सम्पादकीय

Birthday Special: PM मोदी ने आत्मनिर्भर भारत के सामूहिक संकल्प का सूत्रपात किया

Gulabi
17 Sep 2021 12:01 PM GMT
Birthday Special: PM मोदी ने आत्मनिर्भर भारत के सामूहिक संकल्प का सूत्रपात किया
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भारत के सामूहिक संकल्प का सूत्रपात किया

17 सितंबर, 2021 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जन्मदिन पर सुबह से ही भारतीय जनता पार्टी ने भारत भर में सेवा समर्पण अभियान शुरू कर दिया है. अभियान 20 दिन तक चलेगा. मोदी के जन्मदिन पर कोविड-19 के ख़ात्मे के संकल्प के साथ टीकाकरण अभियान में भी बहुत उत्साह नज़र आया. देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में चुनावी तैयारियां चल रही हैं. साथ ही, उत्तराखंड, पंजाब, गोवा और मणिपुर में भी 2022 की शुरुआत में विधानसभा चुनाव होने हैं, ऐसे में बीजेपी मोदी का जन्मदिन भी इसी को दृष्टिगत रखते हुए पूरी ऊर्जा के साथ मना रही है, तो यह समझ में आता है. लेकिन बात इतनी भर नहीं है.

आम चुनाव 2024 में होने हैं और इससे पहले सिर्फ़ पांच राज्यों में ही विधानसभा चुनाव नहीं होने हैं, बल्कि गुजरात, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, मेघालय, नागालैंड, त्रिपुरा, तेलंगाना, राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ इत्यादि प्रदेशों में भी विधानसभा चुनाव होने हैं. यह भी तय है कि बीजेपी अगला आम चुनाव भी नरेंद्र मोदी के चेहरे पर ही लड़ने वाली है, ऐसे में सवाल यह है कि क्या मोदी के चेहरे पर सदैव सिर्फ़ राजनैतिक तेज ही विराजमान रहता है, जिसे निरंतर बरकरार रखने और बढ़ाने के लिए उनकी पार्टी प्रयासरत रहती है? या फिर भारत और विश्व समाज में राजनीति से इतर भी महामानव के सभी गुणों से ओतप्रोत नरेंद्र मोदी के व्यक्तित्व की व्यापक स्वीकार्यता है? और उस लिहाज़ से भी उनका जन्मदिन बड़े स्तर पर मनाए जाने की ज़रूरत है? जी हां, असल बात यही है.
येन केन प्रकारेण चुनाव जीतना हर राजनैतिक पार्टी का धर्म है, लेकिन राजनैतिक प्रक्रिया क्या स्थाई तौर पर देश-विदेश के अरबों लोगों के दिल जीतने का भी माध्यम बनती है, यह प्रश्न भी यदि विचारणीय है, तो मोदी के सिलसिले में जवाब बहुत सीधा है कि वे इस श्रेणी में भी आते हैं. कोई कुछ भी तर्क देकर या कह कर मोदी की आलोचना करे, लेकिन यह सत्य है कि भारत जैसे विशाल और अनेकता में एकता के सिद्धांत और मूल मंत्र के आधार पर चलने वाले दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश में नरेंद्र मोदी पिछले पूरे 20 वर्षों से मुख्यमंत्री और उसके बाद प्रधानमंत्री जैसे सर्वोच्च संवैधानिक पद पर बहुत मज़बूती के साथ आसीन हैं. एक भी दिन का गैप नहीं है.
लोकतंत्र यानी जनता द्वारा चुने गए तंत्र में यह बहुत बड़ी उपलब्धि है, मोदी के विरोधियों को भी यह बात तो माननी ही पड़ेगी. यह उपलब्धि सिर्फ़ और सिर्फ़ राजनैतिक कुशलता के बूते ही नहीं हासिल की जा सकती, बल्कि इसके लिए व्यक्तित्व का बहुआयामी होना बहुत आवश्यक है. अभी कम से कम 2024 तक यानी अगले तीन साल तक तो मोदी भारत के प्रधानमंत्री रहने ही वाले हैं. उसके बाद अगले पांच साल यानी 2029 तक भी वे भारत के प्रधानमंत्री पद पर विराजमान रहेंगे, इसकी पक्की संभावना है. या फिर हो सकता है कि 2024 के बाद मोदी देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद को सुशोभित करें और बीजेपी में मोह-मद से दूर रहने वाले ब्रैंड मोदी के अगले सक्षम अवतारों को गढ़ने का काम करें!
सेवा-समर्पण दिवस के तौर पर मनाया जाए पीएम मोदी का जन्‍मदिन
कुल मिलाकर मोदी की नेतृत्व क्षमता अद्वितीय है और भारत में चौथे चुनाव के बाद से अब हर समय चुनावी माहौल रहता है, यह भी सच है. ऐसे में अगर यह कहा जाए कि नरेंद्र मोदी का मूल्यांकन सिर्फ़ राजनैतिक व्यक्तित्व के तौर पर ही नहीं होना चाहिए, बल्कि वैश्विक स्तर पर मानवीयता के विकास और मानवीय मूल्यों को समृद्धि के चरम शिखरों तक पहुंचाने का प्रयास करने वाले चंद सच्चरित्र सगुण सफल साधकों के रूप में होना चाहिए, तो ग़लत नहीं होगा. जिस तरह भारत में पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू का जन्मदिन 14 नवंबर बाल दिवस के तौर पर मनाया जाता है, उसी तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जन्मदिन 17 सितंबर आधिकारिक रूप से सेवा-समर्पण दिवस के तौर पर मनाया जाए, तो यह सकारात्मक क़दम होगा.
स्मरण रहे कि नेहरू के जीवनकाल में ही पहली बार 1959 में 14 नवंबर को बाल दिवस मनाया गया था. प्रसंगवश कह दूं कि आज भी बाल दिवस मनाया जाता है, आगे भी मनाए जाने में किसी को कोई ऐतराज़ नहीं होना चाहिए. लेकिन राजनीति का जवाहर लाल नेहरू ब्रैंड आज प्रासंगिक नहीं हो सकता, यह बात अगर कांग्रेस के परिवार को समझ में आ गई होती, तो उसकी हालत आज इतनी पतली नहीं होती.
इतिहास सबक लेने के लिए होते हैं, शक्ति के सापेक्ष मनोनुकूल पन्नों पर सुविधानुसार समेट दिए गए घटनाक्रमों और सोच के हू-ब-हू अनुसरण के लिए नहीं. नेहरू की मुस्लिम तुष्टीकरण की नीति के प्रथम बिंदु ने ही तय कर दिया था कि वर्ष 2014 में भारत के प्रधानमंत्री की चमकदार कुर्सी नरेंद्र मोदी को ही संभालनी है. न श्यामा प्रसाद मुखर्जी नेहरू का साथ छोड़ते और न मोह-मद से विरक्त मोदीत्व तक पहुंचने की देश की प्रखर राजनैतिक राह मुखर होती, प्रशस्त होती!
नई पीढ़ी के अबोध बच्चों को छोड़ दें, तो हर भारतीय नागरिक विश्वगुरु की उपाधि से इसलिए परिचित है, क्योंकि कभी भारत के नाम यह उपाधि निर्विवाद रूप से थी. उपलब्धियां चुनौतियां लेकर आती हैं, लिहाज़ा भारत का भौतिक गौरव खंडित करने के षड्यंत्र सफल होते रहे और समरसता का भाव क्षीण होने के कारण तमाम आध्यात्मिक शक्तियां विषमता के अंधेरों में समाती रहीं.
अब समय है, जब वसुधैव कुटुंबकम… सर्वे भवंतु सुखिन:, सर्वे संतु निरामया: … के सिद्धांत सूत्रों पर आधारित भारतीय सनातन संस्कृति की अजस्र ऊष्मा का तेज और प्रकाश पूरी दुनिया को प्रणव की गर्माहट और उद्भव की रौशनी से ओतप्रोत करना शुरू करे. भारत दुनिया का सिरमौर बने, दोबारा विश्वगुरु बने, इस मनोकामना के पुनरोदय का समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सकारात्मक नेतृत्व काल से शुरू होता दिखाई दे रहा है, तो इसमें किसी को किंचित आश्चर्य नहीं होना चाहिए.
नरेंद्र मोदी ने आत्मनिर्भर भारत के जिस सामूहिक संकल्प का सूत्रपात किया है, सपना देखा-दिखाया है, उसे पूरा करने की दिशा में करोड़ों भारतीय सन्नद्ध हैं. आत्मबल का साक्षात्कार ही है, जो भारतीय अस्मिता को शत्रु देश में घुस कर 21वीं सदी की सबसे बड़ी नकारात्मकता पर प्रचंड प्रहार करने की प्रेरणा देता है. भारतीय सेना शौर्य के नए युग में प्रवेश कर चुकी है. आयुध सामग्री के मामले में हम आत्मनिर्भरता की राह पर हैं. जम्मू-कश्मीर में विकास की राह में रोड़ा बने अलगाव को हवा देने वाले अनुच्छेद 370 और 35-ए के ज़हर के दांत तोड़ने का मामला हो या फिर देश की मुस्लिम महिलाओं के वजूद पर तीन तलाक़ के नाम पर हो रहे अत्याचार के समूल निषेध के लिए क़ानून बनाने की बात हो, मोदी सरकार हर मोर्चे पर ऐसे निर्णय ले पा रही है, जिनके बारे में पहले विचार तक करने की इच्छाशक्ति कहीं नजर नहीं आती थी.
पीएम मोदी को है राजनैतिक शक्ति संतुलन का श्रेय
आधुनिक काल में भारत दुनिया भर में राजनैतिक शक्ति संतुलन की स्वतंत्र सक्षम और सर्वसमावेशी धुरी के रूप में मान्यता पा गया है, तो इसके लिए नरेंद्र मोदी के नेतृत्व को श्रेय देना ही पड़ेगा. फ़लिस्तीन और इज़राइल जैसे तमाम पारंपरिक शत्रुओं के साथ भारत के एक जैसे मधुर संबंध हैं, तो यह भारत की कूटनैतिक और सामरिक शक्ति के कारण ही है. दुनिया में भारत का दबदबा इतना पहले कभी नहीं था, यह पूरी दुनिया मानती है. दुनिया की सबसे बड़ी बुराइयों के अंत के लिए बनने वाली हर रणनीति आज भारतीय राय और हिस्सेदारी के बिना अधूरी है. अंतरिक्ष विज्ञान हो या तकनीकी विकास से जुड़ा कोई भी आयाम, भारत की उपलब्धियों की चर्चा आज विश्वव्यापी है.
दृढ़ संकल्प शक्ति का ही परिणाम है कि भारत आज कोरोना पर विजय की ओर मज़बूत क़दमों से बढ़ रहा है. देश में ग़रीबों को प्रतिबलित करने की तमाम सकारात्मक योजनाएं पूरी ईमानदारी से चलाई जा रही हैं. नई शिक्षा नीति हो या दूसरे बहुत से उपक्रम, भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों की पुनर्प्रतिष्ठा की दिशा में देश तेज़ी से आगे बढ़ रहा है. विपक्षी पार्टियों को समझ में ही नहीं आ रहा है कि मोदी सरकार का प्रभावी विरोध किस तरह किया जाए! विपक्ष की हालत विभ्रम में पड़े हुए किसी ज्वरग्रसित व्यक्ति की तरह होकर रह गई है. ऐसे में फ़ौरी तौर पर भले ही लग रहा हो कि कथित किसान आंदोलन जैसे जमावड़े मोदी सरकार के लिए बड़ी चुनौती साबित हो सकते हैं.
लेकिन, आख़िरी तौर पर मीदी नीति की ही विजय होगी, क्योंकि भारतीय संस्कृति का हर मूल्य, हर कथानक यही सिद्ध करता है कि अंत में सच्चाई की ही जीत होती है. भारतीय अस्तित्वबोध में कोई ऐसी कहानी है ही नहीं, जिसके अंत में खलनायक जीतता हो. फिर वह भले ही व्यक्ति के रूप में हो या विचार के रूप में या फिर परिस्थितियों के रूप में. किसान आंदोलन अगर नौ महीने से ज़्यादा तक चल पा रहा है, तो यह मोदी सरकार की उदारता के कारण ही है. अन्यथा तो देश ने बाबा रामदेव की अगुवाई में आधार पा चुके बहुत से आंदोलनों के तंबू डंडे की नोक पर रात-रात में उखड़ते देखे हैं.
सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास, सबका प्रयास के सरल से मंत्र को आधार बना कर भारत के कल्याण में लगी मोदी सरकार का राजनैतिक विरोध एक बात है, लेकिन सरकार और सत्तारूढ़ पार्टी के अंदर से भी असहज आवाज़ें स्पष्ट सुनाई पड़ती रहती हैं. लोग खुलकर बात करते हैं कि मोदी और प्रधानमंत्री कार्यालय दूसरे मंत्रियों को स्वतंत्र रूप से काम नहीं करने देते. मंत्रालय छोटे-मोटे निर्णय भी बिना पीएमओ की मंज़ूरी के नहीं कर सकते. मोदी सरकार पर आरोप लगता है कि वह बीजेपी और संघ परिवार के कार्यकर्ताओं और शुभचिंतकों के काम नहीं करती.
ऐसी आवाज़ें पार्टी या संघ में उठती हैं, तो तत्काल अनुशासन का पाठ पढ़ा दिया जाता है कि जब अपने लोग ही ऐसी अपेक्षाएं करेंगे, तो विपक्ष तो हमले करेगा ही. कांग्रेस और अतीत में रही उसकी सरकारों के मामले में लोगों की राय ऐसी नहीं है. कार्यकर्ताओं और शुभचिंतकों के कामों के मामले में मोदी समर्थक लोग भी खुलकर अतीत की कांग्रेस सरकारों की तारीफ़ों के पुल बांधते हैं. सभी मानते हैं कि कांग्रेस के दौर में काम हो जाते थे, भले ही साम, दाम, दंड, भेद से होते थे, लेकिन हो जाते थे.
विरोधियों के लिए नरेंद्र मोदी अनूठी सोच…
मीडिया से जुड़े सरकार समर्थक तबके की भी शिकायतें हैं कि उसे मोदी सरकार में पर्याप्त सम्मान नहीं मिलता, रोज़गार नहीं मिलता, केंद्र और बीजेपी शासित राज्य सरकारों में ऐसे बहुत से पद वर्षों से खाली पड़े हैं, जिन पर मीडियाकर्मियों की नियुक्ति हो सकती है…. शुभचिंतकों का दिल्ली की केजरीवाल सरकार जैसा ध्यान मोदी सरकार नहीं रखती. हो सकता है कि ऐसी आवाज़ों की हताशा में सच्चाई हो, लेकिन यह भी ध्यान में रखना चाहिए कि हर व्यक्ति, समूह, संगठन का अपना काम करने का तरीक़ा होता है. मोदी सरकार का तरीक़ा ऐसा ही है, यह मान लेने में क्या बुराई है? दूसरी बात यह है कि बीजेपी और संघ परिवार के कार्यकर्ता और शुभचिंतक काम नहीं के कारण नाराज़ भले हो जाएं, लेकिन उनके संस्कार उन्हें आख़िरी तौर पर संगठन विरोधी नहीं होने देते. बहरहाल….
विरोधियों के लिए नरेंद्र मोदी अनूठी सोच की सौंधी गंध भरी भारतीयता की मटमैली मौलिक मिट्टी और निरंतर श्रमशील कर्तव्यनिष्ठ स्वेदधाराओं से मिलकर बना ऐसा दुर्गम, दुरूह दलदल हैं, जिसे पार करने के लिए विरोधी जितने अहंकारी यत्न करते हैं, उतने उसमें धंसते जाते हैं, अपना असल अस्तित्व खोकर अंतत: उसमें विलीन होते जाते हैं. हां, सरल, सहज, सत्यनिष्ठ, सकारात्मक सोच वालों के लिए मोदी मोह और मद से रहित असंख्य कुमुदनियों और ऐसे कमलों से भरा सुंदर सुरभित सरोवर हैं, जो विश्वास और अपनेपन की बहुत कम ऊष्मा के संपर्क में आने पर भी समारोह पूर्वक खिल उठते हैं. कुल मिलाकर संभव है कि आप नरेंद्र मोदी को सौ प्रतिशत स्वीकार न करें, लेकिन यह तय है कि आप नरेंद्र मोदी को एक प्रतिशत भी नकार नहीं सकते. आप मोदी से चिढ़ सकते हैं, उन्हें नापसंद कर सकते हैं, लेकिन यह ज़रूर मानेंगे कि आदमी तो ग़ज़ब का है! मोदी है, तो वास्तव में मुमकिन है. जन्मदिन पर नरेंद्र मोदी को अनंत शुभकामनाएं!

(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए जनता से रिश्ता किसी भी तरह से उत्तरदायी नहीं है)
रवि पाराशर, वरिष्ठ पत्रकार
लेखक वरिष्ठ पत्रकार और साहित्यकार हैं. नवभारत टाइम्स, ज़ी न्यूज़, आजतक और सहारा टीवी नेटवर्क में विभिन्न पदों पर 30 साल से ज़्यादा का अनुभव रखते हैं. कई विश्वविद्यालयों में विज़िटिंग फ़ैकल्टी रहे हैं. विभिन्न विषयों पर राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय सेमिनार में शामिल हो चुके हैं. ग़ज़लों का संकलन 'एक पत्ता हम भी लेंगे' प्रकाशित हो चुका है।
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