- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- भाजपा-युग के बड़े
x
केंद्रीय गृहमंत्री एवं भाजपा के पूर्व अध्यक्ष अमित शाह का दावा है कि आगामी 30-40 साल तक भाजपा-युग ही रहेगा और भारत ‘विश्व-गुरु’ बनेगा
सोर्स- divyahimachal
केंद्रीय गृहमंत्री एवं भाजपा के पूर्व अध्यक्ष अमित शाह का दावा है कि आगामी 30-40 साल तक भाजपा-युग ही रहेगा और भारत 'विश्व-गुरु' बनेगा। हैदराबाद में भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में 'राजनीतिक प्रस्ताव' पेश करते हुए उन्होंने यह दावा किया। साफ मायने हैं कि इतने कालखंड के दौरान भाजपा की सत्ता ही रहेगी और वही देश की दिशा और दशा तय करती रहेगी। इसी दौरान कुछ विशेषज्ञों के आकलन भी सामने आए हैं कि प्रधानमंत्री मोदी, देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और एकमात्र महिला प्रधानमंत्री रहीं इंदिरा गांधी के कार्यकालों को, पार कर नया मील-पत्थर स्थापित कर सकते हैं। यह तभी संभव है, जब प्रधानमंत्री मोदी 2031 के बाद भी पद पर बने रहें। बहुत दूर की संभावनाएं व्यक्त की जा रही हैं। ऐसा बहुत कुछ है, जो इनसान के नियंत्रण में नहीं है। दावे तो कुछ भी किए जा सकते हैं। फिलहाल 2024 के आम चुनाव निकटस्थ हैं। विश्लेषण उन्हीं के मद्देनजर किए जाने चाहिए। 'भांडगीरी' या 'चारणगीरी' पर कोई रोक नहीं है। दरअसल यह राजनीतिक एकाधिकार का वैसा दौर नहीं है, जो देश की आज़ादी के बाद कांग्रेस और नेहरू के हिस्से आया था। इंदिरा गांधी के दौर में कांग्रेस विभाजित हुई, लेकिन पार्टी के परंपरागत जनाधार ने 'इंदिरा कांग्रेस' को ही असली कांग्रेस स्वीकार किया, नतीजतन जनादेश कांग्रेस के पक्ष में ही रहे। आज की कांग्रेस उसी दौर की पार्टी के अवशेष हैं। देश कांग्रेस-मुक्त होने के कगार पर है। सिर्फ दो राज्यों में उसकी सरकार है।
विपक्ष तब बौना था, बंटा हुआ था, स्वीकृति बहुत सीमित थी और साझा गठबंधन के तब भी प्रयास किए गए थे। मुट्ठी भर सफलताएं मिलीं, लेकिन अस्थायी और अस्थिर साबित होती रहीं। यकीनन प्रधानमंत्री मोदी आज के राजनीतिक दौर में उतने ही ताकतवर और लोकप्रिय नेता हैं। देश के 18-20 राज्यों में भाजपा या उसके सहयोगी दलों की सरकारें हैं। मोदी की सफलता के चरमोत्कर्ष के बावजूद तमिलनाडु, तेलंगाना, आंध्रप्रदेश, झारखंड, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, केरल, छत्तीसगढ़, राजस्थान और पंजाब राज्यों में विपक्ष की सरकारें हैं। तमिलनाडु और केरल में तो भाजपा आज भी लगभग शून्य है। ये सभी ताकतवर राज्य हैं और उनके जनादेश के आधार भी भिन्न हैं, लेकिन वे राष्ट्रीय जनादेश को प्रभावित करने में सक्षम हैं। भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में यह लक्ष्य पाारित किया गया है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में पार्टी 350 सीटें जीतने के संकल्प के साथ उतरेगी। इनमें से कमोबेश 100 सीटें दक्षिण भारत के पांच राज्यों से जीतने का लक्ष्य तय किया गया है। हमें यह अतिशयोक्ति लगता है, क्योंकि ऐसे किसी मुद्दे की लहर के आसार तक नहीं हैं, जो भाजपा की झोली सीटों से लबालब भर दे। बहरहाल भाजपा की यह पुरानी परंपरा रही है कि वह बड़े और असंभव-से लक्ष्य तय करती है और फिर उन्हें हासिल करने के लिए नए वोट बैंक का जुगाड़ भी करती है।
भाजपा का समंदर-सा काडर भी उसकी ताकत है। प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में दलित, पिछड़े, ओबीसी, मुसलमानों के वंचित तबके (खासकर पसमांदा) और मुस्लिम महिलाओं में भाजपा के नए जनाधार तैयार किए गए हैं। कार्यकारिणी में भी तय किया गया है कि पार्टी मुसलमानों की बहुसंख्यक आबादी में भी पैठ बनाएगी और 'स्नेह-यात्रा' का आगाज़ किया जाएगा। कार्यकारिणी के भाषणों में 'आदिवासी' का मुद्दा भी खूब गूंजता रहा। भाजपा-एनडीए की राष्ट्रपति उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू इसी समुदाय की हैं। दरअसल भाजपा उस स्थान को सबसे पहले कब्जा लेती है, जहां कांग्रेस का पतन होता है अथवा उभार की संभावनाएं नगण्य हैं। भाजपा दूसरे दलों को तोड़ कर क्षमतावान नेताओं को भी अपने पाले में कर लेती है। महाराष्ट्र ताज़ातरीन उदाहरण है। अब भाजपा ने 'मिशन तेलंगाना' का आह्वान किया है, क्योंकि अगले साल ही वहां विधानसभा चुनाव हैं। भाजपा अब अपने तमाम संसाधन उस मोर्चे पर झोंक देगी, क्योंकि यही उसकी रणनीति रही है। बंगाल में कामयाबी नहीं मिल पाई, लेकिन प्रमुख विपक्षी दल भाजपा है। यदि तेलंगाना में सरकार नहीं बनती है, तो कमोबेश इतनी ताकत भाजपा जुटा लेगी कि अगला कार्यकाल उसी की सरकार का होगा। फिलहाल तो 2024 के आम चुनाव के मद्देनजर सभी ताकतें लामबंद की जा रही हैं।
Rani Sahu
Next Story