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- अक्ल बड़ी या दाढ़ी
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मैं जीवन के तीसरे युग में प्रवेश कर चुका हूं। लेकिन अभी तक तय नहीं कर पाया हूं कि
दिव्याहिमाचल.
मैं जीवन के तीसरे युग में प्रवेश कर चुका हूं। लेकिन अभी तक तय नहीं कर पाया हूं कि बकरा सचमुच अक्लमंद होता है या दाढ़ी होने की वजह से नज़र आता है। फिर सोचता हूं कि अगर बकरा अक्लमंद होता तो कटता क्यों? इसका मतलब है कि दाढ़ी किसी को अक्लमंद नहीं बनाती। दाढ़ी के ऊपर लगे खोल, जिसे कपाल कहा जाता है, में तैरते तरल पर निर्भर करता है कि वह किसी दाढ़ी के ऊपर सजे दिमाग को कितना समर्थन देता है। वैसे हर दाढ़ी तभी तक अक्लमंद नज़र आती है, जब तक वह हिलती नहीं। सरल शब्दों में कहेें तो मुंह बंद रहने तक दूसरे की जिज्ञासा बनी रहती है। जैसे शादियों में मेहमानों द्वारा रिसेप्शन में हफ्ते भर का एकमुश्त राशन डकारने के बाद मेजबान को थमाए गए उनके बेनामी शगुन के $खाली लिफाफे खोलने के बाद ही उनकी नीयत का पता चलता है। वैसे एक धर्म विशेष के पैगंबर दाढ़ी वाले चेहरे को नूरानी बताते हैं। लेकिन अगर ऐसा होता तो बकरे समेत वे तमाम जानवर और परिन्दे, जिनके चेहरे पर दाढ़ी होती है, पुरनूर होते और कभी सड़ान्ध नहीं मारते। मुझे आज तक समझ नहीं आया कि दाढ़ी रखने और संवारने या कभी न कटवाने, खोपड़ी घुटाने या शिखा रखने से किस तरह धर्म में इज़ाफा होता है। अगर इस बात में ज़रा भी दम होता तो ईरान, पाकिस्तान या अफगानिस्तान में बच्चे, बूढ़े और औरतें नूरानी दाढिय़ों से क्यों बचते फिरते? हां, दाढ़ी न कटाने के दूसरे $फायदे ज़रूर हो सकते हैं। पुराने ज़माने में या आजकल भी कुछ लोग अपनी दाढ़ी इसीलिए बढ़ाते हैं ताकि उनको समाज में $खास पहचान मिल सके। लोग फलॉसफर दिखने या ऋषि-मुनि टाईप फीलिंग लेने-देने के लिए दाढ़ी रखते हंै।
इसका मतलब हुआ कि आदमी अव्वल दरजे का बेवकू$फ होने के बावजूद दाढ़ी रखने से अ$क्लमंद नज़र आ सकता है। स्वास्थ्य विशेषज्ञ मानते हैं कि दाढ़ी गंदगी सोखने की वजह से शरीर की सबसे गंदी जगह होती है। वे तो यहां तक बताते हैं कि दाढ़ी में टॉयलेट से भी ज़्यादा कीटाणु होते हैं। ऐसे में मुझे उन महिलाओं के बारे में सोचकर रोना आता है, जिनके शौहर दाढ़ी रखते हैं। बेचारियां! आत्मीय क्षणों में भी बेचैन रहती होंगी। कई बार इन्कम टैक्स से बचने के लिए भी दाढ़ी बढ़ाई जाती है। किशोर कुमार ने अपनी फल्मों और गायकी से हो रही बेतहाशा कमाई को इन्कम टैक्स से बचाने के लिए अपने भाइयों अशोक कुमार और अनूप कुमार के साथ 'बढ़ती का नाम दाढ़ी नामक फिल्म बना डाली थी। इस तरह वह अपनी काली कमाई को आयकर विभाग की काली नज़रों से बचाने में सफल रहे। लेकिन दाढ़ी के इस खेल में मनोवैज्ञानिक भी पीछे नहीं रहे।
उन्होंने दाढ़ी सजाने-संवारने को पोगोनोफोबिया से जोड़ दिया। पोगोनोफोबिया, दरअसल एक मनोस्थिति है, जिसकी वजह से लोग दब्बू कस्म के हो जाते हैं। शायद इसीलिए कोरोना काल में कुछ लोगों ने अपनी दाढ़ी बढ़ा ली। कई बार लोग दूसरों से अलग दिखने के लिए भी दाढ़ी को अपने रहन-सहन का कोड बनाते हैं। प्राचीन मिस्र में अमीरज़ादे पतली मगर लंबी दाढ़ी रखते थे ताकि दूसरों से अलग दिख सकें। मध्यकाल में दाढ़ी को बाकायदा संवारा, रंगा और सोने से सजाया जाता था। हो सकता है कुछ सिरफिरे बीवी या प्रेमिका को चिढ़ाने के लिए उनके बालों को सजाने की बजाय अपनी दाढ़ी को सोने से सजाने को अहमियत देते हों। मध्यकाल में किसी दाढ़ी को छूना उसको नीचा दिखाने की कोशिश मानी जाती थी। ऐसा करने पर दाढ़ी छूने वाले को उसके साथ मल्लयुद्ध करना पड़ता था। हो सकता है कई बार कोई पहलवान जान-बूझ कर किसी कमज़ोर की दाढ़ी को छूकर उसे मल्लयुद्ध के लिए उकसाता हो। आखर मज़ा तो कमज़ोर को पीटने में ही आता है।
पी. ए. सिद्धार्थ , लेखक ऋषिकेश से हैं
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