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- असम में शांति की ओर...
आदित्य चोपड़ा: जब से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सत्ता संभाली है उसके बाद पिछले सात वर्षों में पूर्वोत्तर की विकास यात्रा काफी तेजी से आगे बढ़ी है। केंद्र सरकार ने पूर्वोत्तर को रेल सम्पर्क, हवाई सम्पर्क, बंदरगाह सम्पर्क और सड़क सम्पर्क के साथ-साथ आईटी सम्पर्क से जोड़ने का काम किया। मोदी सरकार के नेतृत्व में पूर्वोत्तर क्षेत्र को परेशान करने वाले मुद्दों का समाधान किया है, जिसमें बोडो शांति समझौता, बंगलादेश के साथ सीमा विवाद, एनएलएफटी के साथ शांति समझौता, त्रिपुरा और मिजोरम की समस्याओं का समाधान शामिल है। केंद्र सरकार ने एक्ट ईस्ट नीति के तहत पूर्वोत्तर राज्यों के बुनियादी ढांचे के विकास के लिए कई कदम उठाए हैं। अरुणाचल, मेघालय मणिपुर, नगालैंड और मिजोरम जैसे पहाड़ी राज्यों को रेल से जोड़ा जा रहा है।गृहमंत्री अमित शाह लगातार आतंकवाद मुक्त पूर्वोत्तर व बनाने के महत्व पर जोर देते रहे हैं। अपवाद स्वरूप बचे-खुचे जातीय समूह आतंकवादी वारदातें कर देते हैं। अब गृहमंत्री अमित शाह की मौजूदगी में असम में एतिहासिक कार्बी आंगलोंग समझौता किया गया। यह समझौता 6 उग्रवादी संगठन कार्बी लॉगरी नार्थ कछार हिल्स लिबरेशनल फ्रंट, पीपुल्स डेमोक्रेटिक काउंसिल ऑफ कार्बी लोंगरी, यूनाइटेड पीपुल्स लिबरेशन आर्मी, कार्बी पीपुल्स लिब्रेशन टाइगर्स, केपीएलटी (आर) और केपीएलटी (एम) के प्रतिनिधियों के साथ किया गया। यह सभी सशस्त्र समूह हिंसा को त्यागने और देश के कानून द्वारा स्थापित शांतिपूर्ण लोकतांत्रिक प्रक्रिया में शामिल होने पर सहमत हुए हैं। इसके तहत एक हजार के लगभग उग्रवादियों ने आत्मसमर्पण कर दिया है। समझौते के तहत असम सरकार कार्बी आंगलोंग स्वायत्त परिषद को समग्र रूप से अधिक विधायी, कार्यकारी प्रशासनिक और वित्तीय शक्तियां देगी। विशेष विकास परियोजनाओं के लिए केंद्र सरकार ने एक हजार करोड़ के विशेष पैकेज का ऐलान भी कर दिया।सशस्त्र समूहों के कैडरों के पुनर्वास का भी प्रावधान रखा गया और असम सरकार कार्बी स्वायत्त परिषद क्षेत्र से बाहर रहने वाले कार्बी लोगों के विकास पर ध्यान केंद्रित करने के लिए एक कार्बी कल्याण परिषद की स्थापना करेगी। इस समझौते के तहत पूर्वोत्तर में केंद्र सरकार का बड़ा तनाव खत्म हो गया है और यह असम में शांति स्थापना की ओर बड़ा कदम है। असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा भी विद्रोही जातीय समूहों को राष्ट्र की मुख्यधारा में शामिल करने के लिए काफी अर्से से प्रयास कर रहे थे। कार्बी असम का एक प्रमुख जातीय सम्प्रदाय है जो कई वर्षों से कार्बी आंगलोंग स्वायत्त परिषद की मांग करता आ रहा था। इस विद्रोही समूह का असम में हिंसा का लम्बा इतिहास रहा है। यह समूह 1980 के दशक से जातीय हिंसा, हत्याओं, अपहरण और लोगों से टैक्स वसूलने के लिए जाना जाता है। नए समझौते के तहत पहाड़ी जनजाति के लोग भारतीय संविधान की अनुसूची-6 के तहत आरक्षण के हकदार होंगे। पिछले दो वर्षों से 3700 से अधिक सशस्त्र कैडरों ने लगातार आत्मसमर्पण किया है। कार्बी उग्रवादियों के आत्मसमर्पण करना असम के लिए ही नहीं बल्कि नगालैंड के लिए महत्वपूर्ण है। कार्बी आंगलोंग राज्य का बहुत महत्वपूर्ण जिला है और क्षेत्रफल की दृष्टि से सबसे बड़ा है। कार्बी उग्रवादी समूह का मुख्यधारा में शामिल होने का अर्थ यही है कि असम में नगा उग्रवादी संगठनों के प्रभाव में गिरावट आ चुकी है।संपादकीय :डेंगू से मृत्यु का असली कारण?किस ओर ले जा रहा है फिटनेस और स्ट्रैस का जुनून?तालिबान सरकार और भारतजजों की नियुक्तियां समय की जरूरतसोशल, डिजीटल मीडिया और न्यायमूर्ति रमणगाय राष्ट्रीय पशु घोषित होपूर्वोत्तर भारत को स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से ही नजरंदाज किया जाता रहा। पूर्वोत्तर के हजारों ऐसे क्षेत्र हैं जहां आजादी के 70 वर्षों बाद भी बिजली नहीं थी। मोदी सरकार ने वहां बिजली पहुंचाई। वर्षों से सरकारें एक कानून नहीं बदल पाई। अब जाकर बांस को वृक्ष की श्रेणी से बाहर निकाला गया है। लोगों की मुश्किलें आसान हुई हैं। लोग पूर्वोत्तर की वेशभूषा और संस्कृति का मजाक उड़ाते रहे, यह भावना भी अब काफी हद तक खत्म हो चुकी है। पूर्वोत्तर से आधे गायक, आधे संगीतकार आैर दूसरी प्रतिभाएं निकल रही हैं। पूर्वोत्तर भारत राष्ट्र की मुख्यधारा से जोड़ने में विकास की धारा सहायक हो रही है। असम में उल्फा अब दम तोड़ चुका है। अब केवल राज्यों को आपसी सीमा विवाद खत्म करना ही सरकार की प्राथमिकता है। 2023-24 तक पूर्वोत्तर के सभी आठ राज्यों की राजधानियाें को हवाई सेवा और रेल नेटवर्क से जोड़ा जाएगा जो आतंकवाद मुक्त पूर्वोत्तर के राज्यों के लोगों के जीवन को ही बदल डालेगा।