सम्पादकीय

भाजपा का दक्षिण भारत मिशन

Subhi
4 July 2022 3:13 AM GMT
भाजपा का दक्षिण भारत मिशन
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एक तरफ भाजपा मोदी सरकार के 8 वर्ष पूरे होने का जश्न मना रही है तो दूसरी तरफ उसने मिशन विस्तार के तहत हैदराबाद में राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक का आयोजन कर दक्षिण भारत में अपने पांव पसारने की मुहिम छेड़ दी है।

आदित्य चोपड़ा: एक तरफ भाजपा मोदी सरकार के 8 वर्ष पूरे होने का जश्न मना रही है तो दूसरी तरफ उसने मिशन विस्तार के तहत हैदराबाद में राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक का आयोजन कर दक्षिण भारत में अपने पांव पसारने की मुहिम छेड़ दी है। अगर राजनीतिक दृष्टि से देखा जाए 2014 के बाद भाजपा राजस्थान, छत्तीसगढ़, दिल्ली, पंजाब और दक्षिण भारत के राज्यों के विधानसभा चुनावों को छोड़कर अन्य राज्यों में जीत हासिल कर रही है लेकिन भाजपा अभी तक दक्षिण भारतीय राज्यों में अपना जनाधार नहीं बढ़ा सकी। हालांकि पिछले कुछ दशकों में कर्नाटक ऐसा राज्य है जहां भाजपा ने जीत हासिल करना शुरू किया और आज भी वहां भाजपा की सरकार है। केंद्रशासित पुड्डुचेरी में भी भाजपा सरकार में शामिल है। तमाम को​शिशों के बावजूद केरल, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और तमिलनाडु उसके लिए अभी भी अभेद्य दुर्ग बने हुए हैं।

18 वर्ष पहले भी हैदराबाद में भाजपा राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक हुई थी, तब अटल बिहारी वाजपेयी का दौर था। यहीं से ही भाजपा ने आम चुनावों में जाने का ऐलान किया था। हालांकि उस समय भाजपा का इंडिया शाइनिंग अभियान लोगों को लुभा पाने में विफल रहा था और एनडीए सत्ता से बाहर हो गया था। उसके दस वर्ष बाद नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा कांग्रेस नीत यूपीए सरकार को सत्ता से बाहर कर पाई। नरेंद्र मोदी के शासनकाल में भाजपा के चाणक्य माने गए अमित शाह के नेतृत्व में देश भगवा होता गया। भाजपा ने उत्तर भारत से निकलकर देश के अलग-अलग कोनों में अपनी जगह बनाई लेकिन कर्नाटक को छोड़कर भाजपा दक्षिण भारत में अधिक सफल नहीं हो पाई। दक्षिण भारत के पांच राज्य आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, तेलंगाना, केरल और कर्नाटक 129 सांसद चुनकर लोकसभा में भेजते हैं। 2024 के लोकसभा चुनावों में ये पांचों राज्य सरकार बनाने में बड़ी भूमिका निभा सकते हैं। भाजपा कैडर बेस पार्टी है। भाजपा का नेतृत्व हमेशा जीत के लिए चुनाव लड़ता है। एक तरफ से जीत हासिल करने के बाद पार्टी नेतृत्व सहज मुद्रा में नहीं आता बल्कि अपने लक्ष्य को पूरा करने के लिए लगातार काम करता है। भारतीय जनता पार्टी दक्षिण भारत में काफी मेहनत कर रही है। देशभर के 73000 कमजोर बूथों पर पार्टी को मजबूत करने और जनाधार बढ़ाने के कार्यक्रमों में भी दक्षिण भारत के राज्यों पर खासा ध्यान दिया जा रहा है। जनसंघ की राजनीतिक यात्रा में दक्षिण भारत 60 के दशक तक दूर का सुहावना फूल रहा हो मगर अब भाजपा के कमल की महक को महसूस किया जा सकता है। कर्नाटक में उसने 2004 के राज्य विधानसभा चुनाव में धमाकेदार उपस्थिति दर्ज कराई थी और 2006 में कांग्रेस पार्टी की धर्म सिंह सरकार को गिराकर जनता दल (एस) के कुमारस्वामी के नेतृत्व में साझा सरकार बनाई थी। हालांकि यह सरकार घिसट-घिसट कर बड़ी मुश्किल से चली। लेकिन राज्य में एक वर्ष पहले हुए चुनाव में भाजपा अपने बूते पर बहुमत के आंकड़े के करीब पहुँची और पूरे 5 साल सरकार चलाई। अब कमल पूरी तरह से खिला हुआ है।

अब भाजपा की नजरें तेलंगाना पर विशेष रूप से लगी हुई हैं क्योंकि वहां विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। कभी तेलंगाना राष्ट्र समिति भाजपा के साथ थी लेकिन अब टीआरएस के नेता और मुख्यमंत्री चंद्रशेखर राव ने अलग रुख अपनाया हुआ है। हैदराबाद में राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक आयोजन इसलिए किया गया त​ाकि पार्टी कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाया जा सके। भाजपा ने तेलंगाना में पूरी ताकत झोंकी हुई है। प्रधानमंत्री मोदी और अन्य भाजपा नेता टीआरएस सरकार और मुख्यमंत्री पर परिवारवाद और अंधविश्वास को लेकर सीधा निशाना साध रहे हैं। जेपी नड्डा ने राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक को संबोधित करते हुए कहा कि जहां से परिवारवादी पार्टियां साफ हो जाती हैं वहीं तेजी से विकास होता है। भाजपा लगातार कह रही है कि अलग तेलंगाना राज्यों के लिए दशकों तक चला आंदोलन एक परिवार के भले के लिए नहीं बल्कि तेलंगाना के भविष्य के लिए था। अगले वर्ष कर्नाटक में भी चुनाव होने हैं। यद्यपि केरल और तमिलनाडु के विधानसभा चुनाव 2026 में होने हैं लेकिन द​िक्षण भारत के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह, पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा, रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने मोर्चा संभाल लिया है। उत्तर भारत में भाजपा के लिए जो राजनीतिक नेरेटिव काम करता है वो नेरेटिव केरल और तमिलनाडु में काम नहीं करता। दोनों राज्यों में भाजपा के सामने विचारधारा से जुड़ी चुनौतिया हैं। तेलंगाना में भाजपा को ऐसे संकेत मिल रहे हैं कि वह सत्ता की सीढ़ियां चढ़ सकती है। 2019 के लोकसभा चुनाव में 17 में से 4 सीटें जीतकर भाजपा ने सबको चौंका दिया था जबकि इससे एक साल पहले विधानसभा चुनाव में भाजपा को केवल एक सीट मिली थी। इस समय टीआरएस सत्ता विरोधी लहर का सामना कर रही है। भाजपा वहां शहरी क्षेत्रों में पार्टी को मजबूत करने की ओर बढ़ रही है। देखना होगा कि दक्षिण भारत में भाजपा को कितनी सफलता मिलती है। फिलहाल तो पार्टी ने फतेह का उद्घोष गुंजा दिया है।

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