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उनका कहना है कि बाइडेन के दौर में भी अमेरिका अपने हितों को प्रमुखता देते हुए ट्रंप जैसी नीति पर ही चल रहा है।
अमेरिका, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया में बना नया गठजोड़ चीन को घेरने की अमेरिकी नीति का ही परिणाम है। मगर इससे धारणा बनी है कि अमेरिका ने अंग्रेजी भाषी मूल के देशों को ही चीन विरोधी गठजोड़ की अग्रिम कतार में रखने लायक समझा। इससे व्यापक गठजोड़ की संभावना कमजोर पड़ी है। us president joe biden
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया के साथ अपने देश का नया त्रिगुट बना कर बाकी यूरोप के साथ चीन विरोधी गठजोड़ की संभावना को झटका दिया है। फ्रांस तो इससे इतना नाराज हुआ कि उसने तुरंत कई जवाबी कार्रवाइयां कीं। उसने इस नए गुट उसकी पीठ में चुरा घोंपना बताया। उधर फ्रांस ने अपने वॉशिंगटन स्थित दूतावास में आयोजित एक रिसेप्शन समारोह रद्द कर दिया। उसके विदेश मंत्री ने कहा कि बाइडेन के इस गुपचुप कदम से उन्हें डॉनल्ड ट्रंप की याद आ गई है। फ्रांस की इस भावना से सहमति यूरोपियन यूनियन के अधिकारियों ने भी जताई है। उनका कहना है कि बाइडेन के दौर में भी अमेरिका अपने हितों को प्रमुखता देते हुए ट्रंप जैसी नीति पर ही चल रहा है।
अमेरिका, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया के इस त्रिगुट को ऑकुस (ऑस्ट्रेलिया-यूनाइटेड किंगडम-यूनाइटेड स्टेट्सः एयूकेयूएस) नाम से जाना जा रहा है। इसके तहत अमेरिका और ब्रिटेन के सहयोग से ऑस्ट्रेलिया आठ परमाणु अस्त्र क्षमता से लैस पनडुब्बियां बनाएगा। फ्रांस की नाराजगी वाजिब है। ये नया करार फ्रांस के साथ ऑस्ट्रेलिया के पहले हुए 90 अरब डॉलर के पनडुब्बी निर्माण समझौते की कीमत पर हुआ है। दरअसल, समस्याएं सिर्फ यूरोप में नहीं हैं। ऑस्ट्रेलिया के पड़ोसी देश न्यूजीलैंड भी इस कदम से गुस्से में है। उसने अपनी परमाणु विरोधी नीति पर चलते हुए तुरंत यह एलान कर दिया कि वह ऑस्ट्रेलियाई पनडुब्बियों को अपने जल क्षेत्र में प्रवेश नहीं करने देगा।
ऑस्ट्रेलिया में भी इसके खिलाफ तुरंत आवाजें उठीं। पूर्व प्रधानमंत्री और विपक्षी लेबर पार्टी के नेता पॉल कीटिंग ने कहा कि इस समझौते के कारण ऑस्ट्रेलिया की संप्रभुता की और क्षति होगी और अंतरराष्ट्रीय संबंधों के बारे में स्वतंत्र निर्णय लेने की ऑस्ट्रेलिया की क्षमता बाधित हो जाएगी। वह इस मामले में अमेरिका पर और ज्यादा निर्भर हो जाएगा। चीन का भड़कना स्वाभाविक है। ये गठजोड़ चीन को घेरने की अमेरिकी नीति का ही परिणाम है। मगर इससे धारणा यह बनी है कि अमेरिका ने अंग्रेजी भाषी मूल के देशों को ही चीन विरोधी गठजोड़ की अग्रिम कतार में रखने लायक समझा। इससे व्यापक गठजोड़ की संभावना कमजोर पड़ी है। जानकारों के मुताबिक नई पनडुब्बियां बन कर तैयार होने में 15 से 18 साल तक का वक्त लगेगा। जाहिर है, इससे तुरंत चीन को घेरना संभव नहीं होगा। तो फिर बाइडेन प्रशासन ने ये चाल क्यों चली, अभी अमेरिका के सुरक्षा विशेषज्ञ भी इसे समझने की जद्दोजहद कर रहे हैँ।
नया इंडिया
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