याद होगा पाकिस्तान में एक ऐसा ही मामला साल 2009 में सामने आया था, जब पड़ोसियों ने आसिया बीवी नाम की एक महिला को जो ईसाई धर्म से आती थीं, इसलिए इस कानून में फंसा दिया क्योंकि वह उनको झगड़े की वजह से सबक सिखाना चाहती थीं.
इस मामले में पाकिस्तान की निचली अदालत ने साल 2010 में आसिया बीबी को फांसी की सजा सुना दी. 8 सालों तक आसिया बीवी के परिवार ने कानूनी लड़ाई लड़ी और उन्हें 8 सालों तक जेल में रहना पड़ा. बाद में कहीं जाकर 2019 में पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को रद्द करते हुए आसिया बीबी को रिहा कर दिया. अब सवाल उठता है कि इस झूठे आरोप के चलते जो 8 सालों तक आसिया बीबी ने यातनाएं सह कर जेल में काटीं, उसका हिसाब कौन देगा. हालांकि आपको जानकर हैरानी होगी कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भी पाकिस्तान के कट्टरपंथी समूहों ने आसिया बीवी को फांसी देने की मांग को लेकर पूरे देश में फसाद किया और आखिरकार अंत में उन्हें पाकिस्तान छोड़कर जाना पड़ा. पाकिस्तान में 1990 के बाद से अब तक ईशनिंदा के आरोप में करीब 100 लोगों को अलग-अलग मौकों पर भीड़ द्वारा लिंचिंग करके मार दिया गया.
पंजाब विधानसभा में एक बार प्रस्ताव पारित किया गया था
साल 2018 में पंजाब विधानसभा में भारतीय दंड संहिता में एक नया क्लॉज जोड़ने का प्रस्ताव पारित किया गया था. जिसमें कहा गया था कि भगवत गीता, कुरान, बाइबल और गुरु ग्रंथ साहिब के अपमान नुकसान या नष्ट करने के आरोपी को उम्रकैद की सजा सुनाई जाएगी. हालांकि पंजाब विधानसभा के इस प्रस्ताव को राष्ट्रपति की मंजूरी नहीं मिली. पंजाब विधानसभा में प्रस्ताव को पारित करने के पीछे वजह थी, साल 2015 में गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी का मामला.
पंजाब में उन दिनों यह मामला इतना ज्यादा तूल पकड़ लिया कि इसकी वजह से विधानसभा चुनाव में बीजेपी अकाली दल गठबंधन को हार का सामना करना पड़ा. यही वजह रही कि जब 2017 में पंजाब विधानसभा के चुनाव हुए और कैप्टन अमरिंदर सिंह की सरकार बनी तो उन्होंने 2018 में धार्मिक ग्रंथों की बेअदबी करने वालों को उम्र कैद की सजा के प्रावधान का प्रस्ताव पारित किया. हालांकि कैप्टन अमरिंदर सिंह के इस प्रस्ताव का विरोध भी हुआ और लोगों ने कहा कि कैप्टन अमरिंदर सिंह हिंदुस्तान को भी पाकिस्तान के नक्शे कदम पर ले जाना चाहते हैं.
धार्मिक भावनाओं को आहत करने का पहले से है कानून
हिंदुस्तान में ईशनिंदा कानून की जरूरत इसलिए भी नहीं है, क्योंकि भारतीय दंड संहिता की धारा 295A में पहले से ही धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने पर दंड का प्रावधान है. भारतीय दंड संहिता 1860 की धारा 295A के अनुसार वे सभी कार्य अपराध माने जाएंगे. जहां आरोपी भारत के नागरिकों के किसी भी वर्ग की धार्मिक भावनाओं को जानबूझकर आहत करने की दुर्भावनापूर्ण कोशिश करेगा. इस धारा के तहत आरोपी को 3 साल की कैद का प्रावधान है. लेकिन कुछ लोग पहले से ही यह भी मांग करते आ रहे हैं कि इसी कानून में बदलाव कर सजा को और बढ़ा दिया जाए ताकि कोई भी किसी की धार्मिक भावना को आहत करने से पहले सौ बार सोचे.
धर्म के नाम पर हत्या कितना सही
आपको याद होगा 15 अक्टूबर को सिंघु बॉर्डर पर एक दलित पंजाबी युवक लखबीर सिंह की नृशंस हत्या कर दी गई थी. उस पर आरोप था कि उसने गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी की थी. लखबीर सिंह की हत्या इतनी भयावह तरीके से की गई थी कि उसके शरीर के टुकड़े टुकड़े हो गए थे. सबसे आश्चर्यजनक बात यह थी कि हत्यारों ने इसे सहर्ष स्वीकार किया कि उन्होंने लखबीर सिंह की हत्या की है और उन्हें अपने इस कृत्य पर गर्व है. यहां तक कि उनके समर्थकों को भी इस हत्या का खेद नहीं बल्कि इस पर गर्व था. उनका कहना था कि जो भी गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी करेगा उसका परिणाम इसी तरह होगा. इसी तरह देश में या दुनिया भर में धर्म के नाम पर हर रोज कई हत्याएं होती हैं. किसी भी धर्म का अपमान करना बिल्कुल गलत है, ऐसा नहीं होना चाहिए. लेकिन क्या सिर्फ इसलिए कि किसी ने आप के धर्म का अपमान किया है आप उसकी हत्या कर दें, किसी भी रुप में मानवीय सिद्धांतों के विरुद्ध है.
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