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भाजपा फिर से जीतने के मनोबल को हैदराबाद की बैठक में साहसिक भी बनाती है
सोर्स- divyahimachal
भाजपा फिर से जीतने के मनोबल को हैदराबाद की बैठक में साहसिक भी बनाती है। जीत अगर भाजपा की सिद्धि है, तो हिमाचल की बिसात पर नए खेल, नई रणनीति और नए चमत्कार पैदा करने की हिम्मत भाजपा कर रही है। भाजपा आक्रामक है और विपक्षी आलोचना की छोटी से मक्खी भी नाक पर बैठने नहीं दे रही। इसके मुकाबले कांगड़ा का रोडमैप वादे कर रहा है। ओल्ड पेंशन स्कीम, मनरेगा की दिहाड़ी को बढ़ाकर 350 रुपए तथा पुलिस भर्ती से लीक हुई विश्वसनीयता पर कांग्रेस जोरदार प्रहार कर रही है, लेकिन भाजपा एक परिदृश्य बना रही है। यह परिदृश्य समूचे राष्ट्र से गायब होती कांग्रेसी छवि और राजनीतिक घटनाक्रम से घटती प्रासंगिकता का जिक्र है। महाराष्ट्र से उद्धव ठाकरे सरकार का पतन भाजपा के अजेय फार्मूले में एक और इजाफा करता है। यह गणित हर राज्य में अलग है, तो हिमाचल में कांग्रेस को शिकस्त देने के लिए भाजपा को ऐसा नया करना है जो सारा रिवाज बदल दे। जाहिर है हिमाचल की अपनी राजनीतिक परंपराएं, विषय, मुद्दे, मकसद और मतदाताओं के स्वभाव रहे हैं।
देखना यह होगा कि मतदाता इस बार प्रदेश और राष्ट्र को एक साथ देखता है या विधानसभा चुनावों में केवल हिमाचल को ही देखता है। अलग तरह की भूमिका में सोशल मीडिया और इसका इस्तेमाल, एक ऐसा वर्ग तैयार कर रहा है जो आपसी नफरत के बीच एक अनूठी सहमति के द्वार खोल देता है। रोजाना सोशल मीडिया पर टिप्पणियां और उसके निशाने पर आ रहे लोग, यह साबित कर देते हैं कि कहीं एकतरफा खड़े होने के लिए मानसिक का़िफला तैयार हो चुका है। यह का़िफला अगर नूपुर मामले में सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस पारदीवाला की छवि को गिरा सकता है, तो चुनाव आने तक कितना विरोध बचेगा या कितने अहम लोगों पर प्रहार हो चुका होगा, कौन जानता है। कम से कम भाजपा अपनी चुनावी रथयात्रा से यह तो साबित कर ही रही है कि उसके मैदान पर ही चुनाव होने लगे हैं। दूसरा यह भी कि हर चुनाव में भाजपा खुद को प्रोत्साहित और विपक्ष को आशंकित करने का माद्दा रखती है। यहां अंतर मतदाता और प्रशंसक में भी पैदा होता है। मतदाता को ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में डालकर भाजपा अपने इर्द-गिर्द प्रशंसक खड़े कर रही है। मतदाता कुछ अनुभवों व तर्कों के आधार पर भारतीय लोकतंत्र को देखता रहा है, लेकिन प्रशंसक ऐसा वातावरण तैयार करने में सक्षम है जहां भाजपा का पक्ष मजबूत हो जाता है।
यह मुखर प्रचार है जिसकी भागीदारी में अन्य कई वर्ग, सरकारों के प्रभाव, मीडिया की गुंजाइश और एक अलग भारत के सपने जुड़ जाते हैं। भाजपा ने राजनीतिक प्रीति भोज तैयार किया है, जहां समुदाय से संगठन की ताकत और विषयों के बीच राष्ट्र की हिफाजत का जमावड़ा तैयार हो जाता है। मतदाता को जमावड़े में परिवर्तित करने के कौशल में पारंगत होती पार्टी के सामने कांग्रेस को अपनी पार्टी के जमावड़े को सुरक्षित बनाए रखने की चुनौती है। अब सवाल यह है कि हिमाचल में भाजपा अधिकांश मतदाताओं को अपना प्रशंसक बना लेगी या इस प्रयास में आने वाले समय में सरकार कौन-से इश्तिहार पर काम करती है। डबल इंजन सरकार की पेशगी में भाजपा का पाठ्यक्रम अभी अधूरा व कमजोर दिखाई देता है। मंत्रियों की फेहरिस्त में सरकार का कोई न कोई पक्ष अधूरा लगता है। तीसरे क्षेत्रीय असंतुलन में भाजपा का सत्तापक्ष कहीं भारी तो कहीं कमजोर लगता है। ऐसे में भाजपा अपना चेहरा बदलने की फिराक में कितनी ताजगी बटोरती है। कितने विधायकों-मंत्रियों के टिकट कटते हैं, इस पर भी बहुत कुछ निर्भर करेगा। पार्टी अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए हैदराबाद से मिले आत्मबल का इस्तेमाल जोश से करेगी, लेकिन सामने कांग्रेस इस बार नपी-तुली जुबान और सधे हुए कदमों से चलते हुए अपनी पेशकश बदल रही है।
Rani Sahu
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