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- कांग्रेस की जीत से...
हिमाचल प्रदेश की तीन विधानसभा और एक संसदीय सीट पर भाजपा को मिली करारी शिकस्त से अधिक सबक लेने की जरूरत है। भाजपा अगर अब भी अपनी कार्यप्रणाली में सुधार और पुराने कार्यकर्ताओं को तरजीह नहीं देती तो आगामी विधानसभा चुनावों में इससे भी गहरे जख्म मिल सकते हैं। चुनाव योजना, समीक्षा और एकता से लड़े जाएं, तभी सफलता हासिल की जा सकती है। सरकार और संगठन में आपसी तालमेल प्रगाढ़ बनाए जाने की अब अधिक जरूरत लगती है। भाजपा ने कार्यकर्ता कम और नेता अब अधिक बनाए हैं। नतीजतन हर कोई टिकट के लिए ही संगठन से जुड़ा होने का दिखावा करता है। भाजपा कहीं गलती से किसी ऐसे नेता को टिकट नहीं देती तो वह आजाद उतरकर उसी मां समान पार्टी के खिलाफ खड़ा होकर मैदान में कूद जाता है। टिकट आबंटन से खफा नेताओं और उनके समर्थकों को समय रहते मनाने की बजाय उन्हें छह साल के लिए पार्टी से निष्कासित किया जाना हिटलरी फरमान होता है। जुब्बल-कोटखाई में नीलम सरईक थोड़े से मत लेकर अपनी जमानत तक नहीं बचा पाई। कांग्रेस मुक्त भारत का नारा देने वाली पार्टी के लिए बहुत शर्म की बात है। भाजपा आलाकमान ने आखिर क्या सोचकर उसे टिकट दिया होगा, आज चर्चा का विषय बना है। सत्तापक्ष और विपक्ष लोकतंत्र के दो स्वरूप हैं, इसलिए विपक्ष बिना लोकतांत्रिक व्यवस्था कायम नहीं रह सकती है। मुख्यमंत्री के गृह जिला में कांग्रेस द्वारा परचम लहराना आगामी चुनावों के परिणामों की ओर साफ इशारा करता है।