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तमिलनाडु के निकाय चुनावों में द्रविड़ मुनेत्र कड़गम ने एकतरफा जीत दर्ज की है
By आर राजागोपालन.
तमिलनाडु के निकाय चुनावों में द्रविड़ मुनेत्र कड़गम ने एकतरफा जीत दर्ज की है. वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में एआईएडीएमके का आकार सिमटता जा रहा है. इस चुनाव में डीएमके ने भारी नकदी प्रवाह की अनुमति दी थी. एआईएडीएमके के मजबूत गढ़ को भेदने के लिए एक मोटे अनुमान के तौर पर कोयंबटूर के प्रत्येक वार्ड में तीन से चार करोड़ रुपये खर्च किये गये.
खास बात है कि अकेले चुनाव लड़ रही भाजपा के प्रदर्शन में मोदी मैजिक का साफ असर दिखा. भाजपा तीसरे स्थान पर पहुंचने में सफल रही. हालांकि, चुनाव अभियान राष्ट्रीय मुद्दों पर केंद्रित रहा और एमके स्टालिन ने नरेंद्र मोदी पर जमकर हमले किये. नरेंद्र मोदी पर लगातार व्यक्तिगत हमलों के कारण कुछ मतदाताओं का मोहभंग हुआ. वास्तव में, अल्पसंख्यक मतों की वजह से डीएमके जीत का हैट्रिक लगाने में सफल रही है, लेकिन स्थानीय निकाय चुनावों में मोदी पर हमलों का असर डीएमके पर भी दिखा. इससे भाजपा को तीसरे स्थान पर पहुंचने में मदद मिली.
हालांकि, स्थानीय निकाय चुनाव 12 साल के अंतराल पर हो रहे थे, जिससे लोगों में उत्साह था. यह आठ तरफा प्रतिस्पर्धा रही, सत्तारूढ़ डीएमके 13000 स्थानीय निकायों में से 11000 जीतने में सफल रही. कांग्रेस डीएमके के साथ गठबंधन में है. अगर मतदान पैटर्न और आंकड़ों का विश्लेषण करें, तो डीएमके के साथ-साथ एआईएडीएमके, भाजपा, कांग्रेस और अन्य राज्य स्तरीय दलों के लिए कई महत्वपूर्ण चीजें घटित हुई.
पहला, डीएमके बढ़त बरकरार रखने में सफल रही. दस वर्षों तक सत्ता से दूर रहने के बाद इस राजनीतिक दल ने वापसी की. अगर करुणानिधि के बगैर डीएमके एकजुट है, तो यह एमके स्टालिन के नेतृत्व का कमाल है. दूसरा, एआईएडीएमके, जयललिता के बाद पार्टी चार वर्षों तक सत्ता में रही. इसकी मुख्य वजह भाजपा की कृपा रही, विशेषकर नरेंद्र मोदी की.
नेतृत्व संकट के चलते नाराज गुट के बाहर निकलने के बावजूद पार्टी एकजुट रही. विधानसभा चुनाव के दौरान शशिकला शांत ही रहीं. तीसरा, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सामाजिक कल्याण कार्यक्रम- प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण, नल से जल आदि तमिलनाडु के दूरदराज गांवों तक पहुंचा. सर्वेक्षण में एक नयी बात सामने आयी- प्रधानमंत्री का 'मन की बात' कार्यक्रम मोदी कार्यकाल के सात साल बाद भी काफी लोकप्रिय है और उन्होंने अब तक 85-90 तमिलनाडु के ग्रामीणों से बात की है.
तमिलनाडु के अनेक हिस्सों में नरेंद्र मोदी की लोकप्रिय योजनाओं की सराहना की जा रही है. चौथा, कमल हासन की पार्टी मक्कल नीधि मय्यम, नाम तामिलर कड़गम, डॉ एस रामदास की पट्टाली मक्कल काची का प्रदर्शन भाजपा के मुकाबले नीचे ही रहा. तमिलनाडु में सबसे बड़ा बदलाव हुआ कि मतदाताओं ने छोटे स्थानीय दलों को नकार दिया है.
डीएमके के लिए यह बड़ी जीत है और इसका श्रेय मुख्यमंत्री एमके स्टालिन को दिया जाना चाहिए. दूसरा, डीएमके सत्तारूढ़ दल भी है. चक्रवात और कोरोनावायरस के प्रबंधन को लेकर लोगों में नाराजगी थी, लेकिन ज्यादातर लोगों का मानना है कि धन की ताकत ने महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है. एमके स्टालिन ने कहा कि यह द्रविड़ मॉडल की जीत है.
तमिलनाडु भाजपा प्रमुख अन्नामलाई ने कहा कि एआईएडीएमके गठबंधन से बाहर आने के बाद भाजपा ने अकेले चुनाव में उतरने का फैसला किया. हालांकि, 10 जिलों में भाजपा अपना खाता खोलने में सफल नहीं हो पायी. पार्टी 230 नगर पंचायत वार्ड, 56 नगरपालिका वार्ड और 22 नगर निगम वार्ड, जिसमें एक चेन्नई का भी शामिल है, जीतने में सफल रही.
उन्होंने कहा कि डीएमके सरकार की योजनाओं को जमीनी स्तर पर लागू करने में भाजपा वार्ड सदस्य अपना पूरा सहयोग करेंगे. अन्नामलाई ने कहा है कि भाजपा के उम्मीदवारों ने आठ तरफा चुनावी मैदान में, 13 दलों के गठबंधन के खिलाफ मुकाबला किया. उन्होंने दावा कि 'इन 13 दलों की कोई विचारधारा नहीं हैं, वे केवल जातीय और धार्मिक राजनीति के आधार पर लड़ाई में थे.'
इस बीच नयी दिल्ली में भाजपा आईटी सेल प्रमुख अमित मालवीय ने ट्वीट किया-'अभी कुछ दिन पहले राहुल गांधी ने संसद में भविष्यवाणी की थी कि तमिलनाडु में कभी भाजपा का शासन नहीं आयेगा. तमिलनाडु के शहरी निकाय चुनावों ने उनके ऐसे दावों को झुठला दिया है. भाजपा अब तमिलनाडु की राजनीति में डीएमके और एआईएमडीएमके के बाद तीसरी सबसे बड़ी पार्टी बन गयी है और कांग्रेस से आगे निकल चुकी है.
भाजपा ने उन इलाकों में भी जीत दर्ज की है, जहां वह कभी नहीं जीती थी.' तमिलनाडु में कांग्रेस पार्टी सत्ताधारी पार्टी का विस्तार भर है. कांग्रेस के नेता अपने आलेख में कहते हैं कि एमके स्टालिन प्रधानमंत्री पद के लिए सबसे योग्य हैं. डीएमके स्थानीय कांग्रेसी नेताओं की दुर्दशा को समझती है. सीपीएम, सीपीआई तमिलनाडु में ऐसी पार्टियां हैं, जिनके पास डीएमके का मात्र एक प्रतिशत वोट है. साल 2019 के लोकसभा चुनाव में डीएमके ने चुनाव आयोग को दिये हलफनामे में सीपीएम को 15 करोड़ रुपये देने की बात कही थी.
एमके स्टालिन के लिए यह बड़ी जीत है और अगले दो वर्षों तक डीएमके के सामने कोई खतरा नहीं है. साल 2024 का लोकसभा चुनाव उनके शासन आकलन करेगा. एमके स्टालिन 12 दलों के गठबंधन को सहेजने में सफल रहे हैं. एमके स्टालिन ने इस राजनीतिक तकनीक को अपने पिता एम करुणानिधि से हासिल की है, जिससे वे अपनी अच्छी स्थिति बनाये रखने में सफल हैं.
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