सम्पादकीय

जैव विविधता, संस्कृतियां और भाषाएं

Neha Dani
17 July 2022 3:10 AM GMT
जैव विविधता, संस्कृतियां और भाषाएं
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भारत की भाषिक विविधता भाषाओं से सिकुड़ते संसार के लिए उदाहरणीय है।

सारी सृष्टि प्रकाश के चमत्कारी सृजन की कथा है। इस कथा का श्रीगणेश प्रकाश संश्लेषण से होता है, और पेड़-पौधों से लाखों जीवों में प्रवाहित होकर इसका पटाक्षेप मानव प्रजाति के रूप में होता है। सृष्टि की सारी जैव विविधता प्रकाश के चमत्कारों की अंतहीन कहानी है। भौगोलिक क्षेत्रों, पारिस्थितिक तंत्रों, जीव प्रजातियों और आनुवांशिक गुणों के असंख्य रूपों के साथ हमारी पृथ्वी पर जीवन खिला है। और नैसर्गिक विकास यात्रा के चरमोत्कर्ष पर मानव प्रजाति का अभ्युदय अपनी सुरभि फैलाती जैव विविधता का सबसे अद्भुत पहलू है।


लाखों जीव प्रजातियों की विविधता के बीच मानव एक पृथक जीव है, लेकिन हर स्तर पर विविधताओं से सराबोर। कितनी ही सांस्कृतिक विविधताओं के साथ खिलती है पृथ्वी पर मानवता! पृथ्वी पर जितनी भौगोलिक विविधताएं, उतनी ही सांस्कृतिक विविधताएं। सांस्कृतिक विविधता जैव विविधता की अभिव्यक्ति है। जैसे-जैसे जैव विविधता भौगोलिकता के अनुसार अपने आयाम, रूप-रंग और लय बदलती है, उसी प्रकार मानव संस्कृतियां भी। मिट्टी-पानी-जलवायु से भौगोलिक और पारिस्थितिक विविधताएं बनती हैं और उसी तरह हमारी संस्कृतियां भी।

मानव संस्कृति का सबसे महत्त्वपूर्ण पहलू है एक विशिष्ट भाषा। भाषा वह विशिष्टता है जो मनुष्य को सभी जानवरों से भिन्न बनाती है। सभी जानवरों से उत्पन्न तरह तरह की ध्वनियों से उनकी प्रजातियों की पहचान होती है, लेकिन एक प्रजाति के जानवर की ध्वनि की 'लय' एक ही प्रकार की होती है। इसके विपरीत मनुष्य के कंठ और जिह्वा के तालमेल से उत्पन्न ध्वनियां तरह-तरह की भाषाओँ को जन्म देती हैं। नैसर्गिक विकास का मानव प्रजाति के लिए जो उत्कृष्टम उपादान है, वह है भाषा। पृथ्वी पर संपूर्ण मानवता विविधतापूर्ण भाषाओं से स्पंदित है। इन भाषाओं की विविधता सांस्कृतिक विविधता और फलस्वरूप जैव विविधता के अनुरूप होती है। जितनी घनी जैव विविधता, उतनी ही अधिक भाषाएं। भौगोलिक जैव विविधता और भाषाओं के अंतर्संबंध सहज, स्वाभाविक, नैसर्गिक और अटूट हैं।

जैव विविधता जलवायु विविधता का एक 'उत्पाद' है। पर जैव विविधता भी जलवायु का संरक्षण करती है। विशिष्ट जलवायु में विशिष्ट जैव विविधता पनपती है और वह जैव विविधता जलवायु की विशिष्टता को संतुलन देती है। मानव भाषा भी जैव विविधता और जलवायु विशिष्टता से जुड़ी प्राकृतिक विकास की एक अद्भुत रचना है। चूंकि जैव विविधता स्वयं प्रकाश की एक रचना है, इसलिए भाषा भी प्रकाश का ही एक अनूठा सृजन है। भाषायी विविधता, वास्तव में, प्रकाश के महान आश्चर्यों में से एक है। मानव संस्कृतियों की विविधतता एक कौतूहल पैदा करती है। भाषा एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में बदलती रहती है।

भारत में एक कहावत है कि हर आठ कोस पर भाषा बदल जाती है। किसी क्षेत्र में जितनी अधिक विविधता होगी, भाषाओं, बोलियों और उच्चारणों की संख्या उतनी ही अधिक होगी। किसी क्षेत्र की दुर्गमता जितनी अधिक होगी (जिसके परिणामस्वरूप प्रायः जैव विविधता में बढ़ोतरी होती है), उसकी भाषायी विविधता भी उतनी अधिक होगी। उदाहरण के लिए, संपूर्ण हिमालयी क्षेत्र में, अफगानिस्तान से लेकर म्यांमार तक, विविध संस्कृतियों में बोली जाने वाली लगभग 30,000 भाषाएं हैं, जैसा कि काठमांडू स्थित अंतरराष्ट्रीय समन्वित पर्वतीय विकास केंद्र के एक अध्ययन में पाया गया है।
संसार में लाखों भाषाएं, बोलियां और स्थानीय उच्चारण हैं, जो स्वयं में विविधतापूर्ण संस्कृतियों और उन्हें जन्म देने और पालने वाली जैव विविधता की गौरव गाथाएं हैं। इन भाषाओं में बसी है पृथ्वी की विविधतापूर्ण मिट्टियों की सुरभि, पानी और हवा की तृप्तिदायक शीतलता तथा स्थानीय खाद्य पदार्थों के रसमयी स्वाद।
एक और विभिन्नता मनुष्य प्रजाति के स्तर पर है, जो किसी अन्य जंतु में नहीं। एक ही भाषा समूह से संबंधित प्रत्येक व्यक्ति की पहचान उसके अपने विशिष्ट स्वर से की जा सकती है। प्रत्येक मनुष्य स्वयं को भाषा की एक निजी-सी टोन के साथ प्रस्तुत करता है, जो उसी भाषा बोलने वाले अन्य व्यक्ति की टोन से अलग होती है। इसमें आनुवांशिकता भी आड़े नहीं आती। सगे भाइयों और सगी बहनों की भाषायी टोन भी अलग-अलग होगी और यही भिन्न वाणी उनकी व्यक्तिगत पहचान होती है। इस तरह, विश्व में अरबों विविध स्वर गूंजते हैं। कुछ स्वर इतने मधुर और सीधे आत्मा से जुड़ जाने वाले होते हैं कि उनकी अनुगूंज सदियों तक बनी रहती है। इतिहास साक्षी है कि जो सभ्यताएं जैव विविधताओं से कटकर रहीं, उसकी संस्कृति दूषित हो गई और उसने अपनी मौलिक भाषा में मिलावट कर दी।
भारत जैव विविधता के वैभव वाला देश है। भारत के पश्चिमी घाट और पूर्वी हिमालय विश्व के चुनिंदा बायोडायवर्सिटी हॉटस्पॉट हैं। वैसे जैव विविधता से सराबोर वनों के विनाश के साथ भारतीय मौलिक संस्कृति में, जो अरण्य संस्कृति रही है, बहुत ह्रास हुआ है, फिर भी उसकी गौरव गाथाएं संपूर्ण मानवता को गौरवान्वित करती हैं। दुनिया के अधिकांश देशों में एक-एक भाषा बची रह गई है, भारत जीवंत भाषाओं से खिला देश है। भारत की भाषिक विविधता भाषाओं से सिकुड़ते संसार के लिए उदाहरणीय है।

सोर्स: अमर उजाला

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