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By: divyahimachal
महाराष्ट्र में महाविकास अघाड़ी में दरारें ढूंढ रही भाजपा ने फिर वार करते हुए इस बार शरद पवार की ताकत को हिलाया है। शिवसेना के बाद एनसीपी के खाते से विधायक छीन कर भाजपा ने महाराष्ट्र में अपनी सत्ता के जख्म विपक्षी एकता को दिए हैं। इन कसरतों के कई उपनाम तथा उच्चारण हो सकते हैं, तो इस खेल की जद में कांग्रेस के कई आशियाने भी आ सकते हैं। अगर शरद पवार का कद छोटा करने की साजिश परवान चढ़ रही है, तो क्षेत्रीय सरकारों पर कमोबेश ऐसे ही दबाव रहेंगे। जाहिर है हिमाचल में क्षेत्रीय अस्मिता पर भाजपा की निगाहें हैं और अब तक का घटनाक्रम बता रहा है कि यह पार्टी सत्ता के लिए तथा सत्ता के साथ प्रतिद्वंद्वियों को बेचैन कर सकती है। क्या हिमाचल कांग्रेस के लिए सत्ता का यह जाम इतना आसान है कि भाजपा इसे छलकने देगी। जिस तरह सुक्खू सरकार के चारों तरफ विपक्ष के पहरे हैं, उसे देखते हुए तख्त और ताज की लड़ाई स्पष्ट हो चुकी है। भाजपा ने सरकार की नियुक्तियों को अदालत तक ले जाकर मुख्य संसदीय सचिवों के पदों को लाभ के पेंच में फंसा दिया है तो उपमुख्यमंत्री पद को भी चुनौती दी है। कांग्रेस सरकार पर गारंटियों का दबाव बढ़ा कर भाजपा जनता से मुखातिब है, तो इस पहलू से चोट पहुंचाने के इंतजाम करती हुई केंद्र सरकार के माध्यम से वित्तीय फांस बढ़ाने के प्रयास में है। सुक्खू सरकार की उधारी में हर तरह की कतरब्यौंत लगा कर आगे बढऩे के कई रास्ते इतने तंग तो कर दिए कि प्रदेश सरकार की प्राथमिकताएं अत्यधिक दबाव में हैं। छह माह की हिमाचल सरकार के पक्ष में सत्ता परिवर्तन का जनून भले ही व्यवस्था परिवर्तन के घोड़ों पर सवार रहे, लेकिन भाजपा के लिए हिसाब बराबर करने की नौबत आ गई है। यहां भाजपा आलाकमान की नाक का सवाल जगत प्रकाश नड्डा को आगामी लोकसभा चुनाव की बुनियाद पर तंग कर रहा है, तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आभामंडल से खिसकी पहाड़ की चोटी का भी प्रश्र है। यानी कहना न होगा कि भाजपा के निशाने पर हिमाचल की सरकार का कद और ढंग है।
बेहतर होगा कि महाराष्ट्र के सबक से कांग्रेस को न केवल उस राज्य में अपनी फौज को सलामत रखना है, बल्कि अन्य राज्यों में नए संतुलन ढूंढने होंगे और जहां सत्ता है वहां खास मेहनत करनी होगी। ऐसे में भाजपा हमेशा विरोधियों की खामियों में नासूर पैदा करने का जाल बुनती है, जहां एक ओर मेवा है तो दूसरी ओर जहर। क्या अपनी जकडऩों से बाहर निकल कर हिमाचल में कांग्रेस ने आपसी भ्रम-भ्रांतियां मिटा दीं। एक छोटे राज्य की तासीर से हालांकि हिमाचल अलग दिखता है, लेकिन इसकी बड़ी वजह इसके गठन में राजनीतिक स्थिरता रही है। हमारा मानना है कि प्रदेश में तीन बड़े जिलों का सियासी संतुलन किसी भी सत्तारूढ़ दल के कौशल को साबित करता है। इस बार कांग्रेस के लिए सत्ता फतह का गठजोड़ शिमला में तो शिद्दत से संबोधित हो गया, लेकिन सबसे अधिक विधायक देने वाले कांगड़ा जिला की रिक्तियों में रक्त का संचार रुका हुआ है। बेशक मंडी से मात्र एक विधायक जीता हो, लेकिन वहां सरकार को साबित करने का शीर्षासन मेहनत कराएगा। यह सब इसलिए कि भाजपा अपने मनोबल में यह जिरह रखती है कि उसे विधानसभा चुनाव में एक प्रतिशत से भी कम मतों से शिकस्त मिली है। ऐसे में महाराष्ट्र में भाजपा का मंतव्य, हिमाचल में कम नहीं हो जाता और इससे बचने के लिए कांग्रेस को अपने हर विधायक की विश्वसनीयता अर्जित करनी होगी। विधायकों के मार्फत सरकार के सशक्तिकरण पर तवज्जो न दी गई, तो भाजपा की निगाहों से सत्ता के पात्र बच नहीं सकेंगे। जिस तरह पूर्व मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर, भाजपा प्रदेशाध्यक्ष डा. राजीव बिंदल व जेपी नड्डा की पैरवी में पार्टी के नेता अपने अभियान के नक्शे खींच रहे हैं, उसके मुकाबले कांग्रेस की सत्ता को अपने मोर्चे दुरुस्त करने होंगे। राजनीति के पुराने चावल, नए चावलों से नहीं मिले, तो कांग्रेस के चूल्हे को बचाना मुश्किल होता जाएगा। इसलिए हाशियों के बाहर पाए जा रहे कांग्रेस के नेताओं और वरिष्ठ विधायकों को गले लगाने की जरूरत से इंकार नहीं किया जा सकता।
Rani Sahu
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