सम्पादकीय

बिहार : सार्वजनिक सुधार की कुंजी है शिक्षा, यहां इसी इंतजार में हैं नालंदा के सोनू जैसे कई और बच्चे

Neha Dani
22 May 2022 1:45 AM GMT
बिहार : सार्वजनिक सुधार की कुंजी है शिक्षा, यहां इसी इंतजार में हैं नालंदा के सोनू जैसे कई और बच्चे
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ऐसे में सोनू जैसे बच्चे का असंतोष फूट पड़ा। जाहिर है, सरकारी स्कूलों की सेहत संवारने की आवश्यकता है।

ग्यारह वर्षीय पांचवीं पास सोनू कुमार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के विचारों-व्याख्यानों से अत्यंत प्रभावित है। उसकी धारणा है कि ये दोनों शासक ईमानदार हैं और शिक्षा में सुधार ला सकते हैं। पर प्रशासन तंत्र उदासीन है। नालंदा के नीमापुर गांव के रहने वाले सोनू ने बिहार की शिक्षा-व्यवस्था की खामियों को बहुत बारीकी से समझा है, और वह चाहता है कि प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री शिक्षा की बर्बादी रोकने को यथाशीघ्र कदम उठाएं।

उसने मुख्यमंत्री से मुलाकात में छात्रवृत्ति, अनुदान या मिड डे-मिल पाने की इच्छा जाहिर नहीं की, बल्कि गुणकारी शिक्षा पाने की गुहार लगाई। उसका कहना है कि 'जब मंत्रियों, अधिकारियों और अमीरों के बच्चे अच्छी शिक्षा पा सकते हैं, तो मुझ गरीब को शिक्षा का अधिकार क्यों नहीं मिल सकता?' यह बच्चा अनजाने में ही संविधान में प्रदत्त शिक्षा के अधिकार की बात कर रहा है। वह एक प्रतीकात्मक बाल प्रतिनिधि बन गया है। संयोग से यह राष्ट्रीय शिक्षा नीति के लागू होने का समय है।
सरकार ने शिक्षा में सुधार के लिए हजारों सुझाव लिए हैं। उनमें सोनू का यह सुझाव भी शामिल करने योग्य है। शिक्षा को कुप्रभावित करने वाले व्यवधान और बुराइयां ज्ञान के क्षेत्र में विश्वगुरु होने की इच्छाओं पर भारी पड़ रही हैं। सोनू है तो शिष्य, लेकिन व्यवस्था की तपिश ने उसे गुरु की भूमिका में ला खड़ा कर दिया है। वह तीस छात्र/छात्राओं को पढ़ाता है। जिसे पढ़ना नहीं आता, उससे पचास और जिसे पढ़ना आता है, उससे वह सौ रुपये माहवार फीस लेता है।
कानून, न्याय और नैतिकता के प्रति उसकी निष्ठा हमें लोकतांत्रिक सबक सिखाती है। बिहार में शराबबंदी लागू है। परंतु सोनू अपने पिता का उदाहरण पेश करता है, जो दही बेचते हैं और जो कुछ कमाते हैं, शराब और ताड़ी पीने में बर्बाद कर देते हैं। सोनू कहता है, 'उन्होंने कानून तोड़ा है, अतः उन्हें कुछ दिन के लिए जेल भेजा जाए।' कानून के प्रति ऐसी निष्ठा और समझ रखने वाला बच्चा यदि आई.ए.एस. बनना चाहता है, तो उसके संकेत सकारात्मक हैं।
पर जब वह कहता है कि आई.ए.एस. बनने पर वह शिक्षा व्यवस्था सुधार देगा, सामाजिक बुराइयों का अंत कर देगा, तो चिंता होती है, क्योंकि देश में भ्रष्ट नौकरशाही की करतूतें हैरान करने लायक हैं। सोनू नहीं जानता कि प्रशासनिक अधिकारी केवल सरकारों की नीतियों-नियमों का पालन भर करा सकता है। शिक्षा माफिया और विद्या के व्यापारियों की राष्ट्र-विरोधी स्वार्थवृत्ति से वह कैसे निपटेगा? फिर भी सोनू की इच्छा सराहनीय है और कोशिश अनुकरणीय।
वह अपने एक अक्षम शिक्षक को भी माफ नहीं करता, हालांकि वह नहीं जानता कि सरकारी शिक्षा की दृष्टि से बीमारू राज्य मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और बिहार में ऐसे ही खस्ताहाल सरकारी स्कूलों से पढ़कर वे शिक्षक बने हैं। सरकारी स्कूलों का हाल दिल्ली के सरकारी स्कूलों के अपवाद को छोड़कर उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में लगभग बिहार जैसा ही है। स्कूलों में विषयों की कमी, कुशल-प्रशिक्षित शिक्षकों का अभाव और ऊपर से कर्तव्यनिष्ठा के प्रति उदासीनता का साया दूर तक छाया हुआ है।
जिस तरह बिहार के स्कूल शिक्षकों के प्रदर्शन अच्छे नहीं रहे, उत्तर प्रदेश में भी कागजों पर एक-एक शिक्षक कई-कई स्कूलों में पढ़ाते पाए जा चुके हैं। ऐसी भी खबरें आईं कि वास्तविक शिक्षक चंद पैसे देकर ठेके पर पढ़ाई का काम कराते हैं। जिस इलाके में निजी व्यवसायिक स्कूल खोले जाते हैं, वहां के सरकारी स्कूलों को बीमारू संस्था में बदल दिया जाता है। इन दिनों देश की आजादी का अमृत महोत्सव मनाया जा रहा है।
ऐसे में स्वतंत्रता सेनानियों, शहीदों और संविधान निर्माताओं के सपनों का राष्ट्र बनाने के लिए शिक्षा ही सार्वजनिक सुधार की कुंजी है। शिक्षा पर बजट बढ़ाने और उसके सदुपयोग की देख-रेख देश की सीमा की तरह की जानी चाहिए। सोनू जिस सरकारी स्कूल की मरणासन्न अवस्था पर उंगली उठा रहा था, वह कोई इकलौता स्कूल नहीं है। उसी दिन यह खबर आ रही थी कि देश में 51,108 सरकारी स्कूल बंद हो चुके हैं। जबकि निजी स्कूलों की संख्या में अभूतपूर्व वृद्धि हो रही है, जो अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा देते हैं और बदले में मोटी रकम वसूलते हैं।
वे आम और खास बच्चों के बीच गहरी खाई निर्मित करते हैं। आम बच्चों को सरकारी स्कूल भी दुर्लभ है। वहां पढ़ाई नहीं होती। और जिन निजी स्कूलों में पढ़ाई होती है, आम अभिभावकों की माली हालत उनमें अपने बच्चों का दाखिला कराने की नहीं है। नतीजतन सरकारी स्कूलों के 17 करोड़ छात्रों से शिक्षा का अधिकार छिन गया। उत्तर प्रदेश में अनेक सरकारी स्कूलों ने दम तोड़ दिया। दूसरी ओर, बिहार सरकार ने करीब तीन हजार नए सरकारी स्कूल तो खोले, पर उन स्कूलों को कुशल-प्रशिक्षित शिक्षक नहीं मिले। ऐसे में सोनू जैसे बच्चे का असंतोष फूट पड़ा। जाहिर है, सरकारी स्कूलों की सेहत संवारने की आवश्यकता है।

सोर्स: अमर उजाला

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