सम्पादकीय

Bihar Cast Clash: मधुबनी हत्याकांड कैसे बदला ब्राह्मण बनाम राजपूत संघर्ष में, क्या बिहार का समाजिक चरित्र बदल रहा?

Gulabi
9 April 2021 3:28 PM GMT
Bihar Cast Clash: मधुबनी हत्याकांड कैसे बदला ब्राह्मण बनाम राजपूत संघर्ष में, क्या बिहार का समाजिक चरित्र बदल रहा?
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Bihar Cast Clash

संयम श्रीवास्तव। बिहार में जाति आधारित नरसंहारों का इतिहास रहा है. सवर्ण बनाम दलित, बैकवर्ड बनाम दलित, पिछड़े बनाम अति पिछड़े की हिंसा का बिहार करीब 5 दशकों से गवाह बनता रहा है. 1976 में भोजपुर जिले के अकोड़ी में शुरू हुई हिंसा के बाद राज्य में सैकड़ों लोगों की जान जातीय हिंसा में जा चुकी है. इस तरह की हिंसा के कई सामाजिक-आर्थिक और राजनीतिक कारण रहे हैं. पर मधुबनी में 5 राजपूतों की हत्या को ब्राह्मण बनाम राजपूत संघर्ष का नाम देने की क्यों कोशिश हुई? सवाल उठता है कि क्यों ये जानते हुए भी कि हत्याआरोपियों में 13 राजपूतों का नाम है करणी सेना और राजपूत सेना के नेताओं ने इसे लपकने की कोशिश की. क्यों जेडीयू और बीजेपी के राजपूत नेताओं ने घटनास्थल पर पहुंचकर मामले को जातिगत रूप देने की कोशिश की?


बिहार पुलिस ने 29 मार्च को राज्य के मधुबनी जिले से प्रवीण झा 'रावण' को गिरफ्तार कर लिया. हिंदुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार रावण पर आरोप है कि उसने कथित रूप से जिले के एक राजपूत परिवार के पांच लोगों की हत्या कर दी है. इस भीषण नरसंहार ने दशकों पुराने उस जातिगत संघर्षों की याद दिला दी है जिससे बिहार आज तक नहीं उबर पाया है. रावण की गिरफ्तारी पर एक पुलिस अधिकारी ने बताया कि 30 साल का प्रवीण झा मधुबनी में एक संगठन चलाता है जिसका नाम है 'रावण सेना' यह संगठन मुख्य रूप से ब्राह्मणों के लिए उनके हितों की रक्षा के लिए काम करता है.

क्या ये सोशल मीडिया और नेताओं की कारस्तानी है
दरअसल प्रवीण झा उर्फ रावण के सोशल मीडिया अपडेट से यह पता चलता है कि वो ग्राम पंचायत का चुनाव लड़ना चाहता है. रावण सेना के जरिए वो ब्राह्मण कम्युनिटी में अपने को स्थापित करना चाहता रहा है. बेनीपट्टी की रावण सेना 2018 से सक्रिय है पहले यह संगठन केवल मधुबनी जिले तक सीमित था. हालंकि अब वह धीरे-धीरे गोपालगंज के कुछ हिस्सों तक सक्रिय हो गया था और इसमें इसका सबसे बड़ा हथियार सोशल मीडिया बनता था. पर ये कहना कि जमीनी स्तर पर ब्राह्मण और राजपूतों के बीच कोई संघर्ष चल रहा है बिहार मामलों के विशेषज्ञ संजय कुमार सिंह ऐसा नहीं मानते. उनका कहना है कि घटना को अंजाम देने के बाद जहां आरोपियों ने शेल्टर लिया था वह भी राजपूत का ही घर था.

संजय कुमार सिंह कहते हैं कि इस तरह की घटना का इमोशनल लाभ लेने की कोशिश होती है, नेता लोग अपनी जाति के लोगों का सहानुभूति लेना चाहते हैं. ये हत्याकांड पूरी तरह वर्चस्व के लिए जंग था. चूंकि प्रवीण झा और नवीन झा दोनों ब्राह्मण आरोपी है इसलिए इसे रंग दिया जा रहा है. बिहार की सत्ताधारी पार्टी एनडीए के दोनों घटक दल बीजेपी और जेडीयू ने घटना के बाद राजपूत जाति के नेताओं को भेजा. बाद में जब विपक्ष हमलावर हुआ तो एनडीए बैक फुट पर आ गया.

वर्चस्व की जंग का है मामला
यह पूरा विवाद एक तालाब से मछली पकड़ने को लेकर हुआ था. दरअसल यह विवाद 29 नवंबर 2020 का है जब संजय और मुकेश सफी जो प्रवीण झा के करीबी बताए जाते हैं वह मृतक रणविजय सिंह के तालाब से मछली पकड़ रहे थे, तब रणविजय और उनके परिवारवालों के साथ इन दोनों का विवाद हो गया. इस विवाद के बाद दोनों ने थाने में जा कर एक दूसरे के खिलाफ एफआईआर करा दिया, चूंकि मुकेश सफी अनुसूचित समुदाय से आता था तो उसने राजपूत परिवार के खिलाफ SC/ST एक्ट भी लगवा दिया. जिसमें संजय सिंह जो मृतक रणविजय सिंह के भाई हैं और तालाब के मूल मालिक हैं वह जेल में हैं.

प्रवीण झा पर आरोप है कि उसने 29 मार्च को महमूदपुर गांव जहां राजपूत परिवार रहता है वहां तकरीबन 50 लोगों के साथ पहुंच कर गोलीबारी कि जिसमें राजपूत परिवार के पांच लोगों की मौत हो गई. 29 मार्च को बेनीपट्टी थानाक्षेत्र के तहत आने वाले महमूदपुर गांव में राजपूत परिवार होली का जश्न मना रहा था. तभी प्रवीण झा अपने 50 साथियों के साथ जो बंदूकें, तलवारें, कुल्हाड़ी और इसी तरह के कई हथियारों से लैस थे, हमला बोल दिया और इस हमले में अंधाधुंध गोलीबारी की. इस गोलीबारी में राजपूत परिवार के एक बीएसफ जवान राणा प्रताप सिंह सहित पांच लोगों की हत्या हो गई. प्रवीण झा इस बात से नाराज था कि गांव के तालाब पर कैसे राजपूतों ने अपना कब्जा कर रखा है. तालाब ही वजह थी जिसने इतने लोगों की जान लेली.
पंचायत चुनाव लड़ने की कर रहा था तैयारी
प्रवीण झा उर्फ रावण पंचायत चुनाव लड़ने का तैयारी कर रहा था. हालांकि फेसबुक के माध्यम से पता चलता है कि उसने अपनी दबंगई दिखाते हुए खुद को पहले ही मुखिया घोषित कर दिया था. हिदुस्तान टाइम्स में छपी रिपोर्ट के अनुसार, दरभंगा रेंज के पुलिस अधिकारियों ने कहा कि रावण सेना प्रमुख प्रवीण बजरंग दल का पूर्व जिला अध्यक्ष था. इसके साथ ही उसके बीजेपी, वीएचपी और आरएसएस से वैचारिक संबंध भी थे. हालांकि बजरंग दल के जिला अध्यक्ष आदित्य कुमार ने इस बात से साफ-साफ इंकार किया है कि प्रवीण का कोई संबंध बजरंग दल से रहा था. इस पूरे मामले पर जेडीयू के विधायक संजय सिंह ने गांव का दौरा किया और रावण को एक पागल बताया जो जबरन वसूली करता था.

बिहार में जातीय सेनाओं का रहा है इतिहास
पुलिस ने पूरे मामले में 35 लोगों के खिलाफ केस दर्ज किया है, जिसमें 18 ब्राह्मण 13 राजपूत और दर्जनों अज्ञात आरोपी शामिल हैं. इस केस में अब तक पुलिस ने प्रवीण झा समेत 16 लोगों को गिरफ्तार कर लिया है. हालांकि अभी उनमें से एक मुख्य आरोपी नवीन झा अभी फरार है. इस घटना ने बिहार के 1990 के उस दौर की याद दिला दी जब यहा 6 दर्जन से ज्यादा जातीय संबंधी नरसंहार हुए थे. पॉलिटकल एक्सपर्ट संजय सिंह बताते हैं कि जब 35 आरोपियों में 13 राजपूत हैं और पीडि़त भी राजपूत हैं तो ये कैसे कह सकते हैं कि ये मामला ब्राह्मण बनाम राजपूत संघर्ष का है. दरअसल बिहार का अतीत रहा है जब वहां के उच्च जातीय वर्ग के लोगों ने अपनी-अपनी एक निजी सेना बना रखी है जो हमेशा लड़ने को तैयार होती है. जिसमें रणवीर सेना, लोरिक सेना, भूमि सेना, किसान संघ और अन्य शामिल हैं.

इस क्षेत्र में अन्य ब्राह्मण सेनाएं भी हैं जिनमें परशुराम सेना मुख्य है जिसे खूंखार गैंगस्टर संतोष झा ने बनाई थी. संतोष इससे पहले सीपीआई (माओवादी) से जुड़ा रहा था. इसके बाद 2000 में वह इससे अलग हुआ और अपनी एक अलग सेना बनाई. माना जाता है इस खुंखार अपराधी ने अपनी अवैध वसूली के लिए दर्जनों इंजीनियरों और सुपरवाइज़रों की हत्या कर दी थी. यह अपराधी फिलहाल आजीवन कारावास की सजा काट रहा है. इसकी एक बार 28 अगस्त, 2018 को सीतामढ़ी में एक निचली अदालत के परिसर में गोली मारकर हत्या करने की कोशिश भी की गई थी.

पूर्वी यूपी जैसी प्रतिद्वंद्विता भी नहीं है बिहार में ब्राह्मण और राजपूतों के बीच
यूपी और उत्तराखंड में ब्राह्मण बनाम राजपूत प्रतिद्वंद्विता का बहुत पुराना इतिहास रहा है. राजनीतिक दल टिकट के बंटवारे में, मंत्रिमंडल के गठन में दोनों की बराबरी का हमेशा ध्यान रखा जाता रहा है. कांग्रेस और बीजेपी ही नहीं समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी जैसे राजनीतिक दलों में भी दोनों जातियों के संतुलन का ध्यान रखा जाता रहा है. पर यूपी में कुछ दिनों से ब्राह्मणों का एक वर्ग खुद को ठगा महसूस कर रहा है. दरअसल कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी और हाल ही में सक्रिय हुई आम आदमी पार्टी ब्राह्मणों के साथ अन्याय होने की बातें कहकर बीजेपी के वोटबैंक में सेंध लगाने की कोशिश कर रही हैं. पोलिटिकल एक्सपर्ट संजय कुमार सिंह का कहना है कि यूपी में ब्राह्मण और राजपूत दोनों डॉमिनेंट हैं पर बिहार में ऐसा नहीं है. बिहार में ब्राह्मण वर्सेस राजपूत कभी नहीं रहा, यूपी वाले हालात बिहार में नहीं है और यहां ऐसा हो ही नहीं सकता.
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