सम्पादकीय

टैक्स हैवन्स देशों में काला धन

Rani Sahu
31 Oct 2021 6:52 PM GMT
टैक्स हैवन्स देशों में काला धन
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हाल ही में पैंडोरा पेपर्स के संबंध में मल्टी एजेंसी ग्रुप (एमएजी) ने अपनी पहली बैठक आयोजित करके जांच शुरू कर दी है

हाल ही में पैंडोरा पेपर्स के संबंध में मल्टी एजेंसी ग्रुप (एमएजी) ने अपनी पहली बैठक आयोजित करके जांच शुरू कर दी है। केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) के प्रमुख जेबी महापात्रा की अध्यक्षता में आयोजित इस बैठक में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी), रिजर्व बैंक और वित्तीय इंटेलीजेंस यूनिट के अधिकारी शामिल हुए। इसमें तय किया गया कि खोजी पत्रकारों के समूह द्वारा और नाम जारी किए जाते ही जांच तेज की जाएगी। भारतीय और भारतीय कंपनियों को लेकर संबंधित देशों से सूचना मांगी जाएगी। गौरतलब है कि इन दिनों पूरी दुनिया में करोड़ों लोगों के द्वारा इंटरनेशनल कॉसोर्टियम ऑफ इन्वेस्टिगेटिव जर्नलिस्टस (आईसीआईजे) के द्वारा हाल ही में प्रकाशित पैंडोरा पेपर्स रिपोर्ट को गंभीरतापूर्वक पढ़ा जा रहा है। यह पैंडोरा पेपर्स रिपोर्ट लगभग 1.2 करोड़ दस्तावेज़ों का एक ऐसी पड़ताल है, जिसे 117 देशों के 600 खोजी पत्रकारों की मदद से तैयार किया गया है। इस पड़ताल में पाया गया है कि भारत सहित दुनियाभर के 200 से ज्यादा देशों के बड़े नेताओं, अरबपतियों और मशहूर हस्तियों ने विदेशों में धन बचाने और अपने काले धन के गोपनीय निवेश के लिए किस तरह टैक्स पनाहगाह देशों ब्रिटिश वर्जिन आइलैंड, सेशेल्स, हांगकांग और बेलीज आदि में छुपाकर सुरक्षित किया हुआ है। इस रिपोर्ट में 300 से अधिक भारतीयों के नाम भी शामिल हैं। इनमें अनिल अंबानी, विनोद अडाणी, सचिन तेंडुलकर, जैकी श्राफ, करण मजूमदार, नीरा राडिया, सतीश शर्मा आदि शामिल हैं। ज्ञातव्य है कि वर्ष 2017 में पैराडाइज़ पेपर्स के तहत 1.34 करोड़ से अधिक गोपनीय इलेक्ट्रानिक दस्तावेजों के माध्यम से 70 लाख लोन समझौते, वित्तीय विवरण, ई-मेल और ट्रस्ट डीड लीक किए थे। इनमें 714 भारतीयों के नाम उजागर हुए थे। इसके पहले वर्ष 2016 में पनामा पेपर्स के तहत 1 करोड़ 15 लाख संवेदनशील वित्तीय दस्तावेज लीक किए थे।

इसमें वैश्विक कॉरपोरेटों के 'मनी लॉन्डरिंग' के रिकॉर्ड थे। 500 भारतीयों के नाम भी सामने आए थे। ये विभिन्न लीक फाइलें बताती हैं कि कैसे दुनिया के कुछ सबसे शक्तिशाली लोग अपनी संपत्ति छिपाने के लिए टैक्स हैवन्स देशों में स्थित शैल कंपनियों का इस्तेमाल करते हैं। टैक्स हैवन देश वे होते हैं जहां नकली कंपनियां बनाना आसान होता है और बहुत कम टैक्स या शून्य टैक्स लगता है। इन देशों में ऐसे क़ानून होते हैं जिससे कंपनी के मालिक की पहचान का पता लगा पाना मुश्किल हो। टैक्स हैवन देशों की शैल कंपनियों में विश्व की कई ऊंची हस्तियां अपना काला धन जमा करती हैं। काला धन वह धन होता है जिस पर आयकर की देनदारी होती है, लेकिन उसकी जानकारी सरकार को नहीं दी जाती है। काला धन का स्रोत कानूनी और गैर-कानूनी कोई भी हो सकता है। आपराधिक गतिविधियां जैसे अपहरण, तस्करी, निजी क्षेत्र में कार्यरत लोगों द्वारा की गई जालसाजी इत्यादि के माध्यम से अर्जित धन भी काला धन कहलाता है। ड्रग ट्रेड, अवैध हथियारों के व्यापार, जबरन वसूली का पैसा, फिरौती और साइबर अपराध से कमाया गया पैसा भी शेल कम्पनियों में सुरक्षित कर दिया जाता है, ताकि यह काला धन अपने देश में सफेद धन में बदल जाए। स्पष्ट है कि भ्रष्ट राजनेताओं से लेकर नौकरशाह, व्यापारिक घराने और अपराधी तक अपने काले धन को हवाला ट्रांसफर के जरिए टैक्स हैवन्स देशों में आराम से रख सकते हैं। इस तरह से वे बेइमानी से कमाया धन छिपाकर टैक्स से बच जाते हैं। दुनिया के प्रसिद्ध गैर लाभकारी संगठन ऑक्सफेम इंडिया की नई रिपोर्ट के मुताबिक टैक्स चोरी की पनाहगाहों के इस्तेमाल से दुनियाभर में सरकारों को हर साल 427 अरब डॉलर के टैक्स का घाटा होता है।
सबसे ज्यादा असर विकासशील देशों पर होता है। विकासशील देशों से बेइमानी का पैसा बाहर जाने की रफ्तार तेजी से बढ़ रही है और इसका विकास पर असर हो रहा है। यह समाज के लिए हानिकारक है। विदेशों में गोपनीय रूप से धन छुपाकर रखे जाने का सीधा असर आम आदमी के कल्याण पर भी पड़ता है। निश्चित रूप से पैंडोरा, पनामा और पैराडाइज पेपर्स लीक जैसे मामलों में कई मशहूर भारतीयों के नाम उजागर होने से काला धन को देश के बाहर भेजे जाने की कहानियां सामने आ जाती हैं। इनसे मालूम होता है कि देश में काले धन के इकट्ठा होना और उसे गोपनीय रूप से विदेशों में भेजे जाने की रफ्तार बढ़ रही है। निश्चित रूप से भारत में काले धन पर बहस दशकों पुरानी है। भारतीयों द्वारा विदेशी बैंकों में चोरी से संबंधित अधिकृत आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं। लेकिन अर्थविशेषज्ञ आर. वैद्यनाथन ने अनुमान लगाया है कि इसकी मात्रा करीब 72.8 लाख करोड़ रुपए है। स्विस नेशनल बैंक के द्वारा जारी रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2020 तक स्विस बैंकों में भारतीय नागरिकों और कंपनियों का जमा धन 20700 करोड़ रुपए से अधिक है। नेशनल काउंसिल ऑफ अप्लाइड इकॉनॉमिक रिसर्च के मुताबिक साल 1980 से 2010 के बीच भारत के बाहर जमा होने वाला काला धन 384 अरब डॉलर से लेकर 490 अरब डॉलर के बीच था। इसमें कोई दो मत नहीं है कि देश में भी काले धन पर नियंत्रण और विदेशों में काला धन ले जाने पर रोकथाम के लिए मोदी सरकार ने पिछले छह-सात वर्षों में बड़े प्रभावकारी कदम उठाए हैं। लेकिन अभी भ्रष्टाचार, काले धन और विदेशी बैंकों में चोरी से धन जमा किए जाने पर नियंत्रण के लिए मीलों चलना जरूरी है। अब पैंडोरा पेपर्स लीक मामले में जांच का सामान्य रूटिन नहीं रहना चाहिए।
चूंकि ये मामले प्रभावशाली सामाजिक व वित्तीय अभिजात्य वर्ग से संबंध रखते हैं, अतएव जांच संबंधी कार्यवाहियां कठोर होनी चाहिए। विदेशों में निवेश संबंधी मानकों को तोड़ने वालों के लिए कठोर कानून बनाए जाने होंगे। चूंकि भारत में भ्रष्टाचार और काले धन के नियंत्रण की सबसे बड़ी चुनौती राजनीतिक फंडिंग से है, अतएव राजनीतिक पार्टियों की फंडिंग में काले धन के प्रयोग को रोकने हेतु कठोर कदम आगे बढ़ाए जाने होंगे। अब भ्रष्टाचार पर नियंत्रण के लिए सरकार के द्वारा नौकरशाही में सुधार, भ्रष्टाचार विरोधी कानूनों के क्रियान्वयन में कठोरता, न्यायालय में त्वरित निपटारे, प्रशासनिक मामलों में पारदर्शिता सहित भ्रष्टाचार दूर करने एवं काला धन नियंत्रण के विभिन्न ठोस उपायों की डगर पर आगे बढ़ा जाना होगा। निश्चित रूप से पैंडोरा पेपर्स के द्वारा किया गया खुलासा दुनियाभर में कर चोरी की पनाहगाहों के अंधेरे में जमा धन के अपार भंडार का एक चौंकाने वाला खुलासा है। ऐसे में अब दुनिया की मशहूर हस्तियों के द्वारा टैक्स हैवन्स देशों में गोपनीय संपत्तियों के वैश्विक कर चोरी के ठिकानों को समाप्त करने के लिए आगे बढ़ा जाना होगा। हम उम्मीद करें कि देश और दुनिया की सभी सरकारों के द्वारा पूर्णरूपेण सतर्क होकर बढ़ती हुई वैश्विक कर चोरी से निर्मित हो रही वैश्विक आर्थिक असमानता से निपटने के प्रयासों को समन्वित रूप से विस्तारित किया जाएगा।
डा. जयंतीलाल भंडारी
विख्यात अर्थशास्त्री
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