- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- दो ट्रिलियन डॉलर...
x
देश इससे कहीं ज्यादा प्राप्त कर सकता है.
मार्च 31, 2023 को घोषित विदेश व्यापार नीति के अनुसार, 2030 तक दो हजार अरब डॉलर के निर्यात का लक्ष्य रखा गया है, जिसमें वस्तुओं और सेवाओं दोनों के निर्यात शामिल हैं. अभी तक निर्यात के ढुलमुल प्रदर्शन के चलते कई जानकर इस बड़े लक्ष्य के बारे में शंका व्यक्त कर रहे हैं. पर विशेषज्ञों का एक बड़ा वर्ग इसे असाध्य नहीं मान रहा. कुछ लोगों का तो यह भी मानना है कि देश इससे कहीं ज्यादा प्राप्त कर सकता है.
दस साल पहले 2012-13 में भारत के वस्तुओं और सेवाओं के निर्यात मात्र 452.3 अरब डॉलर ही थे. उसके बाद हमारे आयात तो द्रुत गति से बढ़ते गये, लेकिन निर्यात वृद्धि की गति धीमी रही. वर्ष 2021-22 में हमारे वस्तु और सेवा के निर्यात हालांकि 683.7 अरब डॉलर तक पहुंच गये थे, लेकिन आयात 766 अरब डॉलर हो गये थे.
हालांकि आयात इस वर्ष 882 अरब डॉलर तक पहुंच सकते हैं, लेकिन वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल का कहना है कि निर्यात भी पिछले वर्ष के 683.7 अरब डॉलर की तुलना में इस वर्ष 767 अरब डॉलर रह सकते हैं. यह सही है कि पिछले 10 वर्षों में निर्यात बहुत तेजी से नहीं बढ़े, पर पिछले साल इनमें 11.3 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई. वर्ष 2023 में दो हजार अरब डॉलर का लक्ष्य प्राप्त करने हेतु देश को निर्यात वृद्धि दर को मात्र 14.81 प्रतिशत ही रखना होगा, जो पिछले वर्ष हुई बढ़त से बहुत ज्यादा नहीं है.
आज जब भारत समेत दुनिया के सभी मुल्क बढ़ती महंगाई से त्रस्त हैं, भारत में महंगाई की दर शेष दुनिया से अभी भी कम है. भारत लगातार सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था बना हुआ है. बढ़ते ग्रोथ का असर जीएसटी की प्राप्तियों में दिख रहा है. हालांकि जीएसटी प्राप्तियों में बड़ा हिस्सा आयात शुल्कों का है, लेकिन मध्यवर्ती वस्तुओं के आयातों पर मूल्य संवर्धन भी जीएसटी में वृद्धि का कारण बन रहा है. यानी ग्रोथ हो या महंगाई पर अंकुश, सभी देश की बढ़ती निर्यात संभावनाओं की ओर संकेत कर रहे हैं.
यह भी सही है कि दुनिया में चल रही मंदी और महंगाई के कारण घटती क्रय शक्ति के चलते निर्यात बढ़ाना एक चुनौतीपूर्ण कार्य है. उसके बावजूद भारत की सेवाओं और वस्तुओं के निर्यातों में हो रही वृद्धि विशेष महत्व रखती है. खाद्य पदार्थों के निर्यात में वृद्धि का कुल निर्यात में विशेष योगदान है. वर्ष 2021-22 में 50 अरब डॉलर से अधिक खाद्य निर्यात किये गये. वर्ष 2022-23 के आंकड़े आने अभी बाकी हैं, लेकिन अभी भी खाद्य निर्यातों का कुल निर्यातों में खासा योगदान बना हुआ है.
निर्यात वृद्धि में प्रतिरक्षा निर्यात का भी बड़ा योगदान दिख रहा है. गौरतलब है कि अभी तक भारत प्रतिरक्षा के क्षेत्र में आयातों पर ही अधिक निर्भर रहा है. लेकिन प्रतिरक्षा उद्योग में हुई प्रगति और विशेष तौर पर निजी क्षेत्र के प्रतिरक्षा उद्योग में बढ़ते योगदान के चलते देश न केवल प्रतिरक्षा में उपकरणों में आत्मनिर्भर हुआ है, बल्कि इस उद्योग का निर्यातों में भी योगदान बढ़ा है.
एक ओर जहां देश अपनी प्रतिरक्षा जरूरतों का 70 प्रतिशत आयातों से प्राप्त करता था, अब मात्र 32 प्रतिशत उपकरणों के लिए ही आयातों पर निर्भर करता है और 68 प्रतिशत प्रतिरक्षा खरीद भारत से हो रही है. पिछले छह वर्षों में प्रतिरक्षा निर्यातों में 10 गुना से ज्यादा वृद्धि भविष्य में इस क्षेत्र के निर्यातों की संभावना को इंगित करती है. गौरतलब है कि 2016-17 में प्रतिरक्षा निर्यात मात्र 1,521 करोड़ रुपये के थे, जो 2022-23 में 15,920 करोड़ रुपये तक पहुंच चुके हैं. कहा जा सकता है कि भारत का प्रतिरक्षा उद्योग एक ओर विदेशी मुद्रा बचा रहा है और दूसरी ओर विदेशी मुद्रा कमा भी रहा है.
सेवा क्षेत्र में भारत का परचम पिछले 30 वर्षों से लहरा ही रहा है, लेकिन वर्तमान काल में उसका महत्व और बढ़ गया है. पांच वर्षों में ही हमारी सेवाओं के निर्यात 2016-17 में 164.2 अरब डॉलर से बढ़कर 2021-22 तक 254.5 अरब डॉलर तक पहुंच गये थे. वर्ष 2022-23 के पहले 11 महीनों में ये निर्यात 296.9 अरब डॉलर तक पहुंच चुके हैं और अनुमान है कि 2022-23 के पूर्ण वर्ष के लिए यह आंकड़ा 325 अरब डॉलर पार कर सकता है.
खास बात यह है कि इन निर्यातों में आधे से ज्यादा हिस्सा सॉफ्टवेयर निर्यातों का है. इसके अलावा देश बड़ी मात्रा में बीपीओ, एलपीओ समेत कई प्रकार की व्यावसायिक सेवाओं का भी निर्यात कर रहा है. देश की सॉफ्टवेयर में प्रगति चीन समेत अन्य मुल्कों को भी पीछे छोड़ रही है. कई मुल्क भारत से आयात करना चाहते भी थे, तो भी वे पूर्व में डॉलर के अभाव के चलते आयात नहीं कर पाते थे. हाल में भारत सरकार ने एक पहल की और भारतीय रिजर्व बैंक ने आयात और निर्यात के लिए अंतरराष्ट्रीय भुगतान निपटारों को रुपये में करने की अनुमति दे दी.
भारत सरकार के प्रयासों से इंग्लैंड, न्यूजीलैंड, जर्मनी, मलेशिया, इजरायल, रूस और संयुक्त अरब अमीरात समेत 19 देशों के बैंकों को ‘स्पेशल वोस्त्रो रुपी एकाउंट’ खोलकर रुपये में लेन-देन की अनुमति दी जा चुकी है. इन मुल्कों के साथ अभी भी बड़ी मात्रा में व्यापार होता है, रुपये में भुगतान के चलते इन मुल्कों के पास भारतीय रुपये का स्टॉक बढ़ेगा और वे भारत से ज्यादा सामान आयात कर सकेंगे.
पूर्व में भारतीय साजो-सामान दूसरे मुल्कों की तुलना में महंगा माना जाता था, उसका कारण था हमारी इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी. पर अब बिजली की कोई कमी नहीं दिखती. सौर ऊर्जा आदि के कारण बिजली की लागत में भी कुछ कमी दिख रही है. सड़कों के जाल बिछने के कारण आवाजाही आसान हो गयी है. बेहतर डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर भी भारत की प्रतिस्पर्धा को बेहतर बना रहा है.
ऐसे में अगले सात वर्षों में निर्यात को दो हजार अरब डॉलर तक ले जाना कोई अभेद्य लक्ष्य नहीं लगता. लेकिन देश को इसके लिए निरंतर प्रयास करने होंगे. देश में मैन्युफैक्चरिंग को बल देना होगा, लागतों को कम करना होगा और वर्तमान में इंफ्रास्ट्रक्चर निर्माण की गति को बरकरार रखना होगा. गौरतलब है कि वर्ष 2013-14 में भारत की अर्थव्यवस्था दो खरब डॉलर से भी कम थी, जो अब तक 3.5 खरब डॉलर से ज्यादा हो चुकी है. वर्ष 2030 में जब हम सात खरब डॉलर की अर्थव्यवस्था बन चुके होंगे, तो दो खरब डॉलर के निर्यात का लक्ष्य कोई बहुत बड़ा लक्ष्य नहीं है.
SORCE: prabhatkhabar
Tagsदो ट्रिलियन डॉलर निर्यातबड़ी छलांग2 trillion dollar exportsbig jumpदिन की बड़ी ख़बरजनता से रिश्ता खबरदेशभर की बड़ी खबरताज़ा समाचारआज की बड़ी खबरआज की महत्वपूर्ण खबरहिंदी खबरजनता से रिश्ताबड़ी खबरदेश-दुनिया की खबरराज्यवार खबरहिंदी समाचारआज का समाचारबड़ा समाचारनया समाचारदैनिक समाचारब्रेकिंग न्यूजBig news of the dayrelationship with the publicbig news across the countrylatest newstoday's big newstoday's important newsHindi newsbig newscountry-world newsstate-wise newsToday's NewsBig NewsNew NewsDaily NewsBreaking News
Triveni
Next Story