सम्पादकीय

जन्मदिन विशेष: कैथोलिक चर्च के खिलाफ जाकर गैलीलियो ने रखी आधुनिक विज्ञान की नींव

Gulabi
16 Feb 2022 9:20 AM GMT
जन्मदिन विशेष: कैथोलिक चर्च के खिलाफ जाकर गैलीलियो ने रखी आधुनिक विज्ञान की नींव
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13 फरवरी 1633 की बात है. एक बूढ़े और बीमार वैज्ञानिक ने जिसके लिए सामान्य चलना-फिरना भी मुश्किल था
13 फरवरी 1633 की बात है. एक बूढ़े और बीमार वैज्ञानिक ने जिसके लिए सामान्य चलना-फिरना भी मुश्किल था, ने आर्सेट्री से रोम तक की लंबी व कठिन यात्रा पूरी की. उस बूढ़े शख्स को रोमन कैथोलिक चर्च ने धर्म विरोधी गतिविधियों में संलिप्त होने की वजह से धार्मिक न्यायसभा के सामने हाजिर होने का आदेश दिया था. उस जमाने में धर्म के खिलाफ कुछ भी कहने पर कड़ी-से-कड़ी सजा मिलती थी. अपराधी को या तो बीच चौराहे पर सूली पर लटका दिया जाता था, या उसे जलाकर मार डाला जाता था.
धार्मिक न्यायसभा में जिस बूढ़े वैज्ञानिक पर मुकदमा चल रहा था, उसने ईश्वर और धर्म के खिलाफ कुछ नहीं कहा था बल्कि वह स्वयं एक बेहद आस्थावान कैथोलिक था. उस बेचारे ने वैज्ञानिक साक्ष्यों के आधार पर सिर्फ इतना ही कहा था कि पृथ्वी समेत सभी ग्रह सूर्य की परिक्रमा करते हैं. आज इस तथ्य से बच्चा-बच्चा वाकिफ़ है, लेकिन उस समय इस बात से धर्म पर ऐसी क्या आंच आ गई कि जिसके लिए भारी-भरकम इनक्विजीशन (धार्मिक न्यायसभा) बैठाने की जरूरत आन पड़ी? दरअसल, ईसाइयों के धर्मग्रंथ बाइबिल के आधार पर चर्च यह मानती थी कि पृथ्वी स्थिर है और सूर्य पृथ्वी की परिक्रमा करता है. और भला बाइबिल में लिखी बात कभी गलत हो सकती है?
12 अप्रैल 1633 को मुकदमे की सुनवाई शुरू हुई. धर्म को सही साबित करने के लिए उस बूढ़े अपराधी को झूठा बताना जरूरी था. उस वृद्ध और लाचार वैज्ञानिक पर बेतरह सितम ढाए गए. न्यायसभा के सामने घुटने टेककर उसे यह कहने के लिए मजबूर किया गया कि 'मैंने जो भी लिखा या कहा है, वह गलत है'. और फिर खड़े होकर शायद धीरे से उसने धीरे से यह कहा था कि 'इपर सी मूवे' —अर्थात् 'यह (पृथ्वी) अभी भी घूम रही है'.
उसने जो धीरे से कहा था उसे शायद न्यायधीशों ने नहीं सुना था और चूंकि उसने अपनी भूल स्वीकार कर ली थी, इसलिए उसे कठोर सजा देने की बजाय घर में ही ताउम्र नजरबंद रखे जाने की सजा दी. नजरबंदी के दौरान ही 1642 में उसकी मृत्यु हो गई.
इस मुकदमे के जो अपराधी थे, उस अड़सठ वर्षीय वैज्ञानिक का नाम था: गैलीलियो गैलिली. गैलीलियो आज किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं उनका नाम तो सभी ने सुना ही होगा! बहरहाल, आज उन्हीं गैलीलियो गैलिली का जन्मदिन है, जिसकी वैज्ञानिक विरासत को कैथोलिक चर्च और धार्मिक कट्टरपंथी लाख चाहने पर भी नहीं मिटा पाए.
गैलीलियो का जन्म 15 फरवरी, 1564 को इटली के पीसा शहर में एक बेहद गरीब परिवार में हुआ था. संयोग की बात है कि महान अंग्रेजी साहित्यकार शेक्सपियर का भी जन्म उसी वर्ष हुआ था. गैलीलियो के पिता विन्सैन्जो गैलिली एक पेश्वर संगीतकार थे. विन्सैन्जो गैलिली की रुचि संगीत के अलावा गणित के सैद्धांतिक पक्ष में भी थी. कहा जा सकता है कि गैलीलियो को सूक्ष्म गणितीय विश्लेषण करने का कौशल अपने पिता विन्सैन्जो गैलिली से विरासत में मिला था. 11 साल की उम्र तक गैलीलियो की शिक्षा-दीक्षा घर पर ही हुई. 1574 में गैलीलियो का पूरा परिवार वैल्मब्रोसा में बस गया और वहीं से उनकी औपचारिक पढ़ाई-लिखाई की शुरुआत हुई.
गैलीलियो के गरीब संगीतज्ञ पिता उन्हें डॉक्टर बनाना चाहते थे क्योंकि वे चाहते थे कि उनका बेटा कोई ऐसा काम करे जिससे ज्यादा से ज्यादा पैसा कमाया जा सके. पिता की इच्छापूर्ति के लिए गैलीलियो ने 1581 में अपना दाखिला पीसा यूनिवर्सिटी में चिकित्सा विज्ञान के एक छात्र के रूप में करवाया. वहीं 20 साल की उम्र में उन्होने पीसा के गिरजाघर में लटकते लैंप को देखा और पाया कि उसका दोलन काल आयाम पर निर्भर नहीं करता है. गैलीलियो को डॉक्टरी की पढ़ाई में पहले से ही दिलचस्पी नहीं थी, इसलिए उन्होने चिकित्सा विज्ञान की पढ़ाई छोड़ दी और गणित पढ़ने लगे. उधर उनके गरीब पिता उनके पढ़ाई का खर्च नहीं उठा पा रहे थे और गैलीलियो को मजबूरन बगैर डिग्री हासिल किए यूनिवर्सिटी छोड़कर घर लौटना पड़ा.
घर लौटकर वे गणित और विज्ञान की अन्य शाखाओं पर ज़ोर-शोर से अध्ययन में जुट गए. लेकिन खस्ता आर्थिक स्थिति की वजह से उन्होने कुछ छात्रों को गणित पढ़ाया, पर उसके फीस से घर चलाना नामुमकिन था. लेकिन फिर भी दृढ़ प्रतिज्ञ गैलीलियो ने गणित शिक्षण को ही अपना पेशा बनाने की ठानी. कई प्रयासों के बाद गैलीलियो को पीसा यूनिवर्सिटी में गणित के प्रोफेसर के रुप में नौकरी मिल ही गई. इस दौरान वे गणित और विज्ञान के क्षेत्र में कार्य करते रहे और 1592 में उन्हें अपनी प्रतिभा के बल पर पादुआ यूनिवर्सिटी में ज्योमेट्री के प्रोफेसर का पद हासिल हो गया.
गैलिलियो ने उच्च कोटि के कम्पास बनाए जो नाविको और सैनिकों के लिए बेहद उपयोगी साबित हुए. उनके अन्य आविष्कारों में थर्मामीटर, माइक्रोस्कोप, पेंडुलम घड़ी आदि शामिल हैं. गैलीलियो ने पृथ्वी पर पिंडों की गति को प्रभावित करने वाले यांत्रिकी के तात्विक नियमों की खोज की थी. जो नियम उन्होंने बनाए थे, वे गिरते हुए पिंडों और लोलकों की गति के उनके व्यापक अध्ययन पर आधारित थे. गैलीलियो एक महान वैज्ञानिक और गणितज्ञ होने के साथ-साथ बहुआयामिता और जिंदादिली के अनूठे मिशाल भी थे. कहा जाता है कि उन्होने अरस्तू को गलत साबित करने के लिए पीसा की झुकी मीनार से अलग-अलग वजन वाले तोप के गोलों को गिराकर यह दिखाया था कि भारी और हल्के दोनों ही गोले धरती पर एक साथ पहुँचते हैं.
गैलीलियो के विशिष्ट योगदान की बदौलत खगोल विज्ञान में एक क्रांतिकारी मोड़ आया. जब वे 45 साल के थे, तब उन्हें दूरबीन के आविष्कार के बारे में पता चला. गैलीलियो ने महज आविष्कार के ब्योरे को पढ़कर दूरबीन का पुनर्निर्माण किया और पहली बार खगोलीय प्रेक्षण में इसका इस्तेमाल किया. जब गैलीलियो ने अपनी दूरबीन से तारों भरे आकाश को निहारा तो उन्होंने इतनी बड़ी दुनिया देखी जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती थी. उन्होने अपनी दूरबीन की मदद से चन्द्रमा पर मौजूद क्रेटर, बृहस्पति ग्रह के चार प्राकृतिक उपग्रहों सहित सूर्य के साथ परिक्रमा करने वालें सौर धब्बों (सनस्पोट्स) का भी पता लगाया.
गैलीलियो ही वे पहले वैज्ञानिक थे जिन्होंने यह पता लगाया कि सूर्य के बाद पृथ्वी का सबसे नजदीकी तारा प्रोक्सिमा-सेंटौरी है. इसके अलावा गैलीलियो ने हमें शुक्र की कलाओं से संबंधित ज्ञान तथा कोपरनिकस के सूर्यकेंद्री सिद्धांत को सही साबित किया. इसलिए गैलीलियो को आधुनिक विज्ञान के पितामह का भी सम्मान दिया जाता है. गैलीलियो के अमूल्य योगदान को अल्बर्ट आइंस्टाइन तथा स्टीफन हाकिंग जैसे महान वैज्ञानिकों ने भी विनम्रतापूर्वक स्वीकार किया है. स्टीफन हाकिंग ने अपनी किताब ए ब्रीफ़ हिस्ट्री ऑफ टाइम में लिखा है: "गैलीलियो, शायद किसी अन्य व्यक्ति की तुलना में, आधुनिक विज्ञान के जन्म के लिए अधिक उत्तरदायी थे.''
गैलीलियो ने अपने समकालीन विचारकों से अलग राह अपनाते हुए वैज्ञानिकों और दार्शनिकों के नजरिए में क्रांतिकारी बदलाव ला दिए. वह अपने विचारों की सत्यता सिद्ध करने के लिए उस समय आम तौर पर प्रचलित तर्क-वितर्क का ही सहारा नहीं लेते थे, बल्कि अपने सिद्धांत को सही साबित करने के लिए उपयुक्त प्रयोगों को भी जरूरी मानते थे. इसलिए गैलीलियो को आधुनिक प्रयोगात्मक विज्ञान का भी जनक कहा जाता है.
गैलीलियो को शुरू से ही कोपरनिकस के सूर्यकेंद्री सिद्धांत में विश्वास था, जिसके मुताबिक पृथ्वी समेत सभी ग्रह सूर्य (केंद्र) की परिक्रमा करते हैं. 1597 में उन्होने जोहान्स केप्लर को एक चिट्ठी में लिखा था कि 'मैं कोपरनिकस के मॉडल में विश्वास करता हूँ, इससे खगोल विज्ञान की बहुत सारी गुत्थियाँ सुलझ जाती हैं.' हालांकि गैलीलियो ने जब अपने दूरबीन की मदद से कोपरनिकस के सिद्धांत के समर्थन में जरूरी प्रमाण इकट्ठे किए, तभी उन्होंने इसे सार्वजनिक रूप से समर्थन देना शुरू किया. गैलीलियो ने जब दूरबीन से देखा तो उन्हें बृहस्पति ग्रह के पास चार छोटे-छोटे 'तारे' जैसे दिखाई दिए. गैलीलियो समझ गए कि बृहस्पति ग्रह का अपना एक अलग संसार है. उसके इर्द-गिर्द घूम रहे ये पिंड अन्य ग्रहों की तरह पृथ्वी की परिक्रमा करने के लिए विवश नहीं हैं. यहीं से टॉलेमी और अरस्तू की परिकल्पनाओं की नींव हिल गई, जिनमें ग्रह और सूर्य सहित सभी खगोलीय पिंडों की गतियों का केंद्र पृथ्वी को बताया गया था. गैलीलियो की इस खोज से सौरमंडल के सूर्यकेंद्री सिद्धांत को बहुत बल मिला.
1610 में गैलीलियो ने अपनीं खोजों पर आधारित एक पुस्तक 'द मैसेंजर ऑफ स्टार्स' लिखी. कुछ वर्गों द्वारा पुस्तक का भरपूर स्वागत हुआ तो कुछ लोगों, विश्वविद्यालयों और चर्च को दूरबीन से ज्ञात होने वाले नए ज्ञान से आपत्ति थी. इस कारण नए ज्ञान का पुराने ज्ञान से टकराव होना लाजिमी था और जब गैलीलियो ने सूर्यकेंद्री सिद्धांत का समर्थन करना शुरू कर दिया, तो उन्हें धर्मगुरुओं और कट्टरपंथियों के कड़े विरोध का सामना करना पड़ा जिसके परिणामस्वरूप 1615 में कैथोलिक चर्च ने गैलेलियो को धर्म विरोधी करार दे दिया.
फरवरी 1616 मे वे आरोपों से बरी हो गए, लेकिन चर्च ने सूर्यकेंद्री सिद्धांत को गलत और धर्म के खिलाफ कहा. गैलीलियो को इस सिद्धांत का प्रचार न करने की चेतावनी दी गई जिसे गैलीलियो ने मान भी लिया. लेकिन 1632 मे अपनी नई किताब 'डायलाग कंसर्निंग द टू चीफ वर्ल्ड सिस्टमस' में उनके द्वारा सूर्यकेंद्री सिद्धांत के दुबारा समर्थन के बाद उन्हे रोमन कैथोलिक चर्च ने फिर से धर्मविरोधी घोषित कर दिया और इस महान वैज्ञानिक को अपना बाकी जीवन अपने घर में ही नजरबंद होकर गुजारना पड़ा. लेकिन इसी दौरान गैलीलियो ने अपनी सबसे महत्‍वपूर्ण पुस्तक लिखी- टू न्‍यू साइंसेज. किताब की पाण्डुलिपि चोरी से इटली से हॉलैंड पहुंचाई गई और वहीं पर प्रकाशित हुई. यही वह किताब थी जिससे आधुनिक विज्ञान की सही मायनों में शुरुआत हुई. अस्तु!


(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए जनता से रिश्ता किसी भी तरह से उत्तरदायी नहीं है)
प्रदीप तकनीक विशेषज्ञ
उत्तर प्रदेश के एक सुदूर गांव खलीलपट्टी, जिला-बस्ती में 19 फरवरी 1997 में जन्मे प्रदीप एक साइन्स ब्लॉगर और विज्ञान लेखक हैं. वे विगत लगभग 7 वर्षों से विज्ञान के विविध विषयों पर देश की प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में लिख रहे हैं. इनके लगभग 100 लेख प्रकाशित हो चुके हैं. दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक तक की शिक्षा प्राप्त की है.
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