सम्पादकीय

द्रौपदी मुर्मू के माध्यम से बड़ा संदेश: वंचित वर्गों में स्वाभिमान का होगा पुनर्जागरण, मतांतरण में शामिल ईसाई मिशनरियों का टूटेगा मनोबल

Rani Sahu
11 July 2022 10:43 AM GMT
द्रौपदी मुर्मू के माध्यम से बड़ा संदेश: वंचित वर्गों में स्वाभिमान का होगा पुनर्जागरण, मतांतरण में शामिल ईसाई मिशनरियों का टूटेगा मनोबल
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भारत का राष्ट्रपति देश का सर्वोच्च प्रतिनिधि और प्रथम नागरिक होता है। इस समय राष्ट्रपति चुनाव का प्रचार अभियान चल रहा है

सोर्स-जागरण

हृदयनारायण दीक्षित

भारत का राष्ट्रपति देश का सर्वोच्च प्रतिनिधि और प्रथम नागरिक होता है। इस समय राष्ट्रपति चुनाव का प्रचार अभियान चल रहा है। भाजपा नेतृत्व वाले राजग ने जहां द्रौपदी मुर्मू को प्रत्याशी बनाया है तो विपक्षी खेमे ने पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा को उतारा है। विपक्षी प्रत्याशी की हार निश्चित दिख रही है। शायद इसी से खिन्न सिन्हा ने शिगूफा छेड़ा है कि राष्ट्रपति रबर स्टांप नहीं होना चाहिए। उनका संकेत मुर्मू की ओर है, लेकिन शायद वह भूल गए मुर्मू झारखंड की राज्यपाल रही हैं।

उन्‍होंने झारखंड विधानसभा द्वारा पारित छोटा नागपुर टेनेंसी अधिनियम (संशोधन) विधेयक व संथाल परगना टेनेंसी अधिनियम (संशोधन) विधेयकों पर सहमति नहीं दी थी। मुर्मू अनुसूचित जनजाति से हैं। ओडिशा से विधायक व कई विभागों की मंत्री रही हैं। भाजपा अनुसूचित जनजाति मोर्चे की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रही हैं। वह राज्यपाल होने वाली जनजाति की पहली महिला हैं। ऐसे में रबर स्टांप की टिप्पणी गलत है और अशोभनीय भी। यह छिपा नहीं रहा कि जनजाति समुदाय गरीबी व सामाजिक कारणों से ईसाई मतांतरण का निशाना रहे हैं। मुर्मू का राष्ट्रपति चुना जाना भय और लोभ से होने वाले मतांतरण को समाप्त कर सकता है। सर्वोच्च पद पर उनका निर्वाचन वंचित समुदायों के लिए आशा और प्रसन्नता का विषय होगा। यह उनकी अस्मिता व सम्मान में वृद्धि भी करेगा।
वंचित वर्गों को भय और लोभ से मतांतरित करने का इतिहास बहुत पुराना है। बैप्टिस्ट मिशनरी 1822 में ही ओडिशा आई थी। मतांतरण पर 'ओडिशा फ्रीडम आफ रिलीजन कानून, 1967' बनाने वाला पहला राज्य ओडिशा ही था। ईसाई मिशनरी मतांतरण में सक्रिय रहीं। मिशनरी इसे धर्म प्रचार का संवैधानिक अधिकार कहते थे। संविधान सभा के कई सदस्य धर्म प्रचार के अधिकार (अनुच्छेद 25) से असहमत थे। सभा में इस पर काफी तकरार भी हुई। लोकनाथ मिश्र ने 'धर्म प्रचार के प्रस्ताव को गुलामी का दस्तावेज बताया। भारत विभाजन को मतांतरण का परिणाम बताया।'
तज्जमुल हुसैन ने कहा, 'मैं आपको अपने तरीके से मुक्ति पाने के लिए क्यों कहूं? आप मुझसे भी ऐसा ही क्यों कहें? धर्म प्रचार की जरूरत क्या है।' प्रो. केटी शाह ने कहा, 'मैं समझता हूं कि यह अनुचित प्रभाव डालने वाला है। ऐसे कई उदाहरण हैं, जहां अनुचित लाभ द्वारा मतांतरण कराए गए।' के. संथानम ने कहा, 'जनता मतांतरण के विरोध में है। धन या प्रलोभन से अनुचित प्रभाव डालकर मतांतरण करने वाले के विरुद्ध राज्य को विधिक अधिकार है।' भारी विरोध देखकर केएम मुंशी ने कहा, 'भारत के ईसाई समुदाय ने इस शब्द के रखने पर बहुत जोर दिया है। इसका परिणाम कुछ भी हो, हमने जो समझौते किए हैं, उन्हें 'हमें मानना चाहिए।' इस प्रकार देखें तो यह तत्कालीन नेतृत्व और ईसाई समुदाय के मध्य गोपनीय समझौता था, जिसका परिणाम सामने है।
मतांतरण पर गांधी जी का रुख भी बहुत सख्त था। उन्होने ईसाई मत प्रचारकों को संबोधित करते हुए 'हरिजन' में लिखा, 'आप पुरस्कार के रूप में चाहते हैं कि आपके मरीज ईसाई बन जाएं।' उन्होंने यहां तक लिखा कि मिशनरी सामाजिक काम को निष्काम भाव से नहीं करते। डा. आंबेडकर इस मामले में गांधी जी के प्रयासों से असहमत थे। उन्होने लिखा, 'मिस्टर गांधी के तर्कों का कोई खंडन नहीं करेगा, लेकिन उन्हें दो टूक शब्दों में मिशनरियों से कह देना चाहिए कि अपना काम रोक दो। इतिहास गवाह है कि धोखाधड़ी के कारण मतांतरण हुए।' स्वतंत्र भारत का इतिहास भी साक्षी है कि वंचित वर्गों के निश्छल जनसमूहों को मतांतरण का निशाना बनाया जाता रहा। मुर्मू के राष्ट्रपति बनने से वंचित वर्गों में स्वाभिमान का पुनर्जागरण होगा। ईसाई मिशनरियों का मनोबल टूटेगा।
स्मरण रहे कि अस्मिता बोध को लेकर ही सरना कोड की बात चली है। झारखंड विधानसभा ने तय किया है कि आगामी जनगणना में आदिवासियों को सरना कोड के अंतर्गत धार्मिक मान्यता दी जाए। विधानसभा प्रस्ताव में इसे 'सरना आदिवासी धर्म' कहा गया है। जनगणना प्रारूप र्में हिंदू, इस्लाम, ईसाई, सिख, बुद्ध और जैन छह धर्म/संप्रदायों का उल्लेख है। कहा गया है कि जनजाति समुदाय इनमें से किसी एक को अंगीकृत नहीं कर सकता। जबकि वास्तविकता यही है कि जनजाति के समुदार्य हिंदू धर्म व संस्कृति के अंग हैं। वैसे भी सरना समर्थक प्रकृति प्रेमी हैं। वे वृक्ष, वन, नदी, पर्वत, जल और मातृभूमि के प्रति देवत्व का भाव रखते हैं। प्रकृति उपासक हैं। वैदिक धर्म में भी प्रकृति की शक्तियों को देवता जाना गया है। 'सरना' के तत्व भी जीवन को प्रकृति प्रेमी बताते हैं।
जनजाति समुदायों की विशेष अस्मिता का संरक्षण संवैधानिक प्रविधानों में किया गया है। संविधान में उन्हें शेड्यूल्ड ट्राइब-अनसूचित जनजाति कहा गया है। जनजातीय विश्वास वस्तुत: पर्यावरण प्रेमी है, लेकिन ऐसे प्रकृति प्रेमी 'सरना' को भी बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने राजनीतिक हथियार बनाया। ममता ने राजनीतिक कारणों से सरना को अलग धर्म मानने की मांग की थी। ऐसे मुद्दों को वोट की राजनीति से अलग देखा जाना चाहिए। माओवादी हिंसक संगठनों के लिए भी युवाओं की भर्ती वंचित वर्गों से ही की जाती है। मुर्मू का राष्ट्रपति होना वंचित वर्गों के लिए आशा की किरण बनेगा और उनमें अस्मिता बोध का भाव भी जागृत करेगा।
रामकथा विश्वव्यापी है। सीताहरण से व्यथित श्रीराम की भेंट दंडकारण्य में घायल जटायु से हुई। जटायु वंचित समुदाय के थे। उन्होंने रावण को सीताहरण का अभियुक्त बताया और प्राण त्याग दिए। श्रीराम ने उनका दाह संस्कार किया। वाल्मीकि जी ने वंचित समूह की शबरी को सिद्धा और श्रमणी बताया। शबरी योग वेदांत में सिद्ध थीं। रामायण काल में भी वनवासी जनजातियों तर्क हिंदू अध्यात्म और तप की पहुंच थी।
कुछ वामपंथी विद्वान रामकथा को कपोल-कल्पना मानते हैं। जबकि श्रीराम इतिहास हैं। आस्था हैं। वनवासियों उपेक्षितों के प्रति श्रीराम का आदर भाव भारतीय परंपरा और इतिहास की अमूल्य निधि है, लेकिन स्वयंभू विद्वान प्रत्येक प्रेरक नायक और प्रतीक को खारिज करते हैं। वे विभाजन को महत्व देते हैं। अलगाववाद के समर्थक हैं। ऐसी स्थिति में मुर्मू के राष्ट्रपति होने का देश के सभी हिस्सों में प्रभाव पड़ेगा। कमजोर वर्ग स्वयं को उनसे जोड़कर देखेंगे। उनका निर्वाचन भारतीय सांस्कृतिक सामाजिक चिंतन और विश्वास को मजबूत करने वाला सिद्ध होगा।
Rani Sahu

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