सम्पादकीय

दोष किसी का, दंड किसी को

Subhi
27 March 2022 4:08 AM GMT
दोष किसी का, दंड किसी को
x
पिछले हफ्ते जो टैक्सी वाला मुझे न्यूयार्क के जेएफके एअरपोर्ट लेकर जा रहा था, वह पंजाबी था। मेरे नाम से जान गया कि मैं भी पंजाबी हूं, तो उसने बेझिझक बातचीत का सिलसिला शुरू किया इस सवाल से, ‘क्या आपने कश्मीर फाइल्स पिक्चर देखी है

तवलीन सिंह: पिछले हफ्ते जो टैक्सी वाला मुझे न्यूयार्क के जेएफके एअरपोर्ट लेकर जा रहा था, वह पंजाबी था। मेरे नाम से जान गया कि मैं भी पंजाबी हूं, तो उसने बेझिझक बातचीत का सिलसिला शुरू किया इस सवाल से, 'क्या आपने कश्मीर फाइल्स पिक्चर देखी है?' मैंने कहा कि मैं अभी तक देख नहीं पाई हूं, इसलिए कि मैं न्यूयार्क में थी, जब भारत में फिल्म लगी थी।

इस पर उसने कहा कि न्यूयार्क में उसकी जानकारी के जितने भी भारतीय हैं, सबने पहले दिन ही यह पिक्चर को देख ली थी यूट्यूब पर। फिर उसने पिक्चर के बारे में मुझे अपनी राय सुनाई- 'बहुत अच्छा है कि इस तरह की फिल्में अब बनने लगी हैं। बहुत पहले इस किस्म की फिल्में बन जानी चाहिए थीं, लेकिन कांग्रेस के जमाने में नहीं बनीं, सिर्फ इसलिए कि सेक्युलरिज्म के नाम पर मुसलमानों के सारे दोष माफ कर दिए जाते थे।'

ऐसा कहने के बाद उसने स्पष्ट किया कि जब मुसलमानों ने देश तोड़ा था इस्लाम के नाम पर, अच्छा होता भारत के सारे मुसलमानों को 1947 में ही पाकिस्तान भेज दिया गया होता, ताकि हिंदू-मुसलिम झगड़े उसी समय समाप्त हो जाते। न्यूयार्क में तीस साल से ज्यादा रहने के बाद भी इस व्यक्ति के मन में मुसलमानों के लिए नफरत थी और इस फिल्म को देखने के बाद यह नफरत और बढ़ गई थी, यह देख कर कि हिंदुओं को किस तरह कश्मीर घाटी से भागने पर मजबूर किया गया था। एक प्रवासी भारतीय हिंदू के दिल में अगर इस पिक्चर ने ऐसी भावनाएं भड़काई हैं, तो जाहिर है कि जो लोग भारत में रहते हैं उनमें कितना गुस्सा और कितनी नफरत पैदा होती होगी यह पिक्चर देख कर।

मैं उनमें से नहीं हूं जो मानते हैं कि 'कश्मीर फाइल्स' पर प्रतिबंध लगना चाहिए। लोकतंत्र का बुनियादी उसूल है कि हर नागरिक को अपनी बात रखने का पूरा अधिकार होना चाहिए। दूसरी बात यह है कि मेरी सहानुभूति हमेशा रही है कश्मीरी पंडितों के साथ, क्योंकि उनको आज तक न्याय नहीं मिला है। न्याय तब मिलेगा, जब कश्मीर घाटी में वे लौट सकें और अपने घरों में रह सकें पूरी तरह सुरक्षित।

सवाल यह है कि वापस लौटने के लिए किसी भी प्रधानमंत्री ने उनकी सहायता क्यों नहीं की, जबकि उनके पलायन के तीन दशक गुजर गए हैं। नरेंद्र मोदी ने खुल कर 'कश्मीर फाइल्स' के बारे में कहा है कि इस पिक्चर को देखना जरूरी है सबके लिए, लेकिन अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बावजूद कश्मीरी पंडित घर वापस क्यों नहीं जा पा रहे हैं? क्या हमारा फर्ज नहीं बनता अपने राजनेताओं से यह सवाल करने का, ताकि पंडितों को न्याय मिले?

पिछले हफ्ते एक दलित युवक ने 'कश्मीर फाइल्स' देखने के बाद अपनी प्रतिक्रिया दी कि माना कि कश्मीर पंडितों के साथ अन्याय हुआ है, लेकिन औरों के साथ भी अन्याय हुआ है।

इस बात को सुनने पर कुछ सवर्ण युवकों ने उसको मंदिर में ले जाकर जबर्दस्ती उसकी नाक रगड़वाई और उससे माफी मंगवाई। इतना गुस्सा अगर भड़क रहा है देश में, तो क्यों नहीं कोई आंदोलन शुरू कर रहा है, ताकि राजनेताओं पर दबाव डाला जाए पंडितों को कश्मीर घाटी में सुरक्षित वापस ले जाने के लिए? यह जिम्मेदारी अब सीधे प्रधानमंत्री मोदी के कंधों पर है, क्योंकि कश्मीर का शासन दिल्ली से चल रहा है। सो, अगर भारत सरकार के आला राजनेता उद्योगपतियों पर दबाव डाल सकते हैं घाटी में निवेश करने के लिए, तो साथ में जरूर पंडितों को घाटी में फिर से बसाने की क्षमता रखते होंगे। अगर नहीं रखते हैं, तो क्यों नहीं?

कश्मीरी पंडितों के घाव अब तक इतने हरे हैं कि कई विडियो सोशल मीडिया पर आए हैं, जो दिखाते हैं कि किस तरह रोती हुई महिलाएं 'कश्मीर फाइल्स' के निर्देशक, विवेक अग्निहोत्री के पांव छूती हुई कहती हैं कि इस फिल्म को बनाने के बाद उनकी नजरों में श्रीमान अग्निहोत्री भगवान बन गए हैं। तो क्यों नहीं प्रधानमंत्री मोदी पंडितों को कश्मीर में दुबारा बसाने की जिम्मेदारी खुद लेकर आखिरकार पंडितों को न्याय दिलवाएं और उनकी लुटी हुई संपत्ति और इज्जत लौटाएं? ऐसा करना इस फिल्म के बाद बहुत जरूरी हो गया है, क्योंकि आम गैर-कश्मीरी हिंदुओं की भावनाएं इतनी भड़क गई हैं कि इनके नफरत और हिंसा में तब्दील होने का पूरी तरह खतरा है।

ऐसा माहौल बन गया है देश भर में कि तमाम मुसलिम कौम को दोषी ठहराया जा रहा है। लोग जैसे भूल-से गए हैं कि कश्मीरी पंडितों को घाटी से भगाया था मुट्ठी भर जिहादी गुटों ने। उनको अगर उनके मुसलिम पड़ोसियों ने बचाया नहीं था उस समय तो इसलिए कि कश्मीर घाटी पर पूरा कब्जा उन हिंसक तन्जीमों के हाथ में था, जिनका मकसद था घाटी में शरीअत नाफिस करना और पाकिस्तान की मदद से वहां एक इस्लामी मुल्क की नीव रखना। न कश्मीर के शासक उनको रोक सके थे और न ही भारत के कोई प्रधानमंत्री।

घाटी में यह हाल बना था दोनों की गंभीर राजनीतिक गलतियों के कारण, सो आम मुसलमानों पर जो दोष डाल रहे हैं आजकल, बहुत गलत कर रहे हैं। दोष राजनेताओं का था, लेकिन दोषी ठहराए जा रहे हैं आम मुसलमान।

मेरे न्यूयार्क वाले पंजाबी भाई के शब्दों में, 'मुसलमानों को भारत से भगा देना चाहिए। या फिर उनको कहना चाहिए कि भारत में अगर रहना है आपको, तो हिंदू बन कर रहना होगा। ऐसा जो करने को तैयार नहीं है, उसको उस मुल्क में जाना चाहिए जो भारत को तोड़ कर बनाया गया था मुसलमानों के लिए।' ऐसी भावनाएं पहले भी थीं, लेकिन अब उबाल पर हैं।


Next Story