सम्पादकीय

बिहारः असहज रिश्तों वाला चुनाव

Gulabi
27 Oct 2020 9:45 AM GMT
बिहारः असहज रिश्तों वाला चुनाव
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बिहार विधानसभा चुनाव के पहले चरण में 71 सीटों पर चुनाव प्रचार थम चुका है।

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। बिहार विधानसभा चुनाव के पहले चरण में 71 सीटों पर चुनाव प्रचार थम चुका है। यहां मतदान बुधवार को होने वाले हैं। इन चुनावों की एक खास बात है विभिन्न परस्पर विरोधी खेमों के एक-दूसरे से बनते दिलचस्प रिश्ते। मुख्य मुकाबला तेजस्वी यादव की अगुआई वाले महागठबंधन और नीतीश कुमार के नेतृत्व वाले एनडीए के बीच है। ये दोनों चेहरे पिछले विधानसभा चुनाव में एक साथ थे क्योंकि कभी करीबी दोस्त और फिर प्रबल राजनीतिक विरोधी रहे लालू प्रसाद और नीतीश कुमार ने नाटकीय ढंग से एक-दूसरे का हाथ थाम लिया था। मगर 20 महीने के अंदर नीतीश ने इस दोस्ती से खुद को अलग करते हुए फिर बीजेपी के साथ जाना उचित समझा। दोस्ती और दुश्मनी का यह पल-पल बदलता रूप इस बार दोनों खेमों के रिश्तों को असहज बनाए हुए है।

बीजेपी ने सहयोगी दल जेडीयू के लिए जो सीटें छोड़ी हैं उन सब पर एलजेपी ने अपने प्रत्याशी खड़े कर दिए हैं। हालांकि बीजेपी नेतृत्व बार-बार कह चुका है कि पार्टी का गठबंधन जेडीयू के साथ है, एलजेपी से इन चुनावों में उसका कोई संबंध नहीं है। मगर केंद्र में एलजेपी आज भी एनडीए का हिस्सा बनी हुई है और सीट बंटवारे में टिकट से वंचित हुए कई बीजेपी नेता एलजेपी से किस्मत आजमा रहे हैं। ऐसे में इस धारणा का निर्मूल होना मुश्किल है कि असल में बीजेपी ही अपनी बंदूक एलजेपी के कंधे पर रखकर चला रही है। बहरहाल, उसके नेताओं के स्पष्टीकरण का जमीन पर कितना और कैसा असर हो रहा है, इसका कुछ अंदाजा पहले दौर की वोटिंग का माहौल देखकर भी हो जाएगा। मुद्दों की बात करें तो सबसे चौंकाने वाली भूमिका बॉलिवुड ऐक्टर सुशांत सिंह की मौत की रही। बिहार के चुनावों में बिहारी अस्मिता आम तौर पर मुद्दा नहीं बनती, पर सुशांत को न्याय दिलाने की मांग जिस चमत्कारिक ढंग से सभी पार्टियों के अजेंडे में शामिल हो गई, उससे लगा कि बिहारी अस्मिता का सवाल इन चुनावों में छाया रहेगा।

लेकिन यह जिस तेजी से उठा था, उसी तेजी से फीका पड़ता गया। आलम यह है कि जेडीयू और बीजेपी भी चुनाव प्रचार में इसका जिक्र नहीं कर रही हैं। दस लाख सरकारी नौकरियों का वादा कर तेजस्वी यादव ने जरूर बिहार के चुनावों को जाति-धर्म से अलग ठोस जमीनी मुद्दों की ओर मोड़ने का प्रयास किया, लेकिन इसके जवाब में बीजेपी ने 19 लाख रोजगार का वादा कर दिया। ऐसे में तय करना मुश्किल है कि बीजेपी के इस वादे से ज्यादा परेशानी तेजस्वी को होगी या नीतीश कुमार को। कारण यह कि बीजेपी का बयान आने तक नीतीश कुमार चुनावी मंचों से कई बार तेजस्वी के इस वादे को अव्यावहारिक और असंभव करार दे चुके थे। इस चुनावी महाभारत में कौन किसके साथ खड़ा है और किसका वार दरअसल किसे घायल कर रहा है इसकी जानकारी भी अंतिम तौर पर चुनाव नतीजे घोषित होने के बाद ही हो सकेगी।

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