सम्पादकीय

Birthday Special: खगोल विज्ञान को अंधकार युग से बाहर निकालने वाला रंगीन मिजाज खगोलशास्‍त्री टायको ब्राहे

Gulabi
14 Dec 2021 3:34 PM GMT
Birthday Special: खगोल विज्ञान को अंधकार युग से बाहर निकालने वाला रंगीन मिजाज खगोलशास्‍त्री टायको ब्राहे
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अपनी मृत्यु के लगभग 400 साल बाद आज भी डेनिश खगोलशास्त्री टायको ब्राहे आम जनमानस के लिए अपेक्षाकृत अज्ञात ही हैं
अपनी मृत्यु के लगभग 400 साल बाद आज भी डेनिश खगोलशास्त्री टायको ब्राहे आम जनमानस के लिए अपेक्षाकृत अज्ञात ही हैं. टायको के विशाल और शुद्ध खगोलीय अवलोकनों और अन्य आकाशीय खोजों ने भविष्य की वैज्ञानिक सफलताओं का मार्ग प्रशस्त किया, जिसने दुनिया की हमारी मौजूदा समझ को आकार देने में मदद की. जहां वैज्ञानिकों और इतिहासकारों के बीच ब्राहे में दिलचस्पी का एक कारण उनकी वैज्ञानिक साख है, वहीं उनका बेतहाशा रंगीन जीवन भी आकर्षित करता है. आज ब्राहे का जन्मदिन है. आइए, इस अवसर पर उनके व्यक्तित्व और कृतित्व पर संक्षेप में चर्चा करते हैं.
ब्राहे का असामान्य प्रारंभिक जीवन
टायको ब्राहे और उनके जुड़वां भाई का जन्म 1546 में डेनमार्क के एक कुलीन परिवार में हुआ था. दुर्भाग्य से टायको के जुड़वा भाई की जन्म के तुरंत बाद ही मृत्यु हो गई, जिससे वह अपने परिवार के एकमात्र उत्तराधिकारी के रूप में रह गए. टायको के पिता ओटो ब्राहे ने अपने नि:संतान भाई योरगन को यह वादा किया था कि अगर उनके यहां लड़का पैदा हुआ तो वह उसको दत्तक के रूप में अपने नि:संतान भाई को सौंप देंगे. लेकिन मामला तब नाटकीय हो गया जब 1546 में ओटो ब्राहे की पत्नी के जुड़वां बच्चे पैदा होने पर एक तुरंत मर गया. टायको के पिता अपने वादे से मुकर गए. जिसकी वजह से योरगन ने टायको का अपहरण कर लिया और उसका पालन-पोषण अपने बेटे की तरह किया.
1560 का सूर्य ग्रहण और खगोलशास्त्र में ब्राहे की दिलचस्पी
परिवार की परंपरा के मुताबिक टायको को राजनीति का पेशा अपनाना था. इसलिए जब टायको ब्राहे महज 13 साल के थे, तब उन्हें उनके चाचा ने कोपेनहेगन यूनिवर्सिटी में कानून, साहित्य और दर्शन का अध्ययन करने के लिए भेज दिया. लेकिन 1560 को ब्राहे ने एक ऐसी घटना देखी, जिसने न केवल उनके अध्ययन के क्षेत्र को बल्कि उनके पूरे जीवन की दिशा को ही बदल कर रख दिया! दरअसल, यूरोपीय खगोलविदों ने यह भविष्यवाणी की थी कि उस वर्ष 21 अगस्त को सूर्य ग्रहण होगा. उस समय का खगोलशास्त्र अभी भी विज्ञान और अंधविश्वास के दायरे के बीच कहीं अटका हुआ था. जब सूर्य वास्तव में निर्धारित तिथि पर चंद्रमा के पीछे गायब हो गया और दुनिया को अंधेरे में डुबो दिया, तो लोग चकित रह गए.
कुछ लोगों के लिए, ग्रहण की घोषणा घबराहट का संकेत थी और फ्रांस में, दर्जनों लोग पादरियों के सामने अपने पापों की स्वीकृति देने के लिए उमड़ पड़े. इन सबसे अलग टायको ब्राहे के लिए यह एक बेहद आश्चर्यजनक बात थी कि सूर्यग्रहण की भविष्यवाणी पहले ही कर दी गई थी. टायको को उसके पूर्वानुमान ने काफी प्रभावित किया और उनकी दिलचस्पी खगोल विज्ञान में पैदा हुई. हालाँकि उन्होने अभी भी अपने चाचा योरगन की इच्छा का पालन किया और दिन में कानून का अध्ययन किया, लेकिन रात में वह ग्रहों-नक्षत्रों का अध्ययन करने लगे. टायको ने कई खगोलीय उपकरण खरीदे और खगोल विज्ञान के बारे में उपलब्ध कुछ महत्वपूर्ण पुस्तकों को पढ़ना शुरू किया. बाद में रुचि इतनी बढ़ गई कि टायको ने पूर्णकालिक खगोलविद बनने का निर्णय किया.
टायको के चाचा खगोल विज्ञान को एक कुलीन व्यक्ति के लिए बेहद अशोभनीय पेशा मानते थे. इसलिए उन्होने टायको को लाइपज़िग यूनिवर्सिटी के एक शिक्षक एंड्रीयास वेडेल के पास इस उद्देश्य से भेज दिया ताकि वह टायको को इस अशोभनीय पेशे से हटाकर कोई ऐसा पेशा चुनने के लिए प्रेरित करे जो एक कुलीन व्यक्ति को शोभा देता हो. लेकिन वेडेल ऐसा करने में नाकामयाब रहे. टायको अपने खगोल विज्ञान के अध्ययन में इतना डूब चुके थे कि उनको इससे बाहर निकालना नामुमकिन था.
एक द्वंद-युद्ध में नाक कटवाना और एक महान खगोलीय खोज
टायको ब्राहे ने 1560 से 1570 तक एक विश्वविद्यालय से दूसरे विश्वविद्यालय में अध्ययन और यात्रा करते हुए बिताया. अपनी यात्रा के दौरान उन्होंने वैज्ञानिक उपकरणों का एक प्रभावशाली संग्रह किया. उनके शुरुआती संग्रह में पीतल और ओक का बना हुआ एक विशाल क्वाडरेंट भी था, जिसके जरिये तारों का कोण मापा जा सकता था.
1566 में टायको का कुलीन परिवार के एक अन्य युवा के साथ इस बात पर द्वंद-युद्ध हुआ कि दोनों में से कौन सबसे अच्छा गणितज्ञ और खगोल विज्ञानी है. इस द्वंद-युद्ध के दौरान टायको की नाक कट गई, जिसकी वजह से उन्हें सोने और चाँदी की मिश्रधातु से बना एक नकली नाक लगवाना पड़ा.
1570 के आसपास ब्राहे डेनमार्क लौट आए. 11 नवंबर, 1572 की रात को टायको ने एक बेहद अजीब चीज का अवलोकन किया- उन्होने एक ऐसा तारा देखा जो शुक्र ग्रह से भी अधिक चमकीला था. सबसे बड़ी बात तो यह थी कि वह तारा एक ऐसी जगह पर था जहां उससे पहले कोई तारा नहीं दिखाई दिया था. वह नया तारा उस जगह 18 महीने तक दिखाई दिया. आरंभ में वह तारा इतना ज्यादा चमकदार था कि उसे दोपहर में भी देखा जा सकता था. हालांकि बाद में तारे से मिलने वाला प्रकाश धीरे-धीरे कम होता गया और फिर वह तारा ओझल हो गया! दरअसल, टायको ने शर्मिष्ठा तारामंडल (कैसोपीया) में एक सुपरनोवा विस्फोट देखा था.
दूरबीन के आविष्कार से पहले खगोलीय पिंडों का अध्ययन-अवलोकन करने के लिए हमारे पास एक ही साधन था- हमारी आंखें. इस तथ्य का श्रेष्ठ उदाहरण महान खगोलविद टायको ब्राहे थे, जिन्होंने अपनी आंखों और विशाल खगोलीय यंत्रों से कोण मापते हुए महत्वपूर्ण आंकड़े प्राप्त किए थे. उन्होने ग्रहों और तारों की गति और स्थिति का बेहद सावधानी के साथ निरीक्षण किया और दर्ज किया. 1573 में, टायको ने अपने निष्कर्षों को 'डी नोवा स्टेला' (ऑन द न्यू स्टार) नामक पुस्तक में प्रकाशित करवाया, जिसने उन्हें पूरे यूरोप में एक खगोलशास्त्री के रूप में ख्याति दिलाई.
फ्रेडरिक द्वितीय की टायको के काम में दिलचस्पी
ब्राहे ने कोपेनहेगन यूनिवर्सिटी में खगोल विज्ञान पर व्याख्यान देना शुरू किया, और पूरे यूरोप पर एक प्रभावशाली छाप छोड़ी. टायको के काम में सबसे ज्यादा दिलचस्पी रखने वालों में से कोई और नहीं बल्कि खुद डेनमार्क के राजा फ्रेडरिक द्वितीय थे. 1576 में फ्रेडरिक द्वितीय ने ह्वेन द्वीप को बतौर जागीर टायको ब्राहे को सौंप दिया और वहाँ एक भव्य वेधशाला के निर्माण के लिए राजकोष से प्रचुर धन भी मुहैया कराया. ब्राहे ने ह्वेन द्वीप पर उरानीबर्ग वेधशाला, एक छापाखाना और अल्केमी की प्रयोगशालाएँ बनवाई. ब्राहे ने स्वयं वेधशाला के लिए वैज्ञानिक उपकरणों का निर्माण किया और ग्रहों एवं तारों की स्थिति को दर्ज करना शुरू कर दिया.
ब्रह्मांड को देखने का एक अलग नजरिया
1577 में और उसके बाद टायको ने पाँच अन्य अवसरों पर धूमकेतुओं का भी अवलोकन किया. टायको ब्राहे अपने आंकड़ों के आधार पर इस निष्कर्ष पर पहुंचे थे कि सुपरनोवा विस्फोट और धूमकेतुओं की कक्षा चाँद से बहुत दूर स्थित हैं. और ये तारे पारदर्शी गोले को चीरकर हमारे सौरमंडल के बाहर से आए हैं. उनका यह निष्कर्ष अरस्तू-टॉलेमी के समय से अब तक चली आ रही उस प्राचीन मान्यता के विपरीत था, जिसमें यह माना जाता था कि ब्रह्मांड अपरिवर्तनीय है, तारे हमारे सौरमंडल के ही सदस्य हैं और वे स्थिर हैं. ब्राहे की विलक्षणता इस बात में है कि उन्हें हम एक ऐसे मोड़ पर पाते हैं जहां खगोल विज्ञान अपने सैद्धांतिक चोगे को उतार फेकता है और सटीक आकाशीय अवलोकनों को आत्मसात कर लेता है.
ब्राहे निकोलस कोपनिरकस के इस सिद्धांत को सही नहीं मानते थे कि ब्रह्मांड का केंद्र पृथ्वी नहीं बल्कि सूर्य है. लेकिन कोपरनिकस के साथ-साथ ब्राहे ने अरस्तू-टॉलेमी के भी भूकेंद्री मॉडल को खारिज कर दिया था क्योंकि उनके खगोलीय अवलोकन इन दोनों ही सिद्धांतों से मेल नहीं खाते थे. इसलिए उन्होने ब्रह्मांड का अपना अलग 'टाइकोनिक मॉडल' पेश किया. उनके मॉडल की खासियत यह थी कि उसमें बुध, शुक्र, मंगल, बृहस्पति और शनि ग्रह सूर्य की परिक्रमा करते थे, यानी सूर्यकेंद्री थे, और फिर सूर्य और चंद्रमा सहित अन्य ग्रह मिलकर पृथ्वी की परिक्रमा करते थे, यानी पृथ्वीकेंद्री भी था. मतलब यह कि ब्राहे का मॉडल टॉलेमी और कोपरनिकस के मॉडल का मिलाजुला रूप था. ब्राहे जीवन भर शुद्ध और अनवरत अवलोकनों के जरिए अपने मॉडल को सही साबित करने में जुटे रहे.
टायको का निजी जीवन उनके पेशेवर जीवन जितना ही उल्लेखनीय
टायको खगोल विज्ञान के इतिहास में एक रंगीन मिजाज के व्यक्ति के रूप में दर्ज हैं. वह समाज में अपने ऊंचे स्थान को लेकर हमेशा सतर्क रहते थे. उन्होने अपने सभी खगोलीय अवलोकन अपने राजसी पोशाक पहनकर ही किए. वह बेहद अभिमानी थे और उन्हें अपनी कुलीनता पर गर्व था. वे भोग विलास और आरामदेह जिंदगी जीने में यकीन रखते थे. उन्होने अपने मनोरंजन के लिए कई लोगों को रख रखा था, जिसमें जेप नाम का एक बौना भी था जिसके पास कथित तौर पर मानसिक शक्तियाँ थीं. वे अपनी वेधशाला (जो कि एक महल जैसा था) के साज-सज्जा पर पानी की तरह पैसे बहाते थे.
खगोल विज्ञान में एक नए युग की शुरुआतराजनैतिक कारणों से 1597 में टायको ब्राहे को अपनी जागीर छोड़नी पड़ी, उन्होने 1599 में रोमन साम्राज्य के सम्राट रूडोल्फ द्वितीय के संरक्षण में प्राग में एक नई वेधशाला स्थापित की. ब्राहे को खगोलीय गणनाओं में पारंगत एक मेधावी गणितज्ञ की जरूरत थी, जिसकी पूर्ति 1600 में जोहांस केप्लर के मुलाक़ात से हुई. दोनों के मिलने से खगोल विज्ञान में एक नए युग की शुरुआत हुई. टायको और केप्लर के बीच के संबंध मधुर नहीं थे. लेकिन महत्व की बात यह है कि टायको ब्राहे द्वारा जुटाए गए खगोलीय आकड़ें केप्लर के लिए बेहद मूल्यवान साबित हुए.
24 अक्टूबर 1601 को टायको ब्राहे की मृत्यु हुई. प्राग में उन्हें सम्राट की मौजूदगी में शाही सम्मान के साथ दफनाया गया. टायको ब्राहे के देहावसान के बाद केप्लर ने ब्राहे की अनुपस्थिति और उत्तराधिकारियों के अभाव का फायदा उठाते हुए चुपचाप ब्राहे के आंकड़ों को अपने कब्जे में ले लिया. मजे की बात यह है कि जहां टायको ब्राहे को कोपरनिकस का सूर्यकेंद्री सिद्धांत गलत लगता था, वहीं केप्लर का पूर्ण विश्वास था कि सूर्य को विश्व के केंद्र में ही होना चाहिए.
ब्राहे द्वारा जुटाए गए सर्वोत्तम आंकड़ों का तकरीबन 20 सालों तक केप्लर ने सूक्ष्मता से अध्ययन-विश्लेषण किया. केप्लर के ज़्यादातर प्रयास मंगल ग्रह की कक्षा से संबंधित थे. असल में केप्लर का ऐसा मानना था कि मंगल की कक्षा के बारे में अधिकाधिक अध्ययन करने से ही ग्रहों की गति के रहस्य को समझा जा सकता है, क्योंकि इसकी कक्षा वृत्त से काफी अलग है…और यहीं पर केप्लर टायको ब्राहे समेत अपने सभी पूर्ववर्तियों से आगे निकल गए और ग्रहों की गतियों को समझाने में सफल रहे!
एक बार केप्लर ने कहा भी था- "सभी चुप रहो और टायको को सुनो, जिसने 35 साल तक आकाश का अवलोकन किया है.. मैं केवल टायको का इंतजार कर रहा हूँ; वे ही मुझे कक्षाओं के क्रम और उनकी व्यवस्था के बारे में समझाएँगे. तब मैं आशा रखता हूँ कि एक दिन, अगर ईश्वर मुझे जिंदा रखता है तो एक अनोखा महल खड़ा कर दूंगा." अस्तु!



(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए जनता से रिश्ता किसी भी तरह से उत्तरदायी नहीं है)
प्रदीप तकनीक विशेषज्ञ
उत्तर प्रदेश के एक सुदूर गांव खलीलपट्टी, जिला-बस्ती में 19 फरवरी 1997 में जन्मे प्रदीप एक साइन्स ब्लॉगर और विज्ञान लेखक हैं. वे विगत लगभग 7 वर्षों से विज्ञान के विविध विषयों पर देश की प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में लिख रहे हैं. इनके लगभग 100 लेख प्रकाशित हो चुके हैं. दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक तक की शिक्षा प्राप्त की है.
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