सम्पादकीय

कांग्रेस की जीत से भाजपा अवश्य सबक ले

Rani Sahu
3 Nov 2021 6:57 PM GMT
कांग्रेस की जीत से भाजपा अवश्य सबक ले
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हिमाचल प्रदेश की तीन विधानसभा और एक संसदीय सीट पर भाजपा को मिली करारी शिकस्त से अधिक सबक लेने की जरूरत है

हिमाचल प्रदेश की तीन विधानसभा और एक संसदीय सीट पर भाजपा को मिली करारी शिकस्त से अधिक सबक लेने की जरूरत है। भाजपा अगर अब भी अपनी कार्यप्रणाली में सुधार और पुराने कार्यकर्ताओं को तरजीह नहीं देती तो आगामी विधानसभा चुनावों में इससे भी गहरे जख्म मिल सकते हैं। चुनाव योजना, समीक्षा और एकता से लड़े जाएं, तभी सफलता हासिल की जा सकती है। सरकार और संगठन में आपसी तालमेल प्रगाढ़ बनाए जाने की अब अधिक जरूरत लगती है। भाजपा ने कार्यकर्ता कम और नेता अब अधिक बनाए हैं। नतीजतन हर कोई टिकट के लिए ही संगठन से जुड़ा होने का दिखावा करता है। भाजपा कहीं गलती से किसी ऐसे नेता को टिकट नहीं देती तो वह आजाद उतरकर उसी मां समान पार्टी के खिलाफ खड़ा होकर मैदान में कूद जाता है। टिकट आबंटन से खफा नेताओं और उनके समर्थकों को समय रहते मनाने की बजाय उन्हें छह साल के लिए पार्टी से निष्कासित किया जाना हिटलरी फरमान होता है। जुब्बल-कोटखाई में नीलम सरईक थोड़े से मत लेकर अपनी जमानत तक नहीं बचा पाई। कांग्रेस मुक्त भारत का नारा देने वाली पार्टी के लिए बहुत शर्म की बात है। भाजपा आलाकमान ने आखिर क्या सोचकर उसे टिकट दिया होगा, आज चर्चा का विषय बना है। सत्तापक्ष और विपक्ष लोकतंत्र के दो स्वरूप हैं, इसलिए विपक्ष बिना लोकतांत्रिक व्यवस्था कायम नहीं रह सकती है। मुख्यमंत्री के गृह जिला में कांग्रेस द्वारा परचम लहराना आगामी चुनावों के परिणामों की ओर साफ इशारा करता है।

चेतन बरागटा को अगर टिकट नहीं दिया जाना था, तो उसे राजनीति में उतरने के सपने फिर क्यों दिखाए गए? फतेहपुर सीट पर रात को भाजपा जगदेव पठानिया को अपना प्रत्याशी मनोनीत करती है, ठीक वहीं अगले दिन सुबह बलदेव ठाकुर को भाजपा की टिकट मिलने की सुर्खियां अखबारों में पढ़ने को मिलती हैं। अनुशासन, राष्ट्रवाद और नैतिकता का दावा करने वाली भाजपा की तस्वीर जनता देख रही है। फतेहपुर सीट पर पांच नेताओं ने टिकट के लिए सार्वजनिक तौर पर अपनी दावेदारी जताई थी। भाजपा अगर अन्य बागियों की घर वापसी कर सकती है, तो फिर डा. राजन सुशांत की क्यों नहीं हो सकती थी? राजन सुशांत ने अकेले ही इस बार करीब तेरह हजार मत लेकर अपनी ताकत का एहसास करवाया है। भाजपा ने पहले किरपाल परमार को इस सीट से मैदान में उतारा था। बलदेव ठाकुर टिकट कटने से क्रोधित होकर अगर आजाद चुनाव नहीं लड़ते तो किरपाल परमार की मात्र बारह सौ मतों से हार कभी नहीं होती। भाजपा के वरिष्ठ नेता किरपाल परमार ने चुनाव हारने के बावजूद फतेहपुर हल्के की जनता की सेवा किए जाने की मुहिम निरंतर छेड़े रखी। इसी मुहिम के तहत गृहिणी सुविधा योजना में करीब छह हजार गैस सिलेंडर महिलाओं को बांटे गए। जल जीवन मिशन के तहत घरों में नल लगाए। बिजली, पानी, सड़क, स्वास्थ समस्याओं के समाधान करवाए। यही नहीं, चुनावों से पूर्व जयराम सरकार के मंत्रियों के कार्यक्रम आयोजित करवाए। पंद्रह अगस्त को जिला स्तरीय कार्यक्रम रेहन में आयोजित करवाया।
फतेहपुर में मुख्यमंत्री की विशाल जनसभा आयोजित करवाकर अपनी शक्ति का प्रदर्शन किया। किरपाल परमार के आग्रह पर ही मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने राजा का तालाब, रे में उपतहसील, अनाज मंडी खोलने, रेहन पुलिस चौकी को थाना बनाए जाने, प्रेस क्लब फतेहपुर भवन के लिए दस लाख रुपए, स्कूलों, सड़कों, अस्पतालों का जीर्णोद्धार किए जाने की अनेक घोषणाएं की थी। फतेहपुर की अधिकांश जनता किरपाल परमार पर अब पूरी तरह आस्था रख रही थी। सच बात यह है कि किरपाल परमार कोरोना काल के दौरान भी फतेहपुर हल्के की जनता की समस्याओं का समाधान किए जाने में लगे रहे। भाजपा आलाकमान ने फतेहपुर को प्रयोगशाला समझकर टिकट बलदेव ठाकुर को थमा दिया। टिकट बलदेव ठाकुर को मिलने के बावजूद किरपाल परमार ने सहनशीलता का परिचय देते हुए आजाद चुनाव लड़ना पार्टी हित में नहीं समझा। मगर परमार समर्थकों में भाजपा आलाकमान और सरकार के खिलाफ खूब रोष रहा, जिसकी भड़ास सोशल मीडिया पर देखने को मिलती थी। भाजपा की नीतियों को घर-द्वार तक पहुंचाने का दम भरने वाले कार्यकर्ता ही उसके खिलाफ जहर उगलना शुरू हो गए। मुख्यमंत्री इस बीच यह ऐलान कर गए कि फतेहपुर को फतह करके दो-चार साल का विकास एक साल में पूरा कर दिया जाएगा। कहने का भावार्थ यह है कि सरकार जान-बूझकर फतेहपुर की अनदेखी करती रही। फतेहपुर तहसील को तहसीलदार न मिलने का मतलब भी शायद जनता को समझ आ गया। भाजपा नेता किरपाल परमार ने चार साल विकास कार्य करवाए जाने को तरजीह दी, मगर किसी ने उसके बारे में दो शब्द कहना भी क्यों उचित नहीं समझा? अगर किरपाल परमार को भाजपा ने टिकट नहीं देना था तो उनके आग्रह पर मुख्यमंत्री फिर कैसे घोषणाओं की झड़ी लगाकर गए?
किरपाल परमार का टिकट कटने के बाद लोगों ने तमाम घोषणाओं को सिर्फ ड्रामा समझा और नतीजा सभी के सामने है। नूरपुर हल्के की पंद्रह पंचायतें फतेहपुर हल्के में समाहित हो चुकी हैं, जिसका वन मंत्री को बेहद मलाल रहा। वन मंत्री ने इन पंचायतों का विकास किए जाने की कई बड़ी घोषणाएं भी की। इन्हीं पंचायतों की वजह से बलदेव ठाकुर भाजपा का टिकट लेने में कामयाब हुए। जयराम ठाकुर सरकार के मंत्री, विधायक, बोर्डों के चेयरमैन और संगठन के नेतागण कार्यकर्ताओं के साथ गांवों में जाकर बलदेव ठाकुर के पक्ष में मत मांगते हुए ज्यादातर सेल्फियां लेने में मशगूल रहे। तमाम नेतागण ओवरकांफिडेंस में रहे कि सरकार उनकी है, इसलिए उन्हें कोई पराजित नहीं कर सकता है। भाजपा नेता मीडिया तक को मैनेज करने में नाकाम रहे। ऐसे में कार्यकर्ताओं की बात करने का सवाल कहां उठता है। मीडिया बलदेव ठाकुर को कम पढ़ा-लिखा साबित किए जाने में लगा रहा, जिसका जनता पर बुरा प्रभाव पड़ा। किरपाल परमार की तरह ही बलदेव ठाकुर को बाहरी बताकर जवाली पार भेजने का नारा सोशल मीडिया पर छाया रहा। इन नारों को बुलंद करने वाले मास्टर माइंड का पता लगाना किसी ने जरूरी नहीं समझा। महंगाई की मार से जनता त्रस्त रही, पर भाजपा सरकार ने इसकी भी अनदेखी की।
सुखदेव सिंह
लेखक नूरपुर से हैं
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