सम्पादकीय

जातिगत जनगणना की ओर बढ़ा बिहार

Rani Sahu
2 Jun 2022 5:58 PM GMT
जातिगत जनगणना की ओर बढ़ा बिहार
x
बिहार में सभी धर्मों के लोगों की जाति आधारित गणना जल्द शुरू होगी

विनोद बंधु

बिहार में सभी धर्मों के लोगों की जाति आधारित गणना जल्द शुरू होगी। इसमें लोगों की आर्थिक स्थिति की भी जानकारी ली जाएगी। नई सदी में बिहार देश का दूसरा राज्य होगा, जो ऐसी गणना कराने जा रहा है। कर्नाटक ने 2015 में यह गणना कराई थी, लेकिन उसने इसकी रिपोर्ट जारी नहीं की। राष्ट्रीय स्तर पर दो बार 1931 और 2011 में जाति आधारित जनगणना हो चुकी है। अभी भी अंग्रेजों के समय 1931 में हुई जातिगत जनगणना का ही इस्तेमाल आम तौर पर होता आया है, जबकि 2011 की जातिगत जनगणना रिपोर्ट जारी नहीं की गई है। बुधवार को सर्वदलीय बैठक में सर्वसम्मति बनने के बाद गुरुवार को राज्य मंत्रिपरिषद ने इस प्रस्ताव पर मुहर लगा दी। राज्य सरकार ने अपने संसाधनों से यह गणना कराने का फैसला किया है।
ऐसी जनगणना के प्रतिकूल केंद्र सरकार का तर्क रहा है कि 1931 में सिर्फ 24 जातियों के लोगों की गणना हुई थी, जबकि 2011 की गणना में 4,28,000 जातियां और उप-जातियां सामने आई थीं। जनगणना के लिए कंप्यूटर में इतने कॉलम बनाना संभव नहीं है, इसलिए यह गणना व्यावहारिक नहीं है। इसके अलावा, भारतीय जनता पार्टी जातिगत जनगणना से समाज में विद्वेष की आशंका भी जताती रही है। बावजूद अपने इन तर्कों के राज्य में जब-जब ऐसी जनगणना की मांग उठी है, भाजपा ने राज्य स्तर पर प्रस्ताव का समर्थन ही किया है। जातिगत गणना कराने के पक्ष में राज्यों की विधानसभाओं ने भी समय-समय पर प्रस्ताव पारित किए। बिहार विधान मंडल के दोनों सदनों ने फरवरी 2019 और विधानसभा ने फरवरी 2020 में प्रस्ताव पारित किया। इसी तरह तेलंगाना ने अक्तूबर 2021 और ओडिशा ने दिसंबर 2021 में विधानसभा से प्रस्ताव पारित कर केंद्र से जाति आधारित गणना कराने की मांग की। जब केंद्र सरकार ने ऐसी गणना को अव्यावहारिक करार देते हुए सामान्य जनगणना का फैसला लिया, तब राजनीतिक दलों ने दबाव बनाने के लिए अपने-अपने तरीके से पहल की। बिहार के सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल ने 23 अगस्त 2021 को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में प्रधानमंत्री को ज्ञापन सौंपकर आग्रह किया कि देश में जाति आधारित गणना कराई जाए। इसके अगले दिन पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा था कि 'अगर सभी पार्टियां सहमत हों, तो वह राष्ट्रीय स्तर पर जातिगत जनगणना के प्रस्ताव का समर्थन करेंगी।' लेकिन केंद्र सरकार ने जब इस मांग को ठुकरा दिया, तब बिहार में सत्ता और विपक्ष ने राज्य स्तर पर गणना पर जोर दिया। ऐसी गणना में जातियों की संख्या अप्रत्याशित रूप से सामने आने के तर्क को खारिज करते हुए नीतीश कुमार ने दावा किया कि बिहार में बेहतर तरीके से इसे पूरा किया जाएगा।
पिछले महीने मई में ऐसी गणना को लेकर सियासी शास्त्रार्थ चल रहा था, तब 17 मई 2022 को भाजपा के राज्यसभा सांसद सुशील कुमार मोदी ने बयान जारी कर कहा कि भाजपा कभी इसके विरोध में नहीं रही है। भाजपा के गोपीनाथ मुंडे ने 2010 में लोकसभा में इस विषय पर चर्चा के दौरान प्रस्ताव का समर्थन किया था। बुधवार को इस मुद्दे पर पटना में जिस सर्वदलीय बैठक में इस गणना पर सर्वसम्मति बनी, उसमें भाजपा शामिल थी। भारतीय जनता पार्टी जाति आधारित गणना कराने की बजाय गरीबों की गणना कराने पर जोर देती रही है। बिहार में जाति आधारित गणना के साथ इसके लिए भी अलग से कॉलम रखने का फैसला लिया गया है। दूसरी बात, सभी धर्मों में जाति आधारित गणना का तर्क वह देती रही है, बिहार में यह भी होने जा रहा है।
अब देश में कुल मिलाकर जो आधिकारिक स्थिति है, उसमें कोई भी राज्य जाति आधारित गणना कराने के लिए स्वतंत्र है। ऐसी गणना के समर्थक राजनीतिक दलों के अपने-अपने तर्क हैं। बिहार के मुख्यमंत्री का कहना है कि जातिगत जनगणना जरूरी है। इससे यह जानकारी हो जाएगी कि किन-किन जातियों में कितनी-कितनी आबादी है। इसके बाद पिछड़ी जातियों के लिए उनकी आबादी के अनुसार, योजनाएं चलाई जा सकेंगी। आबादी के अनुरूप उस जाति विशेष के उत्थान के लिए सरकार विशेष तौर पर ध्यान दे सकेगी। जातिगत जनगणना पूरी होने के बाद यह भी पता चलेगा कि कौन गरीब है?
ध्यान देने की बात है कि जाति आधारित जनगणना का बहुत मुखर विरोध कहीं नहीं हुआ है। अब सभी राज्य इसे कराने पर विचार कर रहे हैं। राज्यों में यह हो जाएगा, तो स्वत: राष्ट्रीय स्तर पर आंकड़े सामने आ जाएंगे। इसी तरह, बिहार में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ऐसी जनगणना पर जोर देते रहे हैं। उनका तर्क है कि इससे एक वैज्ञानिक डाटा सामने आएगा और पता चलेगा कि कौन गरीब है। इसके बाद हाशिए पर छूटे लोगों के विकास के लिए योजनाएं बनाई जा सकेंगी।
यह बताते चलें कि 1931 में हुई जातिगत जनगणना में बिहार में ब्राह्मण 4.7 प्रतिशत, भूमिहार 2.9 प्रतिशत, राजपूत 4.2, कायस्थ 1.2 और बनिया 0.6 प्रतिशत पाए गए थे। उस समय बनिया को ऊंची जातियों में ही रखा गया था और इनका कुल औसत 13.6 प्रतिशत था। पिछड़ी जातियों में यादव 11 प्रतिशत, कुर्मी 3.6 और कोइरी 4.1 प्रतिशत थे। अति-पिछड़ी जातियों की कुल आबादी 32 प्रतिशत थी। 2011 की जातिगत जनगणना के आंकडे़ हालांकि जारी नहीं हुए, लेकिन माना जाता है कि उसमें बिहार में मुसलमानों की संख्या 16.9 प्रतिशत, यादव 14.4, कुशवाहा 6.4, कुर्मी 4, ब्राह्मण 4, भूमिहार 6, राजपूत 3 और कायस्थों की आबादी एक प्रतिशत पाई गई है।
अगर ये आंकड़े सही हैं, तो आबादी के जातिगत समीकरण में विगत दशकों में बड़ा बदलाव पहले ही आ चुका है। आबादी का जातिगत समीकरण बदलने का बड़ा कारण पलायन भी हो सकता है। बहरहाल, बिहार के फैसले की चर्चा पूरे देश में है। दिलचस्पी के साथ लोग अंतिम आंकड़ों का इंतजार करेंगे। बिहार सरकार ने जातिगत जनगणना के लिए समय सीमा भी तय कर ली है। फरवरी 2023 तक इस काम को अंजाम दे दिया जाएगा। जनगणना से जुड़े जो बाकी सवाल हैं, उनका हल भी सामने आएगा। अगर जाति आधारित जनगणना कराकर इसकी रिपोर्ट जारी करने में बिहार सफल रहा, तो वह 91 साल बाद ऐसा करने वाला देश का पहला राज्य हो जाएगा।

क्रेडिट बाय हिंदुस्तान

Rani Sahu

Rani Sahu

    Next Story