सम्पादकीय

Birbhum Violence : कभी अपनी संस्कृति और बुद्धिजीवियों के लिए मशहूर रहे पश्चिम बंगाल में इतना खून-खराबा क्यों?

Gulabi Jagat
25 March 2022 8:30 AM GMT
Birbhum Violence : कभी अपनी संस्कृति और बुद्धिजीवियों के लिए मशहूर रहे पश्चिम बंगाल में इतना खून-खराबा क्यों?
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पश्चिम बंगाल में एक के बाद एक सरकारें एक अलग युद्ध लड़ रही हैं
जयंत भट्टाचार्य।
पश्चिम बंगाल (West Bengal) में एक के बाद एक सरकारें एक अलग युद्ध लड़ रही हैं. यह आंतरिक युद्ध है. मुख्यमंत्री बनने के बाद से ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) भी इस हिंसा (Violence) पर लगाम नहीं लगा पाई हैं. कभी अपनी संस्कृति, अपने बुद्धिजीवियों के लिए देश-दुनिया में सम्मान पाने वाला पश्चिम बंगाल आज वो रक्तपात देख रहा है जिसके खत्म होने के संकेत नहीं दिखते. राजनीतिक विश्लेषक सौम्य बंदोपाध्याय लिखते हैं, "खाली दिमाग शैतान का." वे आगे बताते हैं, "बेरोजगारी पश्चिम बंगाल को अपराध की तरफ ले जा रही है. यही अपराधी बाद में राजनीतिक संरक्षण चाहते हैं."
पश्चिम बंगाल को चार दशकों से अधिक समय से जानने वाले वाले बंदोपाध्याय के मुताबिक, "औद्योगीकरण के नाम पर यहां केवल रियल एस्टेट सौदे या निर्माण हो रहे हैं. इससे एक सिंडिकेट का गठन हुआ है." आरोप है कि ये सिंडिकेट राजनीतिक संरक्षण के तहत पनप रहा है. किसी भी बिल्डर को स्थानीय ठेकेदारों को मोटी रकम चुकानी पड़ती है. यही सिंडिकेट पश्चिम बंगाल में बुनियादी ढांचे के विकास और निर्माण के लिए आकर्षक सरकारी कॉनट्रेक्ट का मैनेजमेंट भी करता है. राज्य सरकार और राज्यपाल के बीच लगातार टकराव चल रहा है जो विकास समेत दूसरे मामलों में मदद नहीं कर रहा है.
पश्चिम बंगाल आज मानवाधिकारों के उल्लंघन की प्रयोगशाला बन गया है
राज्यपाल जगदीप धनखड़ कहते हैं, "रामपुरहाट (बीरभूम) में हिंसा पश्चिम बंगाल में एक खतरनाक स्थिति का संकेत दे रही है. राज्य में कानून-व्यवस्था की स्थिति चरमरा गई है. पश्चिम बंगाल आज मानवाधिकारों के उल्लंघन की प्रयोगशाला बन गया है. मैं सरकार के साथ सहयोग करना चाहता हूं, बशर्ते वहां कानूनी प्रक्रिया हो." कानून व्यवस्था राज्य का विषय है. गृह मंत्रालय के तहत आने वाला राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो हर साल राज्यों से एकत्रित अपराध संबंधी आंकड़ों का संकलन करता है.
ब्यूरो अपनी रिपोर्ट (2020) में कहता है, "भारत में अपराध के आंकड़ों में 2019 में पश्चिम बंगाल में हुए अपराध का सही जिक्र नहीं हुआ क्योंकि राज्य सरकार ने आंकड़े भेजे ही नहीं. ऐसे में राष्ट्रीय आंकड़ों/प्रवृत्तियों में प. बंगाल के 2018 के आंकड़ों का ही इस्तेमाल किया गया. 2019 के आंकड़े 2021 के अंत में प्राप्त हुए जिन्हें बाद में 2019 के आंकड़ों की जगह शामिल किया गया.
प. बंगाल के अधिकारियों ने आंकड़े एकत्र करने और इसे मिलाने में हुई देर के लिए कोरोना की स्थिति को जिम्मेदार ठहराया. हालांकि अब उसे जल्दी करने की जरूरत है क्योंकि पहले ही काफी देर हो चुकी है. राजनीतिक कार्यकर्ता और अर्थशास्त्री प्रसेनजीत बोस आरोप लगाते हैं, "यदि आप बीरभूम और आसपास के क्षेत्र की बात करें तो यहां बेसाल्ट या ब्लैक स्टोन और रेत के व्यापार में एक माफिया आपराधिक गतिविधियों में लिप्त है. करोड़ों का व्यापार माफिया नियंत्रित करता है."
यहां माफिया खुद प्रशासन का हिस्सा बन गया है
"ग्रामीण राजनीति काफी कुछ प्राकृतिक संसाधनों की बिक्री और सरकारी धन को नियंत्रित करने पर निर्भर करती है. अब वहां पर कृषि से कोई आय नहीं होती. ऐसे में लोग पैसा कमाने के लिए इस तरह के तरीकों का सहारा ले रहे हैं. जैसे-जैसे यह बढ़ता है राजनीतिक संरक्षण में एक माफिया पनपता है," उन्होंने आश्चर्य के साथ दावा किया: "जिला मजिस्ट्रेट, पुलिस अधीक्षक या सरकारी अधिकारी राजनीतिक दिग्गजों के साथ बैठकें क्यों करेंगे? एक सांसद या विधायक ऐसी बैठक बुला सकता है लेकिन पार्टी के जिला प्रमुखों को इस तरह का कोई संवैधानिक अधिकार नहीं है."
यह कोई रहस्य नहीं है कि अपने अस्तित्व के दौरान पश्चिम बंगाल ने राजनीतिक दलों के बीच एक दूसरे से ऊपर होने की कड़ी स्पर्धा देखी है. यह अक्सर हत्या और प्रतिशोध की ओर भी ले जाता है. क्या इस पर कभी लगाम लगेगी? बोस ने कहा, "इसके लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति की जरूरत है," प्रशासन को अपराधियों पर भारी पड़ना चाहिए. समस्या यह है कि माफिया खुद प्रशासन का हिस्सा बन गया है. मुझे डर है कि लोगों के बीच घात-प्रतिघात आगे अराजकता का कारण न बन जाए."
बंदोपाध्याय ने कहा, "राजनीति एक संस्कृति बन गई है. हितों के टकराव से हिंसक स्थिति बन रही है. अगर मुझे राजनीतिक संरक्षण नहीं मिलता है तो मैं कहीं का नहीं रहूंगा – यह आम धारणा है. कानून से बचने का एकमात्र तरीका सत्ताधारी पार्टी से चिपक जाना है… मगर यह एक तरह से खतरों से खेलने जैसा है." एक अनुभवी कमेंटेटर का कहना है कि औद्योगीकरण और रोजगार का सृजन जैसे उपायों से ही प. बंगाल की स्थिति सुधर सकती है.
व्यापारियों के बीच एक लॉबी तैयार हो गई है
राज्य वास्तव में बीमार हो चला है. जिस राज्य को भारत में सबसे बेहतर सेन रैले साइकिलों को बनाने का गौरव हासिल है वो आज छात्राओं की कल्याणकारी योजनाओं के तहत साइकिल वितरित करने के लिए दूसरे राज्यों से साइकिल खरीद रहा है. वर्ग संघर्ष आज राजनीतिक संघर्ष तक सिमट गया है और उद्योग खत्म हो रहे हैं. व्यापारियों के बीच एक लॉबी तैयार हो गई है और उत्पादन गिरता जा रहा है. विशेषज्ञों के मुताबिक ज्यादातर हिंसा ग्रामीण क्षेत्रों में होती है. उन्होंने कहा कि बड़े पैमाने पर औद्योगीकरण और व्यवसाय की बेहतर स्थिति से ही परिदृश्य बदलेगा नहीं तो आराजकता फैल जाएगी.
प. बंगाल की बुरी स्थिति के लिए एक और कारण बताया जाता है वो है वहां ट्रेड यूनियनों की भागीदारी. प्रबंधन पर अनुचित दबाव और आये दिन हड़ताल से लंबे समय तक उद्योगों के बंद रहने के कारण उद्योगपति राज्य छोड़ने को मजबूर हो गए हैं. राज्य ने लगातार केंद्र की विरोधी पार्टी की सत्ता को देखा है. ऐसे में केंद्र भी राज्य की मदद नहीं करता.
राज्य के एक पूर्व उद्योग और वाणिज्य मंत्री ने एक बार मुझे सबूत दिया कि कैसे तत्कालीन केंद्र सरकार ने निवेशकों को पश्चिम बंगाल में निवेश करने से रोका. केंद्र में एनडीए ने "लुक ईस्ट" यानी पूर्वी राज्यों पर ध्यान देने वाली नीति तैयार की है, मगर केंद्र से शत्रुता के कारण इस महत्वपूर्ण पूर्वी राज्य को वह वास्तविक निवेश नहीं मिला जिसका वो हकदार है. प. बंगाल में हिंसा का नंगा नाच देख कर हम केवल आहें भर सकते हैं, पश्चिम बंगाल के मेरे प्रिय बाशिंदों आवाज दो – तब तक जब तक स्थिति सामान्य नहीं हो जाए.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, आर्टिकल में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं.)
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