सम्पादकीय

BJP in South: चुनावी राजनीति में दक्षिण, भाजपा की आक्रामक रणनीति

Rounak Dey
12 Sep 2022 2:05 AM GMT
BJP in South: चुनावी राजनीति में दक्षिण, भाजपा की आक्रामक रणनीति
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मोदी ने दक्षिण के युवाओं को आकर्षित किया है, जिसका लाभ 2024 में मिलने वाला है।

दक्षिण के क्षेत्रीय दलों के नेता अचानक उत्तर भारत पर ध्यान क्यों केंद्रित करने लगे हैं? यह भारतीय राजनीति में एक नया मोड़ है। आप चाहे जिस तरफ से देखें, उत्तर और दक्षिण भारत के बीच एक स्पष्ट विभाजन मौजूद है। ऐसे में, वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले अपनी रणनीतियों और प्रभाव क्षेत्र से बाहर निकलते हुए कई नेताओं ने उत्तर और दक्षिण के बीच भागदौड़ शुरू कर दी है। इसकी मुख्य वजह यह है कि दक्षिण भारत में लोकसभा की 130 सीटें हैं। वायनाड से सांसद और कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने भारत जोड़ो यात्रा शुरू की है। इसी तरह के. चंद्रशेखर राव ने पिछले दिनों नीतीश कुमार से मुलाकात की, तो दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल अपने शिक्षा मॉडल का प्रचार करने तमिलनाडु पहुंचे। उन्होंने वहां द्रमुक के प्रमुख एम. के. स्टालिन से मुलाकात भी की।




इसी तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने केरल के कोच्चि में भारतीय नौसैनिक जहाज विक्रांत राष्ट्र को समर्पित किया, तो गृहमंत्री अमित शाह ने दक्षिणी राज्य परिषद की बैठक के लिए केरल को चुना। भाजपा द्वारा अचानक बीएस येदियgरप्पा को संसदीय बोर्ड में शामिल करने का फैसला और तमिलनाडु की वनती श्रीनिवासन को भाजपा महिला मोर्चा का प्रमुख बनाना, जो हिंदी नहीं जानतीं, क्या बताता है? यही कि भाजपा के लिए भी दक्षिण भारत का महत्व बढ़ गया है। राहुल गांधी कर्नाटक में दो युद्धरत कांग्रेस नेताओं-डीके शिव कुमार और सिद्धारमैया को नाटकीय तरीके से एक साथ ले आए, जैसे कि उन्होंने कांग्रेस के लिए मिलकर काम करने के लिए सुलह कर ली हो। गौरतलब है कि पंजाब में नवजोत सिंह सिद्धू और चरणजीत सिंह चन्नी को साथ लाने के लिए भी राहुल गांधी ने यही किया था। उसके बावजूद पंजाब में कांग्रेस चुनाव हार गई।


भाजपा और कांग्रेस के फैसलों से पता चलता है कि दोनों राष्ट्रीय दलों की नजर दक्षिण भारत के छह राज्यों की 130 लोकसभा सीटों पर है। 1980 के दशक के उत्तरार्ध में एनटीआर, एमजीआर, जयललिता जैसे कद्दावर नेता थे, लेकिन हाल के वर्षों में इन नेताओं की प्रतिकृतियां ही रह गईं। इनमें से कई 2जी और कोयला घोटाले में संलिप्त थे। यहां तक कि यूपीए सरकार में वित्तमंत्री रहे पी. चिदंबरम तक को सुप्रीम कोर्ट ने जेल में डाल दिया था। दक्षिण की क्षेत्रीय पार्टियों को इससे पहले कभी ऐसा अनुभव नहीं हुआ होगा।

उत्तर भारत की जो पार्टियां अक्सर दक्षिण की आलोचना करती थीं, अचानक वे इन राज्यों पर ध्यान केंद्रित कर रही हैं। दक्षिण में छह से आठ जातियों का वर्चस्व है। इनमें सबसे शक्तिशाली लिंगायत, वोक्कालिगा, गोंडर, थेवर, खम्मा और रेड्डी हैं। इन समुदायों के नेता स्वतंत्रता सेनानी थे। लेकिन यहां केंद्र के खिलाफ क्षेत्रीय दलों का उदय हुआ। वर्चस्ववादी नीतियों के कारण ये पार्टियां स्वाभाविक ही कांग्रेस और भाजपा से चिढ़ गईं। लेकिन अब भाजपा दक्षिण के राज्यों पर अपना ध्यान केंद्रित कर रही है। हाल ही में तेलंगाना राष्ट्र समिति के प्रमुख के. चंद्रशेखर राव ने पटना में नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव के साथ लोकसभा चुनाव 2024 की रणनीति पर चर्चा की। आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल ने तमिलनाडु और कर्नाटक का दौरा किया। ऐसा क्यों? नीतीश कुमार अक्तूबर में द्रमुक नेता स्टालिन से मिलेंगे।

हालांकि गोवा में विफल होने के बाद ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस ने दक्षिण भारत का रुख न करने का फैसला किया है। प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता दक्षिण में बढ़ी है। इसका प्रमुख कारण आठ वर्षों का स्वच्छ प्रशासन है। यूपीए के विपरीत, उनके कार्यकाल में केंद्र-राज्य संबंध सहज रहे हैं। फिर खासकर यूपीए-2 में तो कई घोटाले, बम धमाके और सांप्रदायिक तनाव के हालात पैदा हुए थे। दिलचस्प बात यह है कि हाल के महीनों में प्रधानमंत्री मोदी की जगन मोहन रेड्डी से भी चार मुलाकातें हुईं और इतनी ही बार मुलाकातें चंद्रबाबू नायडू के साथ भी हुईं। क्या इसका मतलब यह है कि 2024 में आंध्र प्रदेश में भाजपा का कोई दुश्मन नहीं है? तथ्य यह है कि तेलंगाना का अलग राज्य बनने के बाद आंध्र में कांग्रेस का पतन हो गया है और भाजपा दक्षिण भारत में निश्चित रूप से आगे बढ़ रही है। कर्नाटक और पुदुचेरी में उसकी सरकार है। जबकि कांग्रेस ने आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में अपना जनाधार खो दिया है। जब से उत्तर प्रदेश में मोदी और योगी की डबल इंजन सरकार की वापसी हुई, दक्षिण में मोदी की लोकप्रियता में और इजाफा हुआ है। भाजपा की आक्रामक 'दक्षिण की ओर देखो' नीति फलदायी हो रही है। उनका नारा है-'पहले तेलंगाना, फिर तमिलनाडु।'

बहुत व्यवस्थित ढंग से हर महीने प्रधानमंत्री मोदी, गृहमंत्री अमित शाह और भाजपा अध्यक्ष जे. पी. नड्डा सभी दक्षिणी राज्यों का दौरा कर रहे हैं, लेकिन सबसे ज्यादा जोर तेलंगाना पर है। यही कारण है कि के. चंद्रशेखर राव बौखला गए हैं और उत्तर भारत में भाजपा के जनाधार में सेंध लगाना चाहते हैं। विभिन्न दलों और उनकी विचारधारा में उत्तर भारत और दक्षिण भारत में अंतर है। दक्षिण भारतीय मतदाता मुख्यमंत्री के रूप में फिल्मी सितारों को देखते रहे हैं। लेकिन कोरोना के बाद मजबूत हुई डिजिटल भुगतान व्यवस्था ने खासकर दक्षिण भारतीय छात्रों को मोदी और भाजपा का मुरीद बना दिया है। इसके अलावा, यूक्रेन युद्ध के दौरान युद्ध क्षेत्र से दक्षिण के हजारों छात्रों को सुरक्षित वापस लाया गया।

वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव में अब जबकि ज्यादा समय नहीं है, सोशल मीडिया के जरिये भाजपा की पहुंच तेजी से बढ़ रही है। इसका श्रेय दूर-दराज के गांवों में फैले 5जी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और ऑप्टिकल फाइबर नेटवर्क को जाता है। इसलिए दक्षिण के राज्यों में आगामी लोकसभा चुनाव का प्रचार और मतदान अनोखा होगा। मोदी ने थोक भाव में दक्षिण के लोगों को पद्म पुरस्कार बांटे हैं। अपने मासिक 'मन की बात' में उन्होंने दक्षिण के सामान्य लोगों का परिचय दिया है और दक्षिण के मध्यवर्ग तक भी पहुंचे हैं। द्रमुक, टीआरएस, वाईएसआर जगन रेड्डी मोदी का मुकाबला करने में विफल हो रहे हैं। कहने की जरूरत नहीं कि भाजपा और मोदी ने दक्षिण के युवाओं को आकर्षित किया है, जिसका लाभ 2024 में मिलने वाला है।

सोर्स: अमर उजाला

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