सम्पादकीय

बड़ी कूटनीतिक सफलता: यूएनएससी में भारत ने रूस और चीन को अफगानिस्तान मसले पर वीटो न करने के लिए राजी कर लिया

Rani Sahu
13 Sep 2021 6:44 AM GMT
बड़ी कूटनीतिक सफलता: यूएनएससी में भारत ने रूस और चीन को अफगानिस्तान मसले पर वीटो न करने के लिए राजी कर लिया
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यह भारत के लिए एक बड़ी कूटनीतिक जीत थी, जब उसने रूस और चीन को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) में अफगानिस्तान में हिंसा की निंदा और शांति बहाली की प्रतिबद्धता से संबंधित प्रस्ताव पर वीटो न करने के लिए राजी कर लिया

केएस तोमर। यह भारत के लिए एक बड़ी कूटनीतिक जीत थी, जब उसने रूस और चीन को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) में अफगानिस्तान में हिंसा की निंदा और शांति बहाली की प्रतिबद्धता से संबंधित प्रस्ताव पर वीटो न करने के लिए राजी कर लिया। उस प्रस्ताव में यह भी कहा गया है कि अफगान क्षेत्र का इस्तेमाल किसी भी देश पर हमला करने या धमकी देने या आतंकवादियों को पनाह देने या प्रशिक्षित करने या आतंकवादी कृत्यों की योजना बनाने या उन्हें वित्त पोषित करने के लिए नहीं किया जाए।

भारत ने लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे आतंकवादी संगठनों की भी पहचान की और अफगानिस्तान में आतंकवाद का मुकाबला करने के महत्व के परिदृश्य में तालिबान की अनिवार्य प्रतिबद्धताओं पर जोर दिया। फ्रांस और ब्रिटेन जैसे विकसित देशों ने पहले ही चेतावनी दी है कि प्रस्ताव के अमल पर ही तालिबान सरकार के बारे में फैसला किया जाएगा। जहां तक रूस की बात है, तो अमेरिका की अपमानजनक हार का साक्षी बनना उसके लिए खुशी का क्षण था, जबकि चीन ने महाशक्ति बनने की महत्वाकांक्षा के मद्देनजर तटस्थ रुख अपनाया।
कूटनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि रूस और चीन कभी भी वोटिंग के दौरान अफगानिस्तान में आतंकवाद के कट्टर समर्थक के रूप में खुद को पेश करना नहीं चाहेंगे, हालांकि अमेरिका से बदला लेने के लिए वे खुद को तालिबान के चैंपियन के रूप में दिखाना चाहते थे। चीन तालिबान के बारे में कुछ अच्छी बातें कह रहा है और सधे हुए लहजे में उम्मीद जता रहा है कि तालिबान उदार और विवेकपूर्ण घरेलू और विदेशी नीतियों का पालन करेंगे, सभी प्रकार की आतंकवादी ताकतों के खिलाफ लड़ेंगे, अन्य देशों के साथ सद्भाव से रहने का प्रयास करेंगे और इसके अलावा अफगान नागरिकों एवं अंतरराष्ट्रीय समुदाय की आकांक्षाएं पूरी करेंगे।
खुले तौर पर चीन के प्रति आभार व्यक्त करते हुए तालिबान ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वे चीन की 'वन बेल्ट, वन रोड' पहल का समर्थन करते हैं। तालिबान चीन को अपना सबसे महत्वपूर्ण भागीदार मान रहे हैं। दूसरी तरफ, रूस ने भारत के साथ खड़े होकर फिर से दोस्ती के पुराने भरोसेमंद संबंधों के प्रति ईमानदारी दिखाई है, जो भारत में रूसी राजदूत निकोलाई कुदाशेव की टिप्पणियों से स्पष्ट था। वह मानते हैं कि कट्टर तालिबान को अफगानिस्तान की नई सरकार के रूप में मान्यता देना जल्दबाजी होगा। अफगानिस्तान के संबंध में मास्को की स्थिति नई दिल्ली के 'बहुत करीब' है, क्योंकि रूस और भारत, दोनों अफगान-स्वामित्व वाली सरकार चाहते हैं।
विश्लेषकों का मानना है कि यूएनएससी में रूस और चीन के अप्रत्याशित रुख को देखते हुए पाकिस्तान का जश्न फिलहाल थम गया है, क्योंकि आतंकवाद से संबंधित इस तरह का घटनाक्रम उसके खिलाफ जाता है, खासकर इसलिए कि उसे संयुक्त राष्ट्र द्वारा नामित आतंकवादियों को पनाह देने के लिए जाना जाता है। भारत इस हकीकत से अवगत है कि तालिबान द्वारा अफगानिस्तान में सरकार बनाने के बाद अब प्रत्येक राष्ट्र को उनसे निपटना होगा, इसी कारण पिछले दरवाजे से कूटनीतिक वार्ता का रास्ता खोला गया है।
चीन ने अपनी विस्तारवादी नीति और दक्षिण एशिया में अमेरिका तथा भारत पर नियंत्रण रखने के दोहरे उद्देश्य के चलते तालिबान शासन को 3.1 करोड़ डॉलर की सहायता देने की घोषणा की है। पूरी दुनिया तालिबान के 33 सदस्यीय मंत्रिमंडल के गठन से क्षुब्ध है, जिसमें एक भी महिला नहीं है और अधिकांशतः कट्टरपंथियों को शामिल किया गया है। इसमें पाकिस्तान की सक्रिय भागीदारी का सबूत है, जिसने हक्कानी नेटवर्क के सिराजुद्दीन हक्कानी को गृहमंत्री के रूप में शामिल करना सुनिश्चित किया, जो एफबीआई का मोस्ट वांटेड है। इसने अमेरिका के साथ-साथ भारत के लिए भी चिंता पैदा कर दी है। विश्लेषकों को कश्मीर में हिंसा बढ़ाने में उनकी भावी भूमिका को लेकर अंदेशा है, जो पाकिस्तान के इशारे पर होगा। पांच नामित आतंकवादियों को मंत्रिमंडल में शामिल करने से तलिबान के लिए अंतरराष्ट्रीय मान्यता प्राप्त करना मुश्किल हो गया है।
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