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दक्षिण में भाजपा
दक्षिण भारत में भाजपा अपना जनाधार बढ़ा रही है। उसने दक्षिणी राज्यों-कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, पुडुचेरी, केरल और तेलंगाना में कांग्रेस को बहुत पीछे छोड़ दिया है। यह निश्चित रूप से नरेंद्र मोदी की उपलब्धि है, लेकिन कैडर आधारित भाजपा को अभी पुडुचेरी और तमिलनाडु में अपनी विफलताओं कीपहचान करनी है। भाजपा को अभी द्रविड़ राजनीति का अनुमान लगाना बाकी है। पुडुचेरी में भाजपा के नौ विधायक (छह जीतकर आए हुए और तीन मनोनीत) हैं, जबकि जीतकर आए हुए निर्दलीयों में से तीन भाजपा में चले गए हैं। इस तरह भाजपा के कुल विधायकों की संख्या 12 हो गई है।
जबकि भाजपा की सहयोगी एन रंगास्वामी कांग्रेस के पास दस विधायक हैं, ऐसे में उन्हें आसानी से बहुमत मिल जाता है। लेकिन पिछले एक महीने में उनमें से किसी को मंत्री नहीं बनाया गया है। यह विपक्षी द्रमुक की चतुर चाल है। वह पुडुचेरी में महाराष्ट्र वाली राजनीतिक चाल चल रही है। हालांकि पुडुचेरी में महाराष्ट्र शैली की राजनीति करने के लिए कोई शरद पवार या उद्धव ठाकरे नहीं है। इसी वजह से द्रमुक विफल हो गई। उसे अमित शाह एवं जेपी नड्डा की कुटिल राजनीति को समझना बाकी है। इसके बावजूद द्रमुक के अड़ंगे के कारण पुडुचेरी में लोकप्रिय सरकार को सत्ता में आए एक महीने से अधिक हो गए हैं, लेकिन अभी तक सिर्फ मुख्यमंत्री ने शपथ ली है, मंत्रिपरिषद का गठन नहीं हुआ है।
अगर भाजपा पुडुचेरी में अच्छा करती है, तो तमिलनाडु की राजनीति में भी बड़ा बदलाव आएगा। तमिलनाडु में फिलहाल भाजपा के पास चार विधायक हैं। इसके बावजूद भाजपा की तमिलनाडु इकाई का नारा है-हम 2026 के चुनाव में चार से चालीस हो जाएंगे। द्रमुक को इस बात का डर है कि कहीं भाजपा प्रमुख विपक्ष के रूप में न उभर जाए। दूसरी ओर, कांग्रेस वहां एक जिला स्तरीय पार्टी में सिमट गई है। हालांकि उसने 18 सीटें जीती हैं, लेकिन एम के स्टालिन की कृपा से। मोदी और भाजपा को कोसने से द्रमुक को तमिलनाडु में अपनी खोई हुई राजनीतिक ताकत हासिल करने में मदद मिली। द्रमुक के पक्ष में एकतरफा अल्पसंख्यक वोट पड़े। लेकिन राहुल गांधी वहां कुछ नहीं कर पाए।
एमके स्टालिन को तमिलनाडु का मुख्यमंत्री बने लगभग एक महीना हो चुका है और उनके सामने अन्नाद्रमुक के रूप में मजबूत विपक्ष है। अच्छी बात यह है कि मतदाताओं ने द्रमुक को भारी बहुमत नहीं दिया। द्रमुक ने कोरोना संकट को अच्छे ढंग से संभाला, लेकिन उसने पक्षपात भी किया। जैसे, मदद पहुंचाने के मामले में उसने कोयंबटूर, सलेम और मदुरै जैसे जिलों की अनदेखी कर दी, क्योंकि वहां अन्नाद्रमुक को भारी बढ़त मिली। आईएएस और आईपीएस अधिकारियों का बड़े पैमाने पर तबादला करना पिछले एक महीने में स्टालिन का सबसे बड़ा योगदान रहा है। बताया जाता है कि अखिल भारतीय सेवा के कुल 300 अधिकारियों को हटा दिया गया और खासकर उत्तर प्रदेश, बिहार और ओडिशा के अधिकारियों के साथ बुरा व्यवहार किया गया। ये अधिकारी संभवतः पूर्ववर्ती अन्नाद्रमुक सरकार के वफादार रहे हों। राजनीति में यह सामान्य बात है। लेकिन तमिलनाडु में द्रविड़ गौरव का बोलबाला है।
मुख्यमंत्री स्टालिन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ऑक्सीजन, टीके और अधिक धनराशि जारी करने के लिए 26 पत्र लिखे। द्रमुक के लिए असमंजस की स्थिति है कि वह आगे केंद्र के साथ कैसे तालमेल बिठाएगी, क्योंकि स्टालिन ने पलानीस्वामी सरकार को मोदी का 'बंधुआ' बताया था। दिलचस्प बात यह है कि अब स्टालिन का भी केंद्र के प्रति रवैया बंधुआगीरी का है। ऐसे में, वह आगे भाजपा या मोदी के खिलाफ राजनीति कैसे कर पाएंगे? वह पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की तरह आक्रामकता दिखाएंगे या फिर ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक की तरह समन्वय का रास्ता चुनेंगे? द्रमुक के पास कोई तीसरा विकल्प नहीं है।
चुनाव के समय स्टालिन ने वाशिंग मशीन, कूकर, गैस सिलेंडर आदि मुफ्त देने का मतदाताओं से वादा किया था। कांग्रेस नेता पी. चिदंबरम ने तब मजाकिया टिप्पणी भी की थी कि अगर द्रमुक वादे पूरे करती है, तो राज्य के खजाने को 20 लाख करोड़ रुपये की चपत लगेगी, जो केंद्रीय बजट के बराबर है। मतदाताओं को अब भी भरोसा है कि स्टालिन अपना वादा पूरा करेंगे। कोरोना पीड़ितों को एक करोड़ रुपये देने का द्रमुक का वादा भी पूरा नहीं किया गया है। द्रमुक ने एनईईटी परीक्षा रद्द करने का आश्वासन भी दिया था। स्टालिन ने कहा था कि पदभार ग्रहण करते ही वह सबसे पहले इसी फाइल पर दस्तखत करेंगे। लेकिन पिछले एक महीने में कुछ भी नहीं हुआ। द्रमुक के इन वादों को लेकर विपक्ष आक्रामक है। दरअसल द्रमुक पारिवारिक नियंत्रण और वर्चस्व वाली पार्टी है। परिवार में चार या पांच धड़े हैं और वे एक-दूसरे से लड़ते रहते हैं। यूपीए सरकार में केंद्रीय मंत्री रहे एम के अलागिरी अलग रहते हैं और स्टालिन से बात भी नहीं करते।
संकट के समय तेजी से ऑक्सीजन आपूर्ति करवा कर प्रधानमंत्री मोदी ने तमिलनाडु की मदद की। सर्वोच्च न्यायालय के हस्तक्षेप के बाद प्रधानमंत्री ने स्टरलाइट ऑक्सीजन प्लांट भी खुलवाया। तमिल अल्पसंख्यकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए पहली बार श्रीलंका के जाफना जाने वाले मोदी थे और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग को वार्ता के लिए महाबलीपुरम ले आने वाले भी मोदी ही थे। पर याद रखना होगा कि प्रधानमंत्री मोदी स्टालिन द्वारा दिखाए गए काले झंडे और 'गो बैक मोदी' का नारा अभी तक नहीं भूले हैं। उस घटनाक्रम ने उन्हें काफी आहत किया था, क्योंकि मानवीय शिष्टाचार और सम्मान प्रदर्शन का परिचय देते हुए वह स्टालिन के 94 वर्षीय पिता करुणानिधि से मिलने गए थे। यह भाजपा कार्यकर्ताओं के साथ-साथ उनके नेताओं की दिमाग में भी होगा। मोदी निश्चित रूप से स्टालिन को उनकी जगह दिखाएंगे, लेकिन उचित वक्त पर। पर मोदी सरकार के प्रति द्रमुक और स्टालिन के नकारात्मक नजरिये से तमिलनाडु को पश्चिम बंगाल की तरह नुकसान नहीं होना चाहिए।
क्रेडिट बाय अमर उजाला
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