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विज्ञान के अनन्य साधक सर आइजक न्यूटन
24 जनवरी 1684 की घटना है. लंदन के एक कॉफ़ीहाउस में तीन मशहूर वैज्ञानिक – रॉबर्ट हुक, क्रिस्टोफर रेन, और एडमंड हैली एक गहन सवाल पर बहस कर रहे थे. सवाल यह था कि यदि किसी ग्रह या खगोलीय पिंड पर गुरुत्वाकर्षण बल का प्रभाव पड़ेगा तो वह ग्रह या पिंड किस मार्ग (कक्षा) में गति करेगा? हालांकि ये तीनों वैज्ञानिक जोहांस केप्लर के ग्रह गति के प्रथम नियम, कि सभी ग्रह सूर्य की परिक्रमा वृत्त में न करके दीर्घवृत्त में करते हैं, इससे परिचित थे. लेकिन ऐसा क्यों है, यह किसी को भी नहीं मालूम था.
हैली जोकि एक कुशल गणितज्ञ और खगोलशास्त्री थे, ने अपने साथियों के सामने स्वीकार किया कि उन्होंने जवाब ढूंढने की कोशिश की और असफल रहे. गणित और भौतिकी के प्रकांड विद्वान क्रिस्टोफर रेन ने भी यह स्वीकार किया कि उनके पास भी इस सवाल का कोई स्पष्ट जवाब नहीं है. वहीं वैज्ञानिक रॉबर्ट हुक, जो दूसरों की खोजों का श्रेय लेने के लिए 'सार्वभौमिक दावेदार' के रूप में कुख्यात थे, ने दावा किया कि उन्होंने इस सवाल का जवाब ढूंढ लिया है, हालांकि उस वक्त वे जवाब प्रस्तुत नहीं कर पाए. हुक ने कहा कि समय आने पर वे अपने जवाब को सार्वजनिक करेंगे ताकि कोशिश करने वाले और असफल होने वाले लोग जान सकें कि यह जवाब कितना महत्वपूर्ण है.
रेन और हैली इस सवाल का जवाब जानने के लिए उतावले थे. रेन ने शर्त लगाते हुए कहा कि आप दोनों में से जो कोई भी दो महीने के अंदर इस सवाल का विज्ञानसम्मत जवाब ढूंढ लेगा उसे चालीस शिलिंग (आज के लगभग चार सौ डॉलर के बराबर) पुरस्कार स्वरूप देंगे. दो क्या छह महीने बीत गए. हुक, रेन और हैली तीनों ही इस सवाल का जवाब नहीं ढूंढ पाए. हैली जवाब जानने के लिए आतुर हो उठे. तब उन्हें कैम्ब्रिज के एक वैज्ञानिक से मिलने का सुझाव दिया गया, जिसके पास इस सवाल का जवाब हो सकता था. उस वैज्ञानिक का नाम था: आइज़क न्यूटन.
हैली ने न्यूटन से संपर्क किया. न्यूटन को सनकी और चिड़चिड़े मिज़ाज वाला आदमी माना जाता था लेकिन स्वभाव के विपरीत न्यूटन हैली से मिलने के लिए तैयार हो गए. अगस्त 1684 में हैली, न्यूटन से मिलने कैम्ब्रिज गए और उनसे पूछा कि सूर्य के इर्दगिर्द परिक्रमा कर रहे ग्रहों का मार्ग (कक्षा) कैसा होगा? इस पर न्यूटन ने तुरंत जवाब दिया – मेरी गणना के मुताबिक दीर्घवृत्ताकार. न्यूटन की इस हाजिर जवाबी पर हैली को बड़ा आश्चर्य हुआ और उन्होंने इसके हल या प्रमाण को देखने की इच्छा जाहिर की. न्यूटन ने अपने शोधपत्रों के ढेर में अपने इस प्रमाण को ढूंढा लेकिन वह नहीं मिला.
न्यूटन ने हैली को आश्वासन दिया कि वे जल्दी ही जवाब का लिखित प्रमाण भेज देंगे. और, तीन महीने बाद हैली को सवाल का विज्ञानसम्मत जवाब प्रमाण सहित 9 पन्नों की एक चिट्ठी से मिल गया. जो कुछ हैली को प्राप्त हुआ, उससे हैली इतने ज्यादा उत्साहित हुए कि उन्होंने नवंबर में दोबारा न्यूटन से मुलाक़ात की और उन्हें अपनी खोजों को पुस्तक के रूप में प्रकाशित करने के लिए मनाया. न्यूटन ने इस बार पूरा समय लेते हुए दो वर्षो की मेहनत से अपनी पुस्तक 'प्रिंसिपिया' की तीन खंडों में रचना की.
प्रिंसिपिया को अब तक की लिखी गई सबसे महानतम वैज्ञानिक कृति के तौर पर जाना जाता है.
इस पुस्तक में न्यूटन ने ब्रह्मांड की सम्पूर्ण रूपरेखा प्रस्तुत की, जिसकी बदौलत वे अपने सभी पूर्ववर्ती वैज्ञानिक से आगे निकल गए. हैली से मुलाक़ात के काफी पहले ही न्यूटन विश्व के सबसे बड़े वैज्ञानिक बन चुके थे, हालांकि प्रिंसिपिया के प्रकाशन से पहले दुनिया में किसी को, शायद न्यूटन को भी, इसका आभास नहीं था. इस अकेली किताब ने ब्रह्माण्ड को देखने का हमारा पूरा नज़रिया ही बदल कर रख दिया!
न्यूटन का प्रारंभिक जीवन
न्यूटन का जन्म आज ही के दिन (25 दिसंबर) इंग्लैंड में लिंकनशायर इलाके के छोटे से गांव में उस वर्ष (1642) हुआ था, जिस वर्ष महान वैज्ञानिक गैलीलियो का देहांत हुआ था. जन्म के समय न्यूटन बेहद कमजोर थे और उनकी वजन भी सामान्य से काफी कम था, इसलिए उनके बचने की उम्मीद भी बेहद कम थी. नन्हे न्यूटन के फेफड़ों में इतनी ताकत भी नहीं थी कि वह स्तनपान कर सके. इसी वजह से न्यूटन की मां हन्ना अपना दूध रुई के जरिये नवजात के मुंह में डालती थीं. लेकिन विषम परिस्थितियों में भी न्यूटन जीवित रहे, बाद में न्यूटन का शरीर काफी मजबूत बना और उन्होंने 85 वर्ष की लंबी उम्र पाई.
न्यूटन के किसान पिता का भी नाम आइज़क न्यूटन ही था. उनकी मृत्यु न्यूटन के जन्म के कुछ महीने पहले ही हो गई थी. जब न्यूटन दो साल के हुए तब उनकी माँ ने पुनर्विवाह कर लिया और न्यूटन को नानी के यहां भेज दिया, वहीं न्यूटन ने प्राथमिक शिक्षा हासिल की. माता-पिता का प्यार न मिलने की वजह से न्यूटन का बचपन एकाकी था. न्यूटन ने अंधकार और अस्पष्टता से भरी दुनिया में जन्म लिया जो रिश्तों के रंगों से अछूती थी, शायद यही वजह थी कि वे ताउम्र एकाकी, तुनकमिजाजी और अंतर्मुखी रहे.
सात साल बाद हन्ना के दूसरे पति का भी देहांत हो गया तब उन्होंने न्यूटन की पढ़ाई छुड़वा दी और उसे खेती-बाड़ी में मदद करने के लिए अपने पास बुलवा लिया.
वहां कृषि कार्यों में न्यूटन का मन नहीं लगा और वे अपनी आगे की पढ़ाई करना चाहते थे. न्यूटन के मामा विलियम आयसकफ के आग्रह पर हन्ना ने न्यूटन को पढ़ाई के लिए दोबारा ग्रेंथ्म शहर के स्कूल में भेज दिया.
नई दुनिया में प्रवेश
स्कूली पढ़ाई पूरी करने के बाद न्यूटन ने कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में प्रवेश पाने के लिए तैयारी की. युवा न्यूटन को जून 1661 में कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के ट्रिनिटी कॉलेज में दाखिला प्राप्त हो गया. न्यूटन जब ट्रिनिटी कॉलेज पहुंचे तो उन्हें फीस चुकाने के लिए अमीर छात्रों के लिए भोजन परोसने और उनके कमरों की साफ-सफाई करने का काम भी करना पड़ा.
कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में उच्च अध्ययन के लिए दाखिला लेने तक न्यूटन गणित में फिसड्डी थे. एक बार न्यूटन ने विज्ञान विषय छोड़ने का ही फैसला कर लिया था. हालांकि बाद में गणित के प्रोफेसर आइज़क बैरो के प्रोत्साहन से न्यूटन को यह आभास हुआ कि उन्हें विज्ञान के ही क्षेत्र में अपना कैरियर बनाना चाहिए. कॉलेज की लायब्रेरी से न्यूटन ने गणित और विज्ञान के आधारभूत पुस्तकों का अध्ययन किया, जिससे इस दिशा में उनकी रुचि बढ़ती गई. उन्होंने 'एरिस्टोटल' शिक्षा पद्धति के विपरीत आधुनिक विचारों वाले दार्शनिकों एवं वैज्ञानिकों जैसे रेने देकर्ते, गैलिलयो, टायको ब्राहे, केप्लर और कॉपरनिकस की कृतियों के अध्ययन को ज्यादा तरजीह दी.
बगैर किसी विशेष प्रदर्शन के न्यूटन ने 1665 में बीए की उपाधि हासिल की. उस समय किसी को इसका एहसास भी नहीं हुआ होगा कि न्यूटन आधुनिक विज्ञान के विकास में सबसे महत्वपूर्ण योगदान देने वाले वैज्ञानिक बन जाएंगे. हालांकि बीए की उपाधि प्राप्त करने के कुछ महीने पहले ही आइज़क बैरो के मार्गदर्शन में न्यूटन ने गणना की एक गणितीय विधि 'कैलकुलस' की नींव रख दी थी और 'बाईनोमियल थ्योरम' की आधारभूत व्याख्या भी प्रस्तुत कर दी थी.
जब महामारी से बचने के लिए न्यूटन हुए होम क्वारंटाइन
1665 में इंग्लैंड में प्लेग महामारी का तीव्र प्रकोप हुआ. हजारों की संख्या में लोग मारे गए. महामारी से बचाव के उद्देश्य से कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी को कुछ समय के लिए बंद कर दिया गया. लिहाजा न्यूटन अपनी माँ के लिंकनशायर स्थित फार्म पर रहने के लिए चले गए. अगले 2 साल तक न्यूटन घर पर ही रहे. न्यूटन ने होम क्वारंटाइन के इसी दौर में कई महत्वपूर्ण खोजें कीं, जिसने विज्ञान की दशा-दिशा बदल कर रख दी.
दो साल के क्वारंटाइन में न्यूटन ने अपने नोटबुक में लिखे विषयों पर गंभीर अध्ययन किया. कैलकुलस, गुरुत्वाकर्षण और प्रकाश से संबंधित अनेक प्रयोग और खोज किए. क्वारंटाइन में बिताए गए अपने समय को याद करते हुए न्यूटन ने कहा था कि, 'उन दिनों मैंने अपने अन्य किसी भी समय की तुलना में अपनी उम्र के इस पड़ाव पर आविष्कार, गणित और दर्शन की ओर सबसे ज्यादा ध्यान दिया.'
पेड़ से सेब गिरते देखकर गुरुत्वाकर्षण का विचार सूझने का मशहूर किस्सा उसी दौरान का है, हालांकि इस किस्से की सच्चाई संदिग्ध है. न्यूटन इस परिणाम पर पहुंचे थे कि जो बल सेब को धरती की ओर खींचता है, वही बल चंद्रमा को पृथ्वी की ओर और पृथ्वी को सूर्य की ओर खींचता है. केप्लर के ग्रह गति के नियमों के आधार पर आखिरकार न्यूटन इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि केवल पृथ्वी ही नहीं, बल्कि प्रत्येक ग्रह और ब्रह्मांड का प्रत्येक कण प्रत्येक दूसरे कण को अपनी ओर आकर्षित करता रहता है. दो कणों के बीच काम करनेवाला आकर्षण बल उन कणों के द्रव्यमानों के गुणनफल का (प्रत्यक्ष) समानुपाती तथा उनके बीच की दूरी के वर्ग का व्युत्क्रमानुपाती होता है. कणों के बीच काम करनेवाले पारस्परिक आकर्षण को गुरुत्वाकर्षण तथा उससे उत्पन्न बल को गुरुत्वाकर्षण बल कहा जाता है.
न्यूटन द्वारा प्रस्तावित इस नियम को न्यूटन का गुरुत्वाकर्षण नियम कहते हैं. कभी-कभी इस नियम को 'गुरुत्वाकर्षण का प्रतिलोम वर्ग नियम' (इनवर्स स्क्वायर लॉ) भी कहा जाता है. यह एक क्रांतिकारी खोज थी.
इस दौरान न्यूटन ने प्रकाश विज्ञान (ऑप्टिक्स) पर खोजें की. न्यूटन ने एक नए अवधारणा को जन्म दिया था कि जब किसी वस्तु के स्वभाविक रंग पर रंगीन प्रकाश डाला जाता है तो एक पारस्परिक क्रिया के कारण उस वस्तु के रंग में बदलाव होता है. विभिन्न रंगों के संयोजन से नया रंग प्राप्त होता है, इस सिद्धांत को हम अब 'रंग संयोजन सिद्धांत' के नाम से जानते हैं. अपनी इस धारणा को प्रायोगिक रूप से सिद्ध करने के लिए न्यूटन ने एक विशेष प्रकार के परावर्तक दूरबीन (रिफ्लेक्टिंग टेलीस्कोप) का निर्माण किया, जिसे अब 'न्यूटोनियन टेलीस्कोप' के नाम से जाना जाता है.
कामयाबी की राह
महामारी के समाप्त होने पर अप्रैल 1667 में न्यूटन कैंब्रिज यूनिवर्सिटी वापस लौट आए. न्यूटन को उनकी अतुलनीय प्रतिभा की बदौलत ट्रिनिटी कॉलेज का फैलो चुना गया. 1668 में न्यूटन ने एमए की उपाधि प्राप्त की. 1669 में न्यूटन को आइज़क बैरो के स्थान पर गणित के ल्यूकेसियन प्रोफेसर के पद पर नियुक्ति प्राप्त हुई. प्रोफेसर का पद पाकर न्यूटन का भविष्य काफी सुरक्षित हो गया, अब वे तन-मन से गणित और विज्ञान का अध्ययन कर सकते थे.
1672 में न्यूटन लंदन की रॉयल सोसाइटी के फैलो चुने गए और उसके बाद 1673 में प्रकाश विज्ञान पर न्यूटन का पहला वैज्ञानिक शोध पत्र रॉयल सोसाइटी के रिसर्च जर्नल 'फिलोसॉफिकल ट्रांजेक्शंस' में प्रकाशित हुआ. उनके शोध पत्र का शीर्षक था- 'ए न्यू थ्योरी अबाउट लाइट एंड कलर्स'. ये वही शोध पत्र था जिसमें यह पहली बार बताया गया था कि सफेद प्रकाश वर्णक्रम के विभिन्न रंगो का मिश्रण होता है. इस शोध पत्र में न्यूटन ने प्रकाश से संबंधित एक सिद्धांत भी दिया था, जिसे कारपसकुलर थ्योरी के नाम से जाना है. इस सिद्धांत के मुताबिक प्रकाश छोटे-छोटे कणों से मिलकर बना होता है. इन छोटे-छोटे प्रकाशीय-कणों को न्यूटन ने कारपसकुलर नाम दिया.
न्यूटन का मानना था कि प्रकाश सरल रेखा में गति करता है और कण ही सरल रेखा में गति कर सकता है. यह शोध पत्र सामान्यतया स्वीकार कर लिया गया, लेकिन रॉबर्ट हुक और क्रिश्चियन हाइगेन्स ने न्यूटन के इस प्रयास का विरोध किया. जहां हुक ने न्यूटन पर यह आरोप लगाया कि न्यूटन ने हुक की खोजों को अपने नाम से प्रकाशित करवाया है. वहीं हाइगेन्स का यह मानना था कि प्रकाश तरंगों से बना होता है, नाकि कणों से मिलकर. न्यूटन को सबसे ज्यादा विचलित किया हुक के आक्षेपों ने, न्यूटन का हुक से जीवन भर विवाद चला.
हैली की न्यूटन से मुलाकात और प्रिंसिपिया का प्रकाशनइस लेख की शुरुआत में ही हम न्यूटन से हैली के मुलाक़ात की चर्चा कर चुके हैं. हैली के अनुरोध पर न्यूटन गुरुत्वाकर्षण का विस्तृत वर्णन एक पुस्तक के रूप में प्रकाशित करने के लिए राजी हो गए. लेकिन ब्रह्मांड की सम्पूर्ण रूपरेखा और सभी पिंडों की गतियों को गणित के ढांचे में समाहित करना आसान काम नहीं था. विद्वान लेखक गुणाकर मुले के मुताबिक न्यूटन को अंतरिक्ष, समय, द्रव्यमान, त्वरण, संवेग आदि धारणाओं की नए सिरे से परिभाषाएं देनी पड़ीं. उन्हें सैकड़ों जटिल सवालों के हल खोजने पड़े. अंतत: 2 सालों के अथक प्रयासों के बाद तीन भागों में जो पुस्तक तैयार हुआ उसे प्रिंसिपिया का नाम दिया गया.
न्यूटन ने प्रिंसिपिया में ऐसे सिद्धांत दिये, जो आगे चलकर गणित और विज्ञान के क्षेत्र में मील का पत्थर साबित हुए. इसमें ही न्यूटन ने बताया कि सूर्य की केन्द्रीय शक्ति ग्रहों के साथ संतुलित रहती है इसलिए हमे सूर्य स्थिर प्रतीत होता है. गुरुत्वाकर्षण सिद्धांत और गति के तीन सुप्रसिद्ध नियमों की प्रिंसिपिया में हुई विस्तृत विवेचना ने खगोलशास्त्र को पराकाष्ठा पर पहुंचा दिया.
न्यूटन एक कुशल गणितज्ञ थे और उनका एक मूलभूत निष्कर्ष था कि एक ठोस गोलक का व्यवहार अपने केंद्र पर अवस्थित एक वज़नी बिंदु की तरह होता है. न्यूटन ने इस बात को आगे बढ़ाते हुए यह दिखा दिया कि ग्रहों के मार्गों का निश्चित निर्धारण किया जा सकता है और साथ ही यह भी कि ग्रह अपने निश्चित मार्ग पर घूमते हुए एक ब्रह्मांडीय घड़ी का काम करते हैं. उन्होंने गणितीय कुशाग्रता एवं परम धैर्य का परिचय देते हुए ज्वार–भाटों की, धूमकेतुओं की कक्षाओं की एवं अन्य ब्रह्मांडीय पिंडों के गतिचक्र की गणना की.
प्रिंसिपिया के प्रकाशन से आई वैचारिक क्रांति के आधार में थी न्यूटन की यह मान्यता कि 'जो नियम सामान्य आकार की वस्तुओं पर लागू होते हैं, वे वस्तुत: सार्वभौमिक हैं और हर छोटे–बड़े किसी भी आकार या शक्ल के पदार्थ या पिंडों पर लागू होते हैं'. अठाहरवी सदी के दौरान ग्रहों की गतियों को समझ के लिए न्यूटन के नियमों की व्यापक छानबीन की गई. मगर क्या न्यूटन के नियम हमारे सौरमंडल के बाहर भी प्रासंगिक है, इसको लेकर कई लोगों ने संदेह प्रकट किया.
हालांकि, 1803 में सर विलियम हर्शेल ने जुड़वा तारों के अध्ययन के आधार पर यह घोषणा कर सके थे कि कुछ मामलों में ये जोड़े वास्तविक भौतिक युग्मों का प्रतिनिधित्व करते हैं, जो एक दूसरे के चारों ओर चक्कर लगाते हैं. हर्शेल के खगोलीय अवलोकनों के आधार पर आगे यह भी स्थापित हुआ कि जिन कक्षाओं को हम देखते हैं वे दरअसल दीर्घवृत्ताकार हैं. इस तरह सुदूर मौजूद तारों के बारे में न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण के नियमों की उपयोगिता सिद्ध हुई. यह सवाल कि क्या ब्रह्मांड के समस्त पदार्थों के लिए एक सार्वभौम एवं एकसमान नियम को निर्धारण किया जा सकता है, आखिरकार एक वैज्ञानिक सिद्धांत के रूप में स्थापित हुआ.
1688 में कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी ने न्यूटन को अपना प्रतिनिधि नामित कर संसद भेजा. कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर के पद पर रहने के बाद 1699 में न्यूटन शाही टकसाल के प्रमुख बन गए. शाही टकसाल में रहते हुए न्यूटन ने कई ऊंचे रसूख वाले जालसाजों को फांसी के फंदे तक पहुंचाया था. शाही टकसाल के साथ न्यूटन का संबंध जीवनपर्यंत रहा.
अंतिम समय व निधन
1693 में लंदन में बस जाने के बाद न्यूटन को खूब मान-सम्मान और धन-संपत्ति मिली, लेकिन 1693 के बाद यानि अपने जीवन के अंतिम 34 वर्षों में विज्ञान और गणित के क्षेत्र में कोई काम नहीं किया. वे तमाम तरह के घटिया कलहों, विवादों में उलझे रहे और राजनीतिक रूप से सक्रिय रहे. 1705 में इंग्लैंड की महारानी ने न्यूटन को नाइटहुड की उपाधि प्रदान की. न्यूटन ऐसे पहले वैज्ञानिक थे, जिन्हें यह उपाधि दी गई थी.
85 वर्ष की उम्र में 20 मार्च 1727 को न्यूटन ने प्रकृति के रहस्यों को उजागर करने के बाद इस संसार से विदा ली. न्यूटन को वेस्टमिंस्टर एब्बे में दफनाया गया. फ्यूनरल सेरेमनी के साक्षी रहे वाल्तेयर ने कहा था कि यह 'यह किसी राजा के अंतिम संस्कार जैसा था, जो अपने प्रजा द्वारा अच्छी तरह से जाना जाता था.' बहरहाल, इस लेख का समापन हम ब्रिटिश कवि अल्कजेंडर पोप द्वारा न्यूटन को दी गई श्रद्धांजली के साथ कर रहे हैं:
'प्रकृति और प्रकृति के नियम रात के अंधकार में ओझल थे;
ईश्वर ने कहा, 'न्यूटन को आने दो' और रोशनी फैल गई.'
अस्तु
प्रदीप तकनीक विशेषज्ञ
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