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तीन घासों पर टिकी खाद्य सुरक्षा
विश्व वन्यजीव कोष की एक नवीन रिपोर्ट में रहस्योद्घाटन हुआ है कि गेहूं, चावल और मक्का के प्रभुत्व वाली कृषि वन्यजीवों के संरक्षण पर कहर बरपा रही है। ये तीन फसलें विश्व खाद्य सुरक्षा को भी संकट में डाल रही हैं। कृषि में जैव विविधता का सर्वाधिक विनाश भी इन तीन फसलों के कारण हुआ है, जो प्रकृति और खाद्य सुरक्षा के लिए खतरे की घंटी है। विश्व वन्यजीव कोष के डेविड एडवस के अनुसार, 1970 के बाद वैश्विक कृषि के कारण वन्यजीव आबादी में 60 फीसदी गिरावट आई है।
मनुष्य द्वारा उपभोग किए जाने वाले भोजन का 75 प्रतिशत भाग मात्र 12 पौधों और पांच पशु स्रोतों से आता है, जिसमें से पूरे मानव आहार में 60 प्रतिशत कैलोरी तीन फसलों-गेहूं, चावल और मक्का-से मिलती है। वैश्विक आबादी को मिलने वाली कैलोरी का 51 प्रतिशत केवल गेहूं, चावल और मक्का से आता है। लिहाजा इनके उपादन में व्यवधान के दुखद परिणाम होंगे।
दुनिया भर में कृषि की आधुनिक प्रवृत्तियों के नतीजे सामने आ रहे हैं। विगत 50 साल में वन्यजीवों की अनेक प्रजातियों में चौंका देने वाली गिरावट आई है। कीटों की प्रजातियों का तो कई क्षेत्रों में महाविनाश हो चुका है, जिससे पौधे के परागण में व्यवधान होने लगा है। अगर इसी दर से कीटों का लोप होता गया, तो लाखों पौधे धरती से विलुप्त हो जाएंगे। लगभग 5,000 साल पूर्व हम 5,000 तरह के पौधों से अपना भोजन चुनते थे, पर हरित क्रांति के युग में हमारा भोजन करीब तीन दर्जन पौधों तक सिमट गया है।
मानव सभ्यता समय की धारा के साथ-साथ खाद्य दरिद्रता की ओर बढ़ती जा रही है! पारंपरिक खेती में इन तीन फसलों की हजारों किस्में हुआ करती थीं। हमारे देश में ही चावल की कोई 60,000 किस्में थीं, किंतु हरित क्रांति इन तीन फसलों की आनुवांशिक विविधता को भी चबा गई। हमारे काल का सबसे कड़वा सच यह है कि आधुनिक सभ्यता का जीवन घास कुल तीन पौधों-गेहूं, चावल और मक्का-पर टिका है। अकाल, पौध-रोग, कीट प्रकोप, जलवायु परिवतन या किसी अन्य अनहोनी के कारण यदि ये फसलें नष्ट हो गईं, तो मानव जाति का क्या हाल होगा? वैसे भी वर्ष 2050 तक दुनिया में एक-तिहाई अतिरिक्त पेटों की भूख शांत करने के लिए 70 प्रतिशत अतिरिक्त खाद्य उत्पादन की जरूरत होगी, जिसकी आपूर्ति ये तीन फसल नहीं कर सकेंगी।
संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) के अनुसार, कृषि में करीब 75 फीसदी आनुवांशिक विविधता खो गई है। ब्रिटेन में सेब की 2,000 से अधिक किस्में हैं, पर सुपर मार्केट में 20 से अधिक नहीं मिलेंगी। आज खेती-किसानी का उद्देश्य खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना नहीं है, बल्कि वह बाजार की मांग से नियंत्रित है। बाजार को जो चाहिए, वही खेतों में उगता है। खाद्य सुरक्षा की कुंजी भी बाजार के हाथ में है। खेती की विविधता को नष्ट कर देना, हरित क्रांति वाली कृषि में केवल चंद पौधों को स्थान देना और मानव सभ्यता के भाग्य को केवल तीन फसलों के हाथ छोड़ देना क्या हरित क्रांति का आतंकवाद नहीं है?
दुनिया भर में सभी मनुष्य के भोजन में समरूपता आ गई है, जो कृषि क्षेत्र में सिकुड़ती जैव विविधता का मूल कारण है। शायद ही कोई मनुष्य होगा, जो तीन घासों में से किसी एक पर निर्भर न रहता हो! दक्षिण एशिया चावल की ऊर्जा से चलता है। दाल-भात भारत में हिमालयी राज्यों और नेपाल में प्रसन्नता का सूचक है। गेहूं का तो पूरी दुनिया में ही साम्राज्य है। और विश्व में सर्वाधिक उत्पादन वाली मक्का की ऊर्जा भी विराट मानवता को ऊर्जावान रखती है और जिसका 54 प्रतिशत अमेरिका और चीन ही खा जाते हैं।
सार रूप में यही तीन घास धरती पर मानव की कहानी लिखती हैं। हम जिस ऊर्जा से सोचते हैं, जिस ऊर्जा से अपने सभी कार्यों का निर्वहन करते हैं, जिस ऊर्जा से यश कमाते हैं, जिस ऊर्जा से हम चांद और मंगल तक छलांग लगा सकते हैं, वह ऊर्जा हमें बीजों से मिलती है, और जिन तीन जातियों के बीजों से वह ऊर्जा मिलती है, वे घास कुटुंब के पौधे हैं। यानी हमारी सभ्यता बस तीन घासों के बल पर जिंदा है।
अमर उजाला
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